संपादकीय

12-Dec-2018 11:43:39 am
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ईमानदार नहीं सरकार गंगा की परिपूर्णता पर

भरत झुनझुनवाला
केन्द्र सरकार ने हाल में एक विज्ञप्ति में गंगा की परिपूर्णता को पुन: स्थापित करने के प्रति अपना संकल्प जताया है। सरकार के इस मंतव्य का स्वागत है। गंगा के अस्तित्व पर इस समय जल विद्युत और सिंचाई परियोजनाओं के संकट हैं। इन परियोजनाओं के अंतर्गत गंगा के पाट में एक किनारे से दूसरे किनारे तक बैराज या डैम बना दिया जाता है और नदी का पूरा पानी इन बैराज के पीछे रुक जाता है। बैराज के नीचे नदी सूख जाती है। गंगा अपने साथ हिमालय से जो आध्यात्मिक शक्तियां लाती हैं, जो गंगा में मछलियां नीचे से ऊपर जाती हैं और जो गाद ऊपर से नीचे आती है, यह सब बैराजों के पीछे रुक जाता है।
पूर्व यूपीए सरकार ने गंगा को पुनर्जीवित करने के लिये सात आईआईटी के समूह को गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान बनाने का कार्य दिया था। इस कार्य में देरी होने के चलते यूपीए सरकार ने पूर्व कैबिनेट सचिव बी. के. चतुर्वेदी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी ने संस्तुति दी कि गंगा पर बन रही जल विद्युत परियोजनाओं से 20 से 30 प्रतिशत पानी लगातार छोड़ा जाना चाहिये। कमेटी ने स्पष्ट लिखा था कि उनकी यह संस्तुति केवल उस अंतरिम समय तक के लिये है जब तक आईआईटी के समूह द्वारा अन्तिम संस्तुतियां नहीं दी जातीं। वर्तमान एनडीए सरकार ने चतुर्वेदी कमेटी की इस संस्तुति को लागू कर दिया है। केरल सरकार द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय नई जलविद्युत परियोजनाओं से 20 से 30 प्रतिशत पानी छोडऩे को कह रहा है।
इसके बाद आईआईटी समूह की रपट प्रस्तुत हुई। आईआईटी समूह ने संस्तुति दी कि लगभग 50 प्रतिशत पानी गंगा की परिपूर्णता बनाये रखने के लिये छोड़ा जाना चाहिये। लेकिन वर्तमान एनडीए सरकार को यह संस्तुति नहीं पसंद आयी। इसलिये उन्होंने एक दूसरी कमेटी बनाई। इस कमेटी ने आईआईटी समूह की 50 प्रतिशत की संस्तुति को घटाकर बी. के. चतुर्वेदी की 20 से 30 प्रतिशत की संस्तुति पर अपनी मोहर लगा दी। इस दूसरी कमेटी में आईआईटी दिल्ली के एक प्रोफेसर सदस्य थे जो कि आईआईटी समूह में भी भागीदार थे। इन्होंने अपने ही द्वारा दी गई संस्तुतियों को सरकार के इशारे पर घटा दिया। सरकार की सदा यह रणनीति रहती है कि एक कमेटी के ऊपर दूसरी, दूसरी के ऊपर तीसरी कमेटी बनाते जाओ जब तक कोई कमेटी सरकार की इच्छानुसार संस्तुति न दे।
इस समय गंगा और उसकी सहायक नदियों पर चार जल विद्युत परियोजनायें बन रही हैं—फाटा, सिंगोली, विष्णुगाड एवं तपोवन। वर्तमान विज्ञप्ति में कहा गया है कि इन परियोजनाओं द्वारा भी 20 से 30 प्रतिशत पानी पर्यावरणीय प्रवाह के लिये छोड़ा जायेगा। वास्तव में डैम बनाकर उससे पानी छोडऩे से नदी की परिपूर्णता स्थापित नहीं होती। बैराज के पीछे पानी के ठहरे रहने से पानी में निहित आध्यात्मिक शक्तियां कमजोर हो जाती हैं। मछलियां नीचे से ऊपर नहीं जा पाती हैं। ये मछलियां ही पानी को साफ रखती हैं। ऊपर से आने वाली गंगा की गाद में तांबा, थोरियम तथा अन्य लाभप्रद धातुएं पायी जाती हैं। इस गाद के डैम के पीछे रुक जाने से नीचे के पानी में ये तत्व समावेश नहीं करते। केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित सेंट्रल वाटर एंड पावर रिसर्च स्टेशन पूना ने एक अध्ययन में बताया है कि डैमों का आकार इस प्रकार बनाया जा सकता है कि उसमें बीच का एक हिस्सा खुला रहे, जिससे पानी के बहाव की निरन्तरता बनी रहे तथा मछली और गाद का आवागमन हो सके। जरूरी था कि वर्तमान में बन रही परियोजनाओं के डिजाइन को बदला जाता और इनसे पानी के निरन्तर बहाव को स्थापित किया जाता लेकिन वर्तमान विज्ञप्ति में इसका उल्लेख नहीं है।
वर्तमान में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर सात जल विद्युत परियोजनायें चालू हैं। मनेरी भाली 1, मनेरी भाली 2, टिहरी, कोटेश्वर, विष्णुप्रयाग, श्रीनगर और चीला। इन परियोजनाओं के लिये विज्ञप्ति में कहा गया है कि तीन साल के अन्तर्गत ये 20 से 30 प्रतिशत पानी छोडऩे की व्यवस्था करेंगे। इन्हें तीन साल की अवधि देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। हर बैराज के नीचे गेट लगे होते हैं। इन गेटों को सप्ताह या पन्द्रह दिन में एक बार खोला जाता है, जिससे बैराज के पीछे जमा बालू निकल कर नीचे चली जाये। इन गेटों को खोल कर 20 से 30 प्रतिशत पानी तत्काल छोड़ा जा सकता था लेकिन सरकार ने इन्हें तीन साल का समय देकर तीन साल तक उस पानी का उपयोग कर लाभ कमाने की छूट दे दी है।
आईआईटी समूह ने सिंचाई के बैराजों के लिये कोई स्पष्ट संस्तुति नहीं दी थी। लेकिन 1917 में स्वर्गीय मदन मोहन मालवीय की अगुआई में ब्रिटिश सरकार से एक समझौता हुआ था। इसमें हरिद्वार में बैराज के लिये कहा गया था कि इसमें बीच में एक हिस्सा खुला छोड़ा जायेगा, जिस पर कोई रेग्यूलेटर नहीं लगाया जायेगा। इस खुले हिस्से से पानी निरन्तर बहेगा और गंगा की आध्यात्मिक शक्ति, मछलियों एवं गाद का प्रवाह बना रहेगा। इस समझौते में यह भी कहा गया था कि 28 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेन्ड (क्यूमिक) पानी हरिद्वार की हर की पैड़ी से बहने वाली नहर में सदा बनाये रखा जायेगा। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने इस समझौते को आधार बनाते हुए कहा है कि हरिद्वार से 36 क्यूमिक और नरौरा से 24 क्यूमिक पानी छोड़ा जायेगा। सरकार का यह मंतव्य कमजोर है। पहला यह कि मालवीयजी के समझौते में बैराज में बिना रेग्यूलेटर के एक खुले दरवाजे की व्यवस्था थी जो कि हरिद्वार और नरौरा में नहीं है। दूसरे, मालवीयजी के समझौते में 28 क्यूमिक पानी नदी के लिये नहीं छोड़ा गया था बल्कि नदी से निकाली जाने वाली नहर, जिस पर हर की पैड़ी बनी हुई है, उसके लिये नहीं छोड़ा गया था। निकाले जाने वाले पानी के आधार पर नदी के प्रवाह को स्थापित करना पूर्णतया अनुचित है। तीसरे, हरिद्वार में 36 क्यूमिक तथा नरौरा में 24 क्यूमिक पानी इन स्थानों पर नदी में बहने वाले पानी का मात्र 6 प्रतिशत और 3 प्रतिशत बैठता है। यह आईआईटी समूह द्वारा हाइड्रोपावर के लिये संस्तुति दिये गये 50 प्रतिशत से बहुत ही कम है।
देश की नदियों को पुनर्जीवित करने के लिये जरूरी है कि बैराज तथा डैम में एक हिस्सा खुला छोड़ा जाये। एनडीए सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है। इसलिये देश की नदियों का भविष्य संकट में ही दिख रहा है। हाल ही में आईआईटी के पूर्व प्रोफेसर जी. डी. अग्रवाल ने 111 दिन की निराहार तपस्या कर शरीर छोड़ दिया। सन्त गोपाल दास को भोजन त्यागे हुए 130 दिन से अधिक हो चुके हैं और स्वामी आत्मबोधानन्द को लगभग 40 दिन। दोनों को अस्पताल में जबरन ले जाकर जबरदस्ती खिलाया जा रहा है। लगता है कि मोदी सरकार आंख मूंदे हुए है।
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