आज के मुख्य समाचार

11-Nov-2020 2:14:30 pm
Posted Date

पीएम का चेहरा और केंद्रीय योजनाओं ने थामी एंटी इनकंबैंसी की बयार

  • मोदी साबित हुए गेमचेंजर कमजोर हुए नीतीश
  • परिणाम ने ओवैसी को बनाया मुसलमानों का नया चेहरा
  • खुद बुझ कर भाजपा को रोशन कर गए चिराग
  • कांग्रेस ने लगाया तेजस्वी की उम्मीदों पर ग्रहण

नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी महागठबंधन के मुंह से जीत का निवाला निकाल कर गेमचेंजर साबित हुए। पहले चरण में बुरी तरह पिटे राजग ने अगले दो चरणों में पीएम मोदी के चेहरे और केंद्रीय योजनाओं के सहारे न सिर्फ सीएम नीतीश के खिलाफ एंटी इनकंबैंसी की बयार रोकी, बल्कि जीती बाजी पलटने में भी कामयाब रही। पूरी लड़ाई में नीतीश कमजोर पड़े तो हार के बावजूद तेजस्वी ने अपने नेतृत्व का लोहा मनवाया। हां, इस पूरी लड़ाई में अपने घर को फूंक कर चिराग भाजपा का घर रोशन कर गए।
दरअसल पहले चरण के चुनाव में राजग पर जबर्दस्त बढ़त हासिल कर विपक्षी महागठबंधन ने एक समय राज्य में सत्ता परिवर्तन की पटकथा लिख दी थी। मगर दूसरे चरण में पीएम मोदी और केंद्रीय योजनाओं के सहारे राजग ने वापसी की तो तीसरे चरण में जबर्दस्त प्रदर्शन कर विपक्षी महागठबंधन की सत्ता पाने की मजबूत उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
मोदी साबित हुए गेमचेंजर
दरअसल राज्य में नीतीश और खास कर उनके तीसरे कार्यकाल के खिलाफ मतदाताओं में भारी नाराजगी थी। नाराजगी का आलम यह था कि भाजपा समर्थक मतदाता भी जदयू के पक्ष में वोट करने के लिए तैयार नहीं थे। इसी बीच पीएम मोदी ने मोर्चा संभाला और जंगलराज के मुद्दे को हवा देने के साथ तेजस्वी की लोकलुभावन घोषणाओं पर तथ्यात्मक वार शुरू किया। तेजस्वी को जंगलराज का युवराज बता कर राज्य के लोगों को लालू-राबड़ी शासनकाल की याद दिलाई। हालात को भांपते हुए राजग ने मोदी को चेहरा बनाया। कई रैलियों में खुद नीतीश मोदी के नाम पर वोट मांगते दिखे। इससे दूसरे और तीसरे चरण में अचानक नीतीश के खिलाफ चल रही एंटी इनकंबैंसी की बयार थमती दिखी।
केंद्र्रीय योजनाओं-महिलाओं ने निभाई भूमिका
राजग की सत्ता बरकरार रखने में केंद्रीय योजनाओं और महिलाओंं ने भी अहम भूमिका निभाई। कोरोना काल में जनधन योजना की महिला खाताधारकों में नकद राशि भेजने, मुफ्त अनाज कार्यक्रम,  लाखों की संख्या में बने शौचालय और इतनी ही संख्या में बांटे गए मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन का असर जमीन पर दिखा। जमीन पर भले ही नीतीश के खिलाफ नाराजगी थी, मगर यही नाराजगी भाजपा के खिलाफ नहीं थी। इससे पहले नीतीश की शराबबंदी योजना, पंचायत चुनावों में महिलाओं को आरक्षण और स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का लाभ राजग को मिला था।
कांग्रेस ने डुबा दी महागठबंधन की नैया
चुनाव में कांग्रेस खुद तो डूबी ही अपने साथ विपक्षी महागठबंधन को भी डुबा दिया। ढंग के उम्मीवार की कमी और बेहद कमजोर संगठन के बावजूद कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी और महज 17 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई। जाहिर तौर पर अगर कांग्रेस कम सीटों पर लड़ती तो बिहार की सियासी तस्वीर बदलनी तय थी। बीते चुनाव में कांग्रेस 41 सीटों पर लड़ कर 27 सीट हासिल की थी। हालांकि तब जदयू-राजद ने कांग्रेस को डेढ़ दर्जन उम्मीदवार दिए थे। इस बार अतिआत्मविश्वास में डूबी कांग्रेस ने पार्टी के उम्मीदवार उतारे और महागठबंधन का बंटाधार कर दिया।
वाम दलों की बढ़ी ताकत
चुनाव में खास बात वाम दलों की ताकत में इजाफा है। इस चुनाव में महागठबंधन के साथ उतरे वाम दलों ने अपने हिस्से की 29 सीटों में से 16 सीटों पर जीत हासिल कर राजद से भी अच्छा प्रदर्शन किया। बीते चुनाव में वाम दलों में सीपीआई माले को चार सीटें मिली थी। इस पर वाम दलों ने अपनी सीटों में चार सौ फीसदी का इजाफा किया।
कमजोर हुए नीतीश घटा सियासी कद
नीतीश कुमार भले ही सीएम बनने में कामयाब हो गए, मगर वह न सिर्फ पहले की तुलना में कमजोर हुए बल्कि उनका सियासी कद भी बेहद घट गया। उनकी पार्टी जदयू न सिर्फ भाजपा का छोटा भाई बनने पर मजबूर हुई, बल्कि राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। चुनाव के दौरान भी नीतीश और जदयू को पीएम मोदी के नाम पर वोट मांगना पड़ा। जाहिर तौर पर नीतीश भले ही फिर से सीएम बन जाएं, मगर उनकी सियासी हनक पहले जैसी नहीं रहेगी।
राजद-कांग्रेस के लिए खतरा बने ओवैसी
इस चुनाव ने एआईएमआईएम और पार्टी के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी को नई पहचान दी। मुस्लिम बहुल सीमांचल की पांच सीटों पर पार्टी ने बड़ी जीत हासिल कर राजद और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बजा दी। नतीजे ने भविष्य में मुस्लिम इलाकों में ओवैसी का प्रभाव बढऩे की संभावना पैदा की है। जाहिर तौर पर अगर उनकी सियासी ताकत बढ़ी तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस, राजद सहित कथित धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले दलों को उठाना होगा।
खुद बुझ कर भाजपा को रोशन कर गए चिराग
इस सियासी जंग में लोजपा और पार्टी के मुखिया चिराग पासवान खुद जरूर बुझे, मगर भाजपा का घर जरूर रोशन कर दिया। भाजपा समर्थन और नीतीश विरोध की उनकी राजनीति का जदयू को खासा नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि इस जंग में चिराग की पार्टी बस खाता खोलने में कामयाब रही। अगर चिराग की रणनीति के पीछे भाजपा थी तो उसे इसका लाभ मिला। भाजपा की गठबंधन में बड़ा भाई बनने की तमन्ना पूरी हो गई।
चूके मगर फाइटर साबित हुए तेजस्वी
कांग्रेस के लचर प्रदर्शन के कारण भले ही तेजस्वी सत्ता की देहरी तक आ कर अटक गए, मगर इस पूरे सियासी जंग में बेहतरीन फाइटर जरूर साबित हुए। मोदी-नीतीश-शाह-योगी जैसे सियासी धुरंधरों को अपने दम पर जबर्दस्त टक्कर दी। राजद का सबसे बड़ी पार्टी का ओहदा बरकरार रखा। तेजस्वी ने यह कमाल तब दिखाया जब इस जंग में उनके पिता लालू प्रसाद यादव उनके साथ नहीं थे। चुनाव मेंं उनकी छवि फाइटर के रूप में उभरी है।
चरण दर चरण बदलता गया खेल
पहले चरण में तेजस्वी की अगुवाई में विपक्षी महागठबंधन ने सत्तारूढ़ राजग पर जबर्दस्त बढ़त बनाई थी। हालांकि बाद में चरण दर चरण खेल बदलता चला गया और आखिरकार बाजी फिर से राजग के हाथ लगी। दरअसल पहले चरण की 71 सीटों में से महागठबंधन को 48 तो राजग को महज 21 सीटें हाथ लगी। इसके बाद दूसरे चरण में राजग ने वापसी की और इस चरण की 94 में से 52 सीटों पर कब्जा जमाया। यहां महागठबंधन को 42 सीटें हाथ लगी। तीसरे चरण की 78 सीटोंं  ने बाजी पलट दी। इस चरण में राजग को 53 तो महागठबंधन को महज 20 सीटें हाथ आई। तीसरे चरण में कांग्रेस ने ज्यादातर सीटों पर हार कर महागठबंधन को कहीं का नहीं छोड़ा।
हर चरण के लिए अगर रणनीति
भाजपा ने हर चरण के लिए अलग रणनीति अपनाई। मसलन दलित वर्चस्व वाले पहले चरण की सीटों पर महागठबंधन से मात खाने के संकेत के बाद पार्टी ने रणनीति बदली। नीतीश पर्दे के पीछे चले गए और अचानक राजग ने चेहरा के रूप में पीएम मोदी को आगे किया। जंगलराज जैसे मुद्दों को हवा देने के साथ तेजस्वी की लोकलुभावन घोषणाओं पर वार करना शुरू किया। तीसरे चरण में मोदी की अगुवाई में राजग ने राष्टï्रवाद और विकास की लाइन ली और सियासी बाजी अपने पक्ष में करने में सफल रहे।
क्यों चूक गए तेजस्वी?
यह सच है कि चुनाव में नीतीश के खिलाफ गहरी नाराजगी थी। तेजस्वी की रैलियों में भारी भीड़ भी जुट रही थी। उनका दस लाख सरकारी नौकरी देने, पलायन रोकने और उद्योग लगाने का मुद्दा मतदाताओं के सिर चढ़ कर बोल रहा था। हालांकि नतीजे से साबित हुए कि तेजस्वी रैली में आई भीड़ और लोगों की नाराजगी को वोट में नहीं बदल पाए। संभवत: वह अपनी घोषणाओं के संदर्भ में लोगों के मन में भरोसा पैदा नहीं कर पाए। ऐसा इसलिए कि उन्होंने घोषणा तो की मगर उन पर अमलीजामा पहनाने का रोडमैप पेश नहीं कर पाए। इसके अलावा नतीजे से यह भी साबित हुआ कि बिहार के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग में अब भी राजग की पूर्ववर्ती शासनकाल के दौरान छाई रहने वाली अराजकता का भय बरकरार है। यह वर्ग नीतीश से नाराज होने के बावजूद तेजस्वी पर भरोसा नहीं कर पाया।

Share On WhatsApp