अभिषेक कुमार सिंह
देश जिस डिजिटल क्रांति की तरफ बढ़ रहा है, क्या उसका कुल हासिल यही है कि लोग डिजिटल फर्जीवाड़ा करने वाले कुछ गिरोहों और कंपनियों की चपेट में आ जाएं और उनके झांसे में फंसकर अपनी जमा-पूंजी गंवा दें? यह मामला देश की छवि और नौजवानों की प्रतिभा के गलत इस्तेमाल से लेकर उनकी बेरोजगारी का भी है। दर्जनों साइबर गिरोहों के सक्रिय होने और सरहद पार हजारों लोगों को चूना लगाने की उनकी हरकतों ने देश की छवि को बिगाड़ा है।
पिछले कुछ वर्षों में देश ने देखा है कि कैसे नोएडा की एब्लेज इंफो सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने पहले 370 अरब का घोटाला किया और फिर एक अन्य कंपनी-वेब वर्क ट्रेड लिंक पर भी करीब 500 करोड़ के फर्जीवाड़े का आरोप लगा। इधर पिछले कुछ ही महीनों में देश का आईटी हब कहलाने वाले नोएडा-गुडग़ांव के दर्जनों फर्जी कॉल सेंटरों ने ढेरों साइबर फर्जीवाड़े कर डाले। इस मामले में आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के नाम पर भारत से हुए फर्जीवाड़े की शिकायतों पर अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआई), इंटरपोल और कनाडा की रॉयल कनेडियन माउंटेड पुलिस ने गुडग़ांव और नोएडा पुलिस को मामलों की जांच करने को कहा।
दिसंबर के शुरुआती हफ्ते में ऐसे करीब 17 साइबर गिरोहों का पर्दाफाश हुआ और उनसे जुड़े 42 लोगों की धरपकड़ हुई। इनमें से 8 कॉल सेंटर गुडग़ांव के थे, जबकि नौ नोएडा के। इन लोगों ने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड समेत 15 देशों के करीब 50 हजार लोगों के कंप्यूटरों में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के नाम से भेजे गए पॉप-अप के जरिए वायरस (मालवेयर) आदि भेजे और फिर मालवेयर हटाने के लिए सौ से हजार डॉलर तक ऐंठ लिए। साइबर फर्जीवाड़े का दायरा कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इससे लग जाता है कि नोएडा में ही वर्ष 2018 के दो महीनों-अक्तूबर और नवंबर में 24 नकली कॉल सेंटरों का भंडाफोड़ हुआ और इनसे जुड़े सौ लोग पकड़े गए। इसी तरह गुडग़ांव में वर्ष 2018 में 25 फर्जी कॉल सेंटरों की धरपकड़ हुई।
चिंता की बात यह है कि एटीएम फ्रॉड, बीपीओ के जरिये देश-विदेश में ठगी, क्लोनिंग के जरिये क्रेडिट कार्ड से बिना जानकारी धन-निकासी और बड़ी कंपनियों के अकाउंट व वेबसाइट की हैकिंग और फिरौती वसूली की घटनाएं तो बड़े पैमाने पर हो रही हैं, बैंकिंग से जुड़े सुरक्षात्मक उपायों की साइबर अपराधियों ने हवा निकालकर रख दी है। वे बचाव के डिजिटल उपाय करने वाले महारथियों से दो कदम आगे के जानकार साबित हो रहे हैं। आज कोई इसे लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता कि जहां कहीं भी पैसे और सामान के लेनदेन का कोई डिजिटल उपाय काम में लाया जा रहा है, वह फूलप्रूफ है और उसमें धांधली की कोई गुंजाइश नहीं है।
साइबर ठगी के शिकार हुए सारे लोग डिजिटल सुरक्षा के उपायों से पूरी तरह अनभिज्ञ नहीं कहे जा सकते। इनमें से बहुत से लोग एटीएम मशीनों में ठगों द्वारा चोरी-छिपे ग्राहकों के कार्ड की सूचनाएं पढऩे के लिए लगाई गई डिवाइसों (स्कीमर) के कारण अथवा अनजाने में फोन पर मांगी जाने वाली सूचना देने पर जालसाजी के शिकार हो जाते हैं। आखिर इन सारे गोरखधंधों के पीछे कौन है।
जाहिर है, यह साइबर अपराधियों की जो नई पौध देश में सामने आई है और जिसने अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई तक को बेचैन कर दिया है, उसने देश के आईटी संस्थानों में ही साइबर-गुर सीखे हैं। इसलिए देखना होगा कि आखिर वे कौन-सी वजहें हैं जो साइबर जानकारों की फौज अपराध की गली मुड़ गई है। इन कारणों में अमेरिका-ब्रिटेन की कठिन वीजा शर्तों को भी शामिल करना पड़ेगा, जिसकी वजह से भारतीय युवा आईटी प्रोफेशनल्स के लिए विदेशों में नौकरी के अवसर सीमित हुए हैं। दूसरे, देश में ही आईटी की नौकरी के अवसर भी सिकुड़े हैं। यही नहीं, देश में काम कर रही आईटी कंपनियां इन युवा प्रोफेशनल्स के साथ रोमन दासों जैसा व्यवहार कर रही हैं।
आईटी सेक्टर के इस घटाटोप का एक संकेत इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने वर्ष 2017 में दिया था। उन्होंने कहा था कि इस सेक्टर के सीनियरों मैनेजरों को लालच छोडऩा चाहिए और इंडस्ट्री में नए शामिल हो रहे नौजवानों के लिए कुछ त्याग करना चाहिए। असल में पिछले करीब एक दशक से सॉफ्टवेयर उद्योग में नवांगतुकों और निचले-मध्य क्रम के कर्मचारियों का वेतन स्थिर बना हुआ है, जबकि वरिष्ठ पदों पर तैनात लोगों का वेतन एक हजार फीसदी तक बढ़ गया है। जबकि इसी दौरान महंगाई दर कहां से कहां पहुंच गई है। ऐसे हालात में अगर युवा साइबर क्राइम करने का जोखिम ले रहे हैं तो इस पर विचार आईटी इंडस्ट्री को खुद और सरकार को करना चाहिए। फिक्र यह है कि कहीं भारत अब उन बदनाम देशों की लिस्ट में न शामिल हो जाए जहां से साइबर क्राइम के अंतर्राष्ट्रीय गोरखधंधों की शुरुआत होती है।
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