मुंबई। कोविड-19 महामारी ने हवाई अड्डों के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। यह चुनौती बायोलॉजिकल वेस्ट की है। उड़ान के बाद यात्री भारी मात्रा में पीपीई किट एयरपोर्ट्स पर छोड़ रहे हैं जिन्हें ठिकाने लगाना बड़ी चुनौती है। एयरपोर्ट्स के अधिकारियों का कहना है कि देश के छह सबसे व्यस्त हवाई अड्डे दिल्ली, मुंबई, बेंगलूरु, हैदराबाद, कोलकाता और चेन्नई रोज 6,000 किलो से अधिक बायोवेस्ट हैंडल कर रहे हैं। कोविड-19 से पहले यह मात्रा नहीं के बराबर थी। इतना ही नहीं पीपीई किट को रैप करने के लिए इस्तेमाल हुआ 500 किलो प्लास्टिक भी रोज हवाई अड्डों पर इक_ा हो रहा है।
विभिन्न एयरलाइंस एग्जीक्यूटिव्स के आंकड़ों के मुताबिक देश में एयरलाइन कंपनियां रोज 80,000 ऐसी किट्स का इस्तेमाल करती हैं। लगभग हर एयरपोर्ट ने इन्हें कलेक्ट करने और ठिकाने लगाने के लिए थर्ड पार्टी कॉन्ट्रैक्टर्स से करार किया है। स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने ईटी से कहा कि हेल्थ राज्य का विषय है और राज्यों को बायोमेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के लिए जारी गाइडलाइंस का इस्तेमाल करना चाहिए।
कैसे होना चाहिए निपटारा
सेंट्रल पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के नोटिफिकेशन के मुताबिक व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, शॉपिंग मॉल्स, इंस्टीट्यूशंस, ऑफिस आदि में आम लोगों द्वारा छोड़े गए पीपीई किट्स को सेपेरेट बिन में तीन दिन तक स्टोर किया जाना चाहिए और फिर उन्हें काटकर सूखे ठोस कचरे की तरह निपटान किया जाना चाहिए। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की डायरेक्टर सुनीता नारायण ने कहा, यह चिंता का विषय है। एयरपोर्ट भारी मात्रा में बायो वेस्ट पैदा करने वालों की श्रेणी में आते हैं। इसके लिए हर एयरपोर्ट को इसके लिए अपनी अलग गाइडलाइन बनानी चाहिए। टेरी में रिसर्च एसोसिएट मेहर कौर ने कहा, हवाई अड्डों को प्लास्टिक वेस्ट खासकर पीपीई किट्स के कलेक्शन, ट्रीटमेंट और निपटान के लिए एक उचित व्यवस्था बनानी चाहिए।
कौन है जिम्मेदार
एयरपोर्ट तो प्रॉसीजर का पालन करते हैं लेकिन अक्सर पैसेंजर ऐसा नहीं करते हैं। बेंगलूरु एयरपोर्ट के एक एग्जीक्यूटिव ने कहा कि यात्री खाना और पैकेट उसी बिन में डाल देते हैं जो पीपीई किट के लिए होता है। इससे परेशानी होती है। कॉन्ट्रैक्टर उसे नहीं लेता है। एयरपोर्ट स्टाफ फूड और दूसरा सामान पीपीई से अलग करता है और फिर इसे कॉन्ट्रैक्टर को देता है।