छत्तीसगढ़

04-Nov-2020 1:15:30 pm
Posted Date

आपदा को अवसर में बदला दवा कंपनियों ने, दवाईयों के मूल्यों में अप्रत्याशित वृद्धि से मरीज परेशान

  • कोरोना काल में दवाओं के व्यवसाय में अन्य लोग भी हो रहे शामिल 
  • शहर के चिकित्सकों ने भी महंगी दवा मिलने पर शासन को जिम्मेदार ठहराया 

रायपुर। कोरोना वायरस कोविड 19 वैश्विक महामारी के चलते देश एवं प्रदेश में अब तक कोरोना पाजीटिव संक्रमण से हजारों प्रभावितों की मौत हो चुकी है। देश में आए इस संकट का मल्टी इंटरनेशनल दवा कंपनियों द्वारा आपदा को अवसर में तब्दील कर दवाओं के मूल्य में जबर्दस्त वृद्धि के चलते अधिकांश मरीज परेशान है। वहीं निजी चिकित्सा संस्थानों में भी महंगी चिकित्सा एवं महंगी दवाओं ने मरीज एवं उसके परिजनों की स्थिति को जर्जर कर दिया है।  दवा बाजार सूत्रों के अनुसार कंपनियों द्वारा विक्रय की गई दवाएं मेडिकल स्टोर संचालकों को अधिक कीमत पर मिलती है जिसके चलते इसका सीधा भार मरीज एवं उनके परिजनों को उठाना पड़ रहा है। कई दवा कंपनियों के एरिया सेल्स मैनेजर एवं दवा प्रतिनिधियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया है कि अप्रत्याशित वृद्धि का विरोध करने पर कई कर्मियों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। 
गौरतलब है कि नौ रुपये की लागत में बनने वाली ग्लूकोश की बोतल बाजार में दवा विक्रेताओं द्वारा 160-170 रुपये के दाम में प्रति बोतल बेची जा रही है वहीं पैरासिटामाल कंटेंट फार्मूले से निर्मित दवाओं के स्ट्रीप में भी 3 से 4 गुना वृद्धि यथा ब्लड प्रेशर, डायबिटीज आदि की दवाएं भी इन दिनों महंगी बिक रही हैं। अल्ट्रासेट दर्द निवारक दवा जो कोरोनाकाल से पहले 160-150 रुपये में 15 गोली मिलती थी वह अब 201 मूल्य पर बेची जा रही है। वहीं दर्द निवारक रोजीवाक दवा दस टेबलेट 350 रुपये में बेची जा रही है जिसके चलते मरीजों की हालत दवा खरीदते खरीदते पस्त हो चुकी है। 
ज्ञातव्य है कि कोरोना काल में लंबे लाकडाउन के कारण कई व्यावसाय ठप्प होने के कारण वहां के सेठ भी दवा बाजार में जोर आजमाइश कर जमकर कमाई कर रहे हैं। आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. चंद्रमणी तिवारी ने जीवनरक्षक दवाओं के मूल्यों में हुई एकाएक वृद्धि को जनहित के विपरीत करार दिया है वहीं उन्होंने केंद्र सरकार एवं प्रदेश सरकार द्वारा मनमानी दरों पर बिक रही दवाओं पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए उक्त महंगी दवाओं के मूल्यों में कमी लाने की मांग की है। शहर के वरिष्ठ चिकित्सक एवं आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अशोक त्रिपाठी ने भी सोशल मीडिया पर 15 रुपये की स्ट्रीप 120 में बिकने पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए स्वास्थ्य विभाग के विशेष औषधि नियंत्रक केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से जानना चाहा है कि उक्त दवाओं को महंगे मूल्यों पर बेचने की अनुमति कौन देता है एवं अच्छी दवाएं मरीजों की सर्वोत्तम चिकित्सा के लिए पर्ची पर लिखे जाने पर महंगी मिलने पर मरीज एवं उसके परिजन डॉक्टरों की कड़ी निंदा करते हैं जबकि दवा बनाने वाली कंपनियों पर डॉक्टरों का कोई अधिकार नहीं है वे केवल अपने अस्पताल में आने वाले मरीजों का इलाज करते हैं। शासन की जिम्मेदार एजेंसियां दवा विक्रेताओं एवं निर्माता कंपनियों पर अंकुश नहीं रख पा रही है यह उनकी लापरवाही है न की डॉक्टरों की। 

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