लखनऊ, 13 जनवरी । सियासत में सहयोगी से लेकर विरोधी तक पर हावी रखने के बीएसपी प्रमुख मायावती के अंदाज को देखते हुए गठबंधन की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही होने के कयास थे। लेकिन मायावती ने कांटा 38-38 के बराबरी पर टिका दिया। एक-दूसरे को बराबर रखने की यह दरियादिली दरअसल इसलिए जरूरी हो गई ताकि एसपी के वोटरों में कहीं भी ‘पिछलग्गू’ होने का भ्रम न फैले। सीधी लड़ाई में वोटों का गणित ठीक रहने के लिए यह संदेश बहुत जरूरी था।
गठबंधन को हर हाल में हकीकत में बदलने के लिए एसपी मुखिया अखिलेश यादव किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार थे। खुद शनिवार को भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश ने कहा कि हम दो कदम पीछे हटने को भी तैयार थे लेकिन मायावती ने हमें बराबरी का सम्मान दिया इसके लिए धन्यवाद। जानकारों का कहना है गठबंधन पर अखिलेश के नरम रुख और मायावती की तल्ख टिप्पणियों के बीच एसपी के कोर वोटरों पर एक भ्रम की स्थिति बन सकती थी।
एसपी-बीएसपी की संभावित सीटें
पार्टी नेताओं के साथ ही समर्थकों के बीच यह स्वाभाविक सवाल पैदा होता कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एसपी का प्रदर्शन बीएसपी से काफी बेहतर होने के बाद भी हमारा दर्जा ‘दूसरा’ क्यों? इस सवाल को बीजेपी भी एसपी के वोटरों और खासकर यादवों में हवा देती। गठबंधन के रणनीतिकारों ने इस संभावित संकट को भांपते हुए इसकी गुंजाइश खत्म कर दी कि वोटरों में किस तरह का रोष पनपे।
यूपी में पिछले दो दशक से भी अधिक समय में जब यह दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रही थीं तो इनके वोटर भी एक-दूसरे से जूझ रहे थे। दोनों के सरकार बनने के दौरान कार्यकर्ताओं को खुश करने के लिए एक-दूसरे के कार्यकर्ताओं को भी अलग- अलग तरह से ‘कसा’ गया। इसलिए यह जरूरी था कि जब नेता एक हो रहे हैं तो उनके कोर वोटर व समर्थक भी सहज हों।