० खाद्य अमले की उदासीनता से राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम हो रहे प्रभावित
रायपुर, 10 जनवरी । प्रदेश में इन दिनों राजधानी सहित लगभग सभी शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध दूध की उपलब्धता नहीं होने से जहां बच्चे बड़ी मात्रा में कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। वहीं वयोवृद्धों को भी शुद्ध दूध नहीं मिलने से शारीरिक व्याधियों का शिकार होना पड़ रहा है। शहरी क्षेत्र एवं ग्रामीण क्षेत्र की निजी दूध डेयरियों में एवं विभिन्न कंपनी के पैकेजिंग दूध की आपूर्ति में बड़ी मात्रा में दूध पावडर, अरारोट एवं डिटर्जेंट पावडर मिलाए जाने से शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. सावर अग्रवाल एवं डॉ. संगीता नागराज के अनुसार प्रदेश स्तर पर बच्चों में कुपोषण से संबंधी पाए जाने की शिकायत इलाज के लिए आने वाले बच्चों के परिजनों से मिलती है।
गौरतलब है कि स्वास्थ्य विभाग एवं खाद्य विभाग द्वारा उदासीनता बरते जाने के कारण केंद्रीय लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एवं समाज कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रदेश को शिशु संरक्षण के लिए बड़ी मात्रा में बजट आवंटन के बावजूद भी कुपोषित बच्चों के संबंध में सकारात्मक रिपोर्ट प्रतिशत की दृष्टि से अन्य राज्यों की तुलना में कम मिल रही है। सरकार द्वारा शिशु संरक्षण सप्ताह चलाए जाने का मूल उद्देश्य शिशुओं को शुद्ध दूध उपलब्ध करा राज्य के लिए मजबूत कद काठी का युवा तैयार करना है जिसमें आए दिन बाधाएं आ रही है। उधर निजी दूध डेयरियों द्वारा पानी मिलाकर कमाई करने के लिए दूध का मूल्य इन दिनों 80 रुपए लीटर कर दिया गया है। अमानक स्तर के दूध पावडर बच्चों की शारीरिक कुपोषण को बढ़ावा दे रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. चंद्रमणी तिवारी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से वयोवृद्ध नागरिकों एवं बच्चों को शुद्ध दूध वाजिब मूल्यों पर तत्काल उपलब्ध कराने की मांग की है। साथ ही डॉ. तिवारी ने अमानक स्तर पर बिक रहे दूध पावडर की बिक्री को प्रतिबंधित कर दूध में मिलावट करने वाले व्यापारियों के खिलाफ खाद्य अपमिश्रण अधिनियम 1988 के तहत कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। इस संबंध में विधिवेता केके शुक्ला ने चर्चा के दौरान बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी दूध में मिलावट करने वालों के खिलाफ दोषी पाए जाने पर दस वर्ष की सजा दिए जाने का प्रावधान अपने निर्णय में किया है।