संपादकीय

07-Dec-2018 12:56:04 pm
Posted Date

दो खेमों के बीच भारत

रूस-चीन के करीब आना भी अहम
ब्यूनस आयर्स में दुनिया के आर्थिक रूप से शक्तिशाली बीस राष्ट्रों की नवीनतम बैठक को ‘टालमटोल शिखर सम्मेलन’ कहा जाए तो कोई गलत न होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने रूसी राष्ट्राध्यक्ष पुतिन से मुलाकात को टाल दिया, चीन ने व्यापार युद्ध से बचने की कोशिश की, पुतिन ने यूक्रेन के साथ उलझने से बचने की कोशिश की। विश्व व्यापार संधि के मौजूदा स्वरूप में सुधार का मुद्दा उठा और जलवायु परिवर्तन को आगे बढ़ाने की चर्चा से परहेज किया। वहीं भारत को दोनों ही खेमों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश करते हुए खुद को महत्वपूर्ण स्थिति में पहुंचाने की मशक्कत करते देखा गया। हालांकि जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत महत्वपूर्ण निर्धारक नहीं होता। भारत-रूस-चीन (आईआरसी) शिखर सम्मेलन 12 वर्षों के बाद हुआ जो यह दर्शाता है कि भारत क्षेत्रीय दृष्टिकोण से पड़ोस में संवाद और संपर्क बढ़ाने का इरादा रखता है। जिस तरह से जापान और अमेरिका ने भारत को शामिल करने के लिए आखिरी पल में अपने द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन का विस्तार किया, इससे भारत की भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी महत्ता और अहमियत का पर्याप्त संकेत तो मिला ही है।
वहीं जापान-भारत-अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय संबंधों में प्रगति भी उम्मीद के हिसाब से ठीक ही रही। इसके अलावा, हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व को एक दायरे में सीमित रखने के लिहाज से भारत और उसके सहयोगियों की प्रगति जारी है। हालांकि, रूस और चीन के साथ रचनात्मक कूटनीति के लिए भारतीय भूमिका को लेकर कोई खास उत्साह नहीं नजर नहीं आया। उनके साथ संबंधों को आगे बढ़ाने का कार्य भारत पर छोड़ दिया गया है। आरआईसी शिखर सम्मेलन का सबसे उल्लेखनीय परिणाम रहा आतंकवाद के साथ मिलकर काम करने की इच्छा। भारत, रूस और चीन तीनों ही देश इस्लामी आतंकवाद से प्रभावित देश हैं। इन देशों के बीच सर्वसम्मति से शंघाई सहयोग संगठन को विस्तारित करना चाहिए और पाकिस्तान पर शांति के प्रभावी प्रयासों का दबाव भी कायम होना चाहिए, जो एक सदस्य भी है। यह परिस्थितियों पर मंथन का मौसम है और भारत स्वयं को केंद्र में रखने में कामयाब रहा है।

 

Share On WhatsApp