संपादकीय

10-Dec-2018 11:50:50 am
Posted Date

मौत के गड्ढे

प्रशासनिक संवेदनहीनता की दास्तां
सुप्रीमकोर्ट की पहल पर बनी सडक़ सुरक्षा कमेटी की रिपोर्ट चौंकाती है कि चार सालों में करीब पंद्रह हजार लोग सडक़ों पर बने गड्ढों की वजह से मौत का शिकार हुए हैं। रिपोर्ट पर कड़ी नाराजगी जताते हुए सुप्रीमकोर्ट की टिप्पणी उद्वेलित करती है कि सीमा पर आतंकवादियों के हमले में उतने लोग नहीं मरते, जितने गड्ढों में गिरने की वजह से मरते हैं। ये आंकड़े स्थानीय प्रशासन व निकायों की आपराधिक लापरवाही को ही उजागर करते हैं कि उन्हें लोगों की जान की कितनी परवाह है। ये कहानी हर छोटे-बड़े शहर की है। ‘सब चलता है’ की तर्ज पर शहरों में सडक़ों के गड्ढे महीनों खुले रहते हैं जब तक कि कोई दुर्घटना होने पर जनता का दबाव न पड़े। जो बताता है कि स्थानीय प्रशासन कितनी लापरवाही से लोगों के जीवन से खिलवाड़ कर रहा है। जो हमें यह सोचने को मजबूर करता है कि ये गंभीर समस्या स्थानीय चुनावों में मुद्दा क्यों नहीं बनती। हमारी राजनीति लगातार कृत्रिम मुद्दे उभारकर आम आदमी से जुड़े उन गंभीर मुद्दों को हाशिये पर डाल देती है, जिनसे लोगों का रोज का वास्ता पड़ता है। यह स्थिति कमोबेश सारे देश में है।
ऐसे में देखना यह होगा कि सुप्रीमकोर्ट की सक्रियता के बाद गड्ढों को लेकर अधिकारी कितने सजग और सक्रिय होते हैं। पिछले दिनों सुप्रीमकोर्ट ने ऐसी ही सख्ती स्पीड ब्रेकरों से होने वाली दुर्घटनाओं की बाबत दिखायी थी। मगर किसी गली-मोहल्ले में चले जायें तो तमाम मानकों के विपरीत बने स्पीड ब्रेकर नजर आयेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि हर मामले में कोर्ट को ही पहल क्यों करनी पड़ती है। स्थानीय प्रशासन और निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों व सरकारी अधिकारियों का क्या यह दायित्व नहीं बनता कि वे तुरंत गड्ढों का संज्ञान लेकर कार्रवाई करें ताकि किसी दुर्घटना की गुंजाइश ही न रहे। यहां सवाल नागरिकों की जिम्मेदारी का भी है कि वे ऐसे मामलों में अपने स्तर पर पहल क्यों नहीं करते। गड्ढे न भी भरवा सकें तो भी मीडिया व सामाजिक समूहों के जरिये प्रशासन पर दबाव तो बनवा ही सकते हैं। यहां सवाल शहरीकरण को लेकर अपनायी जा रही ढुलमुल नीतियों का भी है जो ठेकदारों के भरोसे सडक़ों को छोड़ देती हैं और सडक़ निर्माण की गुणवत्ता की जांच-पड़ताल नहीं करती। सडक़ों में गड्ढे होना जहां घटिया निर्माण सामग्री का परिणाम है, वहीं सडक़ों व अन्य निर्माण कार्यों को लेकर दूरदर्शी तकनीकी नजरिये का अभाव होना भी है।

 

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