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20-Dec-2018 12:20:46 pm
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मौत के 10 महीने बाद कोर्ट से मिला न्याय

0-बेटी ने लगाया था रेप का आरोप
नई दिल्ली ,20 दिसंबर । हाईकोर्ट के एक फैसले ने 17 साल पहले अपनी ही नाबालिग बेटी से कथित दुष्कर्म मामले में शख्स दोषमुक्त कर दिया है। ज्ञात हो कि उक्त शख्स को निचली अदालत द्वारा दोषी ठहरा गया था। हालांकि वह व्यक्ति सजा सुनने के लिए अब जिंदा नहीं है। आखिरकार अपनी मौत के 10 महीने बाद उसे इंसाफ  मिला जबकि वह पहले दिन ही से अपनी बेगुनाही का दावा करता रहा था। इस मामले को देखकर ऐसा कहा जा सकता है कि भगवान के घर देर है लेकिन अंधेर नहीं है। 
कोर्ट ने बुधवार को अपने एक फैसले में मृतक को इस मामले में बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट के गलत दृष्टिकोण का जिक्र करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले में न तो जांच सही ढंग से की गई और न ही ट्रायल सही हुआ। इसके चलते अभियुक्त को 10 साल जेल में गुजारने पड़े। जस्टिस आरके गाबा ने अपने 22 पेज के फैसला में कहा कि अभियुक्त पहले दिन से ही इस मामले में उसकी लडक़ी को अगवा करने और बहकाने वाले लडक़े द्वारा साजिश का आरोप लगाता रहा।
जनवरी 1996 में दुष्कर्म की एफआईआर दर्ज करने के वक्त लडक़ी गर्भवती थी लेकिन जांच एजेंसी और ट्रायल कोर्ट ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। अभियुक्त पिता ने भ्रूण का सैंपल लेकर डीएनए टेस्ट कराने को भी कहा लेकिन पुलिस ने उसकी नहीं सुनी। इतना ही नहीं, ट्रायल कोर्ट ने भी जांच एजेंसी को इस मुद्दे पर कोई निर्देश नहीं दिए।
जस्टिस गाबा ने कहा कि जांच पूरी तरह से एकपक्षीय थी। इतने वक्त बाद, यह कोर्ट केवल सभी संबंधित पक्षों की निष्क्रियता पर खेद ही जता सकता है। इस कोर्ट के विचार से इस मामले के कई तथ्यों और परिस्थितियों की ट्रायल कोर्ट द्वारा दुर्भाग्य से अनदेखी की गई।
अभियोजन पक्ष ने अविश्वसनीय और असंभव तथ्य पेश किए। इस साल फरवरी में मृत व्यक्ति को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा कि न तो जांच एजेंसी और न ही ट्रायल कोर्ट ने किसी भी चरण में अभियुक्त के साथ न्याय किया। बचाव पक्ष के सुबूतों खासकर परिवार के करीबी सदस्यों के बयान को नकार दिया गया। यह बहुत ही दुख की बात है कि ट्रायल कोर्ट के जज ने आंख मूंदकर अभियोजन की कहानी को स्वीकार कर लिया। अभियुक्त के निधन के बाद भी उसकी पत्नी ने मामले को आगे बढ़ाया। 
कोर्ट ने यह भी पाया कि 16 वर्षीय अपनी बेटी के लापता होने के बाद पिता ने अगवा होने की एफआईआर दर्ज कराई थी लेकिन इस शिकायत को बिना किसी जांच के इसलिए बंद कर दिया गया कि बेटी ने शिकायत की थी कि उसका पिता 1991 से उसके साथ दुष्कर्म कर रहा है। ट्रायल कोर्ट के सामने दिए गए लडक़ी के बयान का जिक्र करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि मामले की शिकायत करने के लिए लडक़ी पर कोई रोक नहीं थी। 1991 से उत्पीडऩ के बावजूद उसे कभी अपनी मां, भाई-बहनों या परिवार के अन्य बुजुर्ग से इसका जिक्र करने से नहीं रोका गया। यदि उसका 1991 में दुष्कर्म किया गया तो वह उस वक्त मात्र 12 साल की रही होगी।
जस्टिस गाबा ने कहा कि पुलिस ने डीएनए टेस्ट भी कराना उचित नहीं समझा, जबकि अभियुक्त लगातार जोर देता रहा कि उसका और लडक़े का टेस्ट करा लिया जाए। जांच एजेंसी और अभियोजन का कहना था कि इसकी कोई जरूरत नहीं है तथा यह पूरी तरह से खुला मामला है। उनका कहना था कि आखिर कोई बेटी अपने पिता पर ऐसे आरोप क्यों लगाएगी। कोर्ट ने कहा कि इसकी संभावना है कि लडक़े और लडक़ी के बीच शारीरिक संबंध बन गए हों। इसकी गहराई से जांच की जरूरत थी लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ।
लडक़ी की शिकायत के अनुसार, उसके पिता सैन्य इंजीनियरिंग सेवा में इलेक्ट्रिशियन थे। जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में रहने के दौरान 1991 में पिता ने दुष्कर्म किया। घटना के वक्त उसकी मां अपने भाई के अंतिम संस्कार में शामिल होने गई थी। इसके बाद जब भी वह अकेली होती तो उसके पिता उसके साथ दुष्कर्म करते। यह सिलसिला दिल्ली आने के बाद भी जारी रहा। 
बेटी द्वारा पिता पर लगाए गए आरोपों का उसकी मां के साथ ही उसके बड़े भाई और बहन ने भी विरोध किया और खंडन किया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में पाया कि अभियुक्त ने ट्रायल कोर्ट में अपना सर्विस रिकॉर्ड भी पेश किया था, जिसके अनुसार, 1991 में जिस वक्त उसकी पत्नी घर पर नहीं थी उसकी तैनाती परिवार से 40 किलोमीटर दूर थी और उसे कोई छुट्टी भी नहीं मिली थी।

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