नई दिल्ली । उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज भारतीय भाषाओं के संरक्षण और कायाकल्प के लिए अभिनव और सहयोगपूर्ण प्रयासों का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि भाषाओं को संरक्षित करना और उनकी निरंतरता सुनिश्चित करना केवल एक जन आंदोलन के माध्यम से ही संभव है। नायडु ने कहा कि हमारी भाषा की विरासत को हमारी आने वाली पीढिय़ों को हस्तांतरित करने के प्रयासों में लोगों को एक स्वर से साथ आना चाहिए।
भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने के लिए विभिन्न लोगों द्वारा संचालित मार्मिक पहलों पर बात करते हुए, उपराष्ट्रपति ने एक भाषा को समृद्ध बनाने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने भारतीय भाषाओं में अनुवादों की गुणवत्ता और संख्या में सुधार के लिए प्रयास बढ़ाने का आह्वान किया। नायडु ने युवाओं के लिए बोली जाने वाली भाषाओं में प्राचीन साहित्य को अधिक सुलभ और संबंधित बनाने की भी सलाह दी। अंत में, उन्होंने लुप्तप्राय और पुरातन शब्दों को ग्रामीण क्षेत्रों और विभिन्न बोलियों की भाषा में संकलित करने का भी आह्वान किया ताकि उन्हें भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जा सके।
मातृभाषाओं के संरक्षण पर तेलुगु कूटमी द्वारा आयोजित एक वर्चुअल सम्मेलन को संबोधित करते हुए, नायडु ने आगाह किया कि अगर किसी की मातृभाषा लुप्त जाती है, तो उसकी आत्म-पहचान और आत्म-सम्मान अंतत: खो जाएगी। उन्होंने कहा कि हम अपनी विरासत के विभिन्न पहलुओं संगीत, नृत्य, नाटक, रीति-रिवाजों, त्योहारों, पारंपरिक ज्ञान को केवल अपनी मातृभाषा के जरिये ही संरक्षित कर सकते हैं।
इस अवसर पर नायडू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश, एन.वी रमना की हालिया पहल की सराहना की, जिन्होंने एक महिला को अपनी मातृभाषा तेलुगु में अपनी परेशानियों को बताने की अनुमति देकर एक सौहार्दपूर्ण तरीके से 21 साल पुराने वैवाहिक विवाद को हल किया जब उन्होंने देखा कि उस महिला को धाराप्रवाह अंग्रेजी में बोलने में कठिनाई हो रही है। उन्होंने कहा कि यह मामला न्यायिक प्रणाली की आवश्यकता पर बदल देता है ताकि लोग अदालतों में अपनी मूल भाषाओं में अपनी समस्याओं को बता सकें और क्षेत्रीय भाषाओं में आदालत निर्णय भी दे सकें।
उपराष्ट्रपति ने प्राथमिक विद्यालय स्तर तक मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने और प्रशासन में मातृभाषा को प्राथमिकता देने के महत्व को भी दोहराया।
नायडू ने एक दूरदर्शी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लाने के लिए केंद्र सरकार की सराहना की, जो हमारी शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा के उपयोग पर जोर देती है। उन्होंने कहा कि एनईपी की परिकल्पना के अनुसार समग्र शिक्षा तभी संभव है जब हमारी संस्कृति, भाषा और परंपराओं को हमारी शिक्षा प्रणाली में एकीकृत किया जाए।
उन्होंने नए शैक्षणिक वर्ष से विभिन्न भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम प्रदान करने के लिए 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों के हालिया निर्णय की सराहना की। उन्होंने तकनीकी पाठ्यक्रमों में भारतीय भाषाओं के उपयोग में क्रमिक तरीके से बढ़ाने का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने लुप्तप्राय भाषाओं के सुरक्षा और संरक्षण के लिए योजना (एसपीपीईएल) के माध्यम से लुप्त हो रही देशी भाषाओं की रक्षा करने की पहल के लिए शिक्षा मंत्रालय के प्रयासों की भी सराहना की।
मातृभाषा के संरक्षण में दुनिया में विभिन्न सर्वोत्तम परिपाटी का उल्लेख करते हुए, उपराष्ट्रपति ने भाषा के प्रति उत्साही भाषाविदों, शिक्षकों, अभिभावकों और मीडिया से ऐसे देशों से पूरा ज्ञान लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि फ्रांस, जर्मनी और जापान जैसे देशों ने इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कानून जैसे विभिन्न उन्नत विषयों में अपनी मातृभाषा का उपयोग करते हुए खुद को अंग्रेजी बोलने वाले देशों के मुकाबले हर क्षेत्र में मजबूत साबित किया है।
नायडू ने व्यापक पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली में सुधार का भी सुझाव दिया।
यह देखते हुए कि मातृभाषा को महत्व देने का अर्थ अन्य भाषाओं की उपेक्षा नहीं है, नायडु ने बच्चों को अपनी मातृभाषा में मजबूत नींव के साथ अधिक से अधिक भाषाएं सीखने के लिए प्रोत्साहित करने का आह्वान किया।
तेलंगाना सरकार के सलाहकार के.वी. रामनाचारी, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, नंदीवेलुगु मुक्तेश्वर राव, सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी, चेन्नुरु अंजनेय रेड्डी, तेलुगु एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका (टीएएनए) के पूर्व अध्यक्ष, तल्लूरी जयशेखर, द्रविड़ विश्वविद्यालय के डीन, पुलिकोंडा सुब्बाचारी, तेलंगाना के पूर्व साहित्य अकादमी अध्यक्ष नंदिनी सिद्धारेड्डी, लिंग्विस्टिक सोसाइटी ऑफ इंडिया की अध्यक्ष, गरपति उमामहेश्वर राव, तेलुगु कूटमी के अध्यक्ष, पारुपल्ली कोदंडारमैया और अन्य गणमान्य लोगों ने इस आभासी कार्यक्रम में भाग लिया।
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(नई दिल्ली)संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने जी20 देशों के संस्कृति मंत्रियों की बैठक को किया संबोधित
नई दिल्ली । संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने 30 जुलाई, 2021 को जी20 संस्कृति मंत्रियों की बैठक में भाग लिया। इस बैठक की मेजबानी इटली ने 2021 में जी20 की अध्यक्षता के अपने कार्यकाल के दौरान की।
बैठक के दौरान जिन विषयों पर चर्चा हुई उनमें सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण, संस्कृति के जरिये जलवायु संकट को दूर करना, प्रशिक्षण एवं शिक्षा के जरिये क्षमता निर्माण, संस्कृति के लिए डिजिटल बदलाव एवं नई प्रौद्योगिकी और विकास के वाहक के तौर पर संस्कृति एवं रचनात्मक क्षेत्र शामिल हैं।
संस्कृति राज्यमंत्री ने बैठक के प्रतिभागियों को संबोधित किया और विकास के वाहक के तौर पर संस्कृति एवं रचनात्मक क्षेत्र विषय पर भारत के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। उन्होंने आर्थिक विकास एवं रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए संस्कृति एवं रचनात्मक क्षेत्रों के महत्व को उजागर किया। उन्होंने हथकरघा, हस्तशिल्प एवं खादी जैसे पर्यावरण के कहीं अधिक अनुकूल उत्पाद तैयार करने और उनके उपभोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं, युवाओं और स्थानीय समुदायों को अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए स्थानीय समुदायों की क्षमता, महत्व और भारत के लिए प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया। स्थानीय समुदायों की काफी समृद्ध एवं विविध सांस्कृतिक परंपराएं होती हैं।
लेखी ने इस बात पर जोर दिया कि संस्कृति एवं रचनात्मक क्षेत्र रोजगार सृजन, असमानताओं घटाकर, स्थायी विकास को बढ़ावा देकर और लोगों को अलग पहचान प्रदान करते हुए विकास को गति दे सकते हैं।
लेखी ने संस्कृति एवं रचनात्मक क्षेत्रों के विकास के लिए भारत द्वारा उठाए गए विभिन्न उपायों पर प्रकाश डाला। इसी क्रम में उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की योजना वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट यानी एक जिले से एक उत्पाद योजना, पर्यटन सर्किट, योग एवं आयुर्वेद को बढ़ावा आदि का उल्लेख किया।
संस्कृति राज्य मंत्री ने सांस्कृतिक एवं रचनात्मक क्षेत्रों से जुड़े सामान्य मुद्दों से निपटने और सार्वजनिक नीतियों के बारे में उपयुक्त सूचना देने एवं उन्हें लागू करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वार्ता एवं सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने समाज के सांस्कृतिक एवं रचनात्मक क्षेत्रों की मदद एवं सुविधा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक प्रयासों में भारत के सहयोग की प्रतिबद्धता को दोहराया।
चर्चा के अंत में जी20 संस्कृति मंत्रियों ने जी20 संस्कृति कार्य समूह की संदर्भ शर्तों को स्वीकार किया। जी20 के संस्कृति मंत्रियों ने जी20 नेताओं के 2021 शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत करने के लिए मंत्रिस्तरीय घोषणा को अंगीकृत किया। राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर संस्कृति के जबरदस्त आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव को देखते हुए इसे जी20 कार्य धारा में शामिल करने की वकालत की जाएगी।