विधानसभा चुनावों के नतीजों ने जनता के बदलते मन-मिजाज की एक झलक पेश की है। इन चुनावों को 2019 के आम चुनाव का सेमी फाइनल माना जा रहा है, इसलिए इनके नतीजों में सभी राजनीतिक दलों के लिए कुछ न कुछ संदेश जरूर छिपा है। एक बात साफ है कि केंद्र और देश के ज्यादातर राज्यों में सत्तारूढ़ बीजेपी को करारा झटका लगा है। 2014 के आम चुनाव और उसके बाद के कई विधानसभा चुनावों में जीत के जरिये उसने अपनी अजेयता का एक मिथक रच डाला था।
मामूली अंतर से मिली जीत को, यहां तक कि गोवा में मिली हार को भी वह अपने पक्ष में एकतरफा जनादेश बताने में सफल रही। लेकिन पांच राज्यों के परिणामों से स्पष्ट है कि अब माहौल उसके खिलाफ हो रहा है। अब तक बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत करिश्मे के सहारे चुनाव दर चुनाव जीत रही थी, लेकिन अभी जीत का सिलसिला अचानक टूट जाना यह बताता है कि मोदी का करिश्मा चल नहीं पा रहा। जनता अब स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तवज्जो दे रही है। सबसे बड़ी बात यह कि हिंदीभाषी राज्यों में उसे कांग्रेस में उम्मीद नजर आ रही है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस की वापसी हो रही है।
छत्तीसगढ़ में तो पार्टी का नेतृत्व ही खत्म हो गया था। वहां कांग्रेस ने एकतरफा बहुमत हासिल किया है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में अंदरूनी टकराहटों से उबरकर उसने अपना जमीनी ढांचा दोबारा खड़ा किया है। इससे यह धारणा टूटी है कि कांग्रेस में मोदी का मुकाबला करने की क्षमता नहीं है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले एक वर्ष में लगातार अपने को किसानों, आदिवासियों, दलितों और युवाओं के मुद्दे पर फोकस किया और केंद्र सरकार की नाकामियों की ओर जनता का ध्यान खींचा। कांग्रेस के पक्ष में आए जनादेश को भविष्य के नेता के रूप में राहुल गांधी की स्वीकृति की तरह भी देखा जाएगा, हालांकि उनकी आगे की यात्रा काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगी कि कांग्रेस की सरकारें जनता की अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतरती हैं।
उन्हें इस तरह काम करना होगा कि पार्टी उनकी मिसाल लोकसभा चुनावों में दे सके। इसके साथ ही कांग्रेस के साथ कभी हां कभी ना के रिश्ते में जुड़े क्षेत्रीय दलों में भी राहुल गांधी के नेतृत्व से जुड़े संशय कुछ कम हो सकते हैं। ऐसा हुआ तो बीजेपी विरोधी महागठबंधन को मजबूती मिलेगी। मामले का दूसरा पहलू यह है कि तमाम नाराजगी के बावजूद बीजेपी के लिए सूपड़ा साफ जैसी स्थिति कहीं नहीं है और दोनों बड़े हिंदीभाषी राज्यों में उसने कांग्रेस को कांटे की टक्कर दी है। वोटरों का संदेश यही है कि जो वादे पार्टियां करें, वे पूरे भी होने चाहिए। भावनात्मक मुद्दों की हवा निकलना इन नतीजों का दूसरा संदेश है। आम चुनावों में तीन-चार महीने का वक्त बाकी है। देखें, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही जनता से जुड़ाव बनाने में इस समय का कैसा इस्तेमाल करते हैं।
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