गोविंद शर्मा
अब तक तो हम यही सुनते रहे हैं कि अब उसकी हवा है, अब उसकी हवा खराब है, उधर वाले की हवा, पहले लहर थी, अब आंधी बन गई है। अब सुनने में आ रहा है कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता खराब है। दिल्ली मत आना। हो सकता है, विदेशी पर्यटकों पर यह चेतावनी असर कर जाए। हम पर तो नहीं। तमाशा घुसकर देखने की तमन्ना के साथ दिल्ली पहुंच गये। पता लगा कि गुणवत्ता को खराब बताने की खबर वैज्ञानिकों ने फैलाई है। हमें तो विज्ञान पर नहीं, गुरुज्ञान पर विश्वास है। राजनीति वाले गुरु और साहित्य वाले गुरु गली-गली में मिल जायेंगे, चेले-चेलियां ढूंढ़ते, जिसे दलबदल कहा जाता है, वास्तव में गुरु बदल ही होता है। चेलों-चेलियों से ही गुरु को मान्यता मिलती है। इसीलिये तो कहते हैं— मान गये गुरुज्।
हम भी किस हवा में उडऩे लगे। बात हवा की होनी है। दिल्ली गये। एक जगह सडक़ किनारे खड़े हो गये। देखा, लोग भाग रहे हैं। कोई पैदल तो कोई रिक्शा, ऑटो, कार या बस में सवार होकर। कोई इधर तो कोई उधर। जब काफी देर तक यह तांता नहीं टूटा तो हमने अपने पास खड़े एक सज्जन की तरफ देखा ही था कि वह बोला— सडक़ पार करना चाहता हूं। पता नहीं कब यह आवागमन रास्ता देगा।
वह अंडर पास, फुट ब्रिज, सडक़ पर सफेद पट्टियां किस लिये हैं?
वह तुम जैसे कायरों के लिये हैं। अपन तो बहादुर हैं।
यह कहकर वह समरांगण (सडक़) में कूद पड़ा। पता नहीं उस पार कब पहुंचा। मैंने पास खड़े एक और सज्जन से पूछा—क्यों भाई साहब, जिस तरह से लोग भाग रहे हैं, उससे यह नहीं लगता कि शाम तक दिल्ली खाली हो जायेगी? हवा खराब है न यहां की।
उसने मुझे सिर से पांव तक निहारा, फिर पूछा— दरवाजा खुला रह गया था या दीवार कूद कर बाहर आये हो?
कहां से?
पागलखाने से।
नहीं, नहीं, मैं वह नहीं हूं, जो आप समझे हैं। दिल्ली की हवा खराब है, इसलिये देखो, लोग दिल्ली छोड़ कर भाग रहे हैं।
बोले, हवा खराब हो या न हो, हवा ने चलना बंद कर दिया हो तो भी न तो यह आवागमन बंद होगा, न दिल्ली खाली होगी।
क्यों? क्यों? यहां के लोग खराब हवा से डरते नहीं?
हवा खराब है ही नहीं यह खबर जिसने भी फैलाई, उसकी खुद की हवा खराब होगी अभी। जिस दिन मैं यह सुनूंगा कि पांच अफसरों ने दिल्ली से बाहर तबादला की अर्जी दी है,उस दिन मानूंगा कि यहां की हवा खराब है। जिस दिन दिल्ली का कोई मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद यह बयान देगा कि हम तो चले अपने प्रदेश यहां की हवा खराब है, तब मैं भी मानूंगा। अभी तो उन्हें देखो, दिल्ली पहुंचने के लिये सौ किस्म के जोड़तोड़ करते हैं। कोई गठबंधन बना रहा है, कोई किसी बहाने दिल्ली पहुंचने की टिकट का जुगाड़ कर रहा है। यहां तक कि लोग अपने प्रदेश में मुख्यमंत्री बनते ही प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगते हैं।
ऐसा माहौल है दिल्ली के चाहवान हवाबाजों का, फिर भी कहते हैं। दिल्ली की हवा खराब है। हद हो गई हवाई फेंकने वालों की।
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