0-सिख विरोधी दंगा
नईदिल्ली,21 दिसंबर । हाईकोर्ट ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगा मामले के दोषी करार दिए गए सज्जन कुमार की सरेंडर करने की समय अवधि बढ़ाने वाली याचिका खारिज कर दी है. उन्होंने सरेंडर के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से 30 दिन का समय मांगा था. हालांकि कोर्ट ने कहा कि ऐसा ठोस कोई कारण नहीं है कि सरेंडर करने की समयसीमा बढ़ाई जाए.
उन्हें इसी हफ्ते दिल्ली हाईकोर्ट ने उम्र कैद की सज़ा सुनाई थी. कोर्ट ने उन्हें 31 दिसंबर तक सरेंडर करने का आदेश दिया था. उम्रकैद के अलावा उन पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था. इसके अलावा बाकी दोषियों को जुर्माने के तौर पर एक-एक लाख रुपये देने होंगे.
ये मामला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एक नवंबर 1984 का है. दिल्ली छावनी के राजनगर क्षेत्र में एक परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. मामले में बाक़ी लोगों को पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है.
करीब 34 साल बाद 1984 सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले में हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने सोमवार को निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए उनको दंगे के लिए दोषी माना और उम्रकैद की सजा दे दी. उनको आपराधिक षडयंत्र रचने, हिंसा कराने और दंगा भडक़ाने का दोषी पाया गया है. इस मामले में उन्हें पहले निचली अदालत ने बरी कर दिया था.
जस्टिस एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने 29 अक्टूबर को सीबीआई, दंगा पीडि़तों और दोषियों की ओर से दायर अपीलों पर दलीलें सुनने का काम पूरा करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. मामले की शुरुआत 1984 से होती है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भडक़ गए थे. दिल्ली भी इससे अछूती नहीं रही. हिंसा की इसी आग में राजधानी के दूसरे पंजाबी बहुल इलाकों के साथ पूर्वी त्रिलोकपुरी इलाके में करीब 95 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग सौ घरों को जला दिया गया था.
क्या था मामला
एक नवंबर 1984 को हरदेव सिंह, कुलदीप सिंह और संगत सिंह महिपालपुर में अपनी किराने की दुकानों पर थे. उसी समय 800 से 1000 लोगों की हिंसक भीड़ उनकी दुकानों की तरफ आई. भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में लोहे के सरिए, लाठियां, हॉकी स्टिक, पत्थर, केरोसीन तेल था. इस पर उन्होंने (हरदेव,कुलदीप और संगत) ने दुकानें बंद कर दी और वे सुरजीत सिंह नाम के शख्स के किराए के घर की तरफ भागे. कुछ समय बाद अवतार सिंह ने भी वहीं शरण ली. उन्होंने अंदर से कमरा बंद कर लिया.
दुकानों को जलाने के बाद भीड़ ने सुरजीत के कमरे को निशाना बनाया. उन्होंने सभी को बुरी तरह से मारा. उन्होंने हरदेव और संगत को चाकू से गोद दिया और सभी लोगों को बालकनी से नीचे फेंक दिया.
आरोपियों ने कमरे को केरोसीन छिडक़कर आग लगा दी. घायलों को बाद में सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां अवतार सिंह और हरदेव सिंह की मौत हो गई.
दिल्ली पुलिस ने 1994 में सबूतों की कमी के अभाव में केस बंद कर दिया. हालांकि एसआईटी ने मामले की आगे की जांच की थी.
क्यों हुए थे दंगे?
1984 में इंदिरा गांधी की उनके अंगरक्षकों ने हत्या कर दी थी. जिसके बाद देश के कई शहरों में सिख विरोधी दंगे भडक़ उठे थे. कहा जाता रहा है कि कांग्रेस पार्टी के कुछ कार्यकर्ता इसमें सक्रिय रूप से शामिल थे. इंदिरा गांधी की हत्या सिखों के एक अलगाववादी गुट ने उनके द्वारा अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में करवाई गई सैनिक कार्रवाई के विरोध में कर दी थी.
भारत सरकार की ऑफिशियल रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में इन दंगों में कुल 2800 लोगों की मौत हुई थी. जिनमें से 2100 मौतें केवल दिल्ली में हुई थीं. सीबीआई जांच के दौरान सरकार के कुछ कर्मचारियों का हाथ भी 1984 में भडक़े इन दंगों में सामने आया था. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे.