नईदिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि कोरोना महामारी अगर दोबारा से फैलती है तो उससे अर्थव्यवस्था में जो सुधार की शुरुआत नजर आ रहा है उस पर विपरीत असर पड़ सकता है।
वहीं, डिप्टी गवर्नर माइकल देबव्रत पात्रा का बताना है कि कोरोना की वजह से उत्पादन का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करने में अनेक वर्ष व्यतीत हो सकते हैं। आरबीआई की ओर से मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक के जारी ब्योरे के अनुसार दास ने यह भी बोला कि नीतिगत दर में कटौती की गुंजाइश है, किन्तु इस दिशा में आगे कदम मुद्रास्फीति के मोर्चे पर उभरती स्थिति पर निर्भर करेगा, जो अभी केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर चल रही है। रिजर्व बैंक की माने तो, सकल मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में नरम पड़ेगी। अगले वित्त वर्ष की पूर्व तिमाही में इसमें और कमी आने का अंदाजा है। मुद्रास्फीति जून 2020 से 6 फीसदी से ऊपर बनी हुई है। सरकार ने आरबीआई को महंगाई दर 2 फीसदी घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत के स्तर पर रखने की जिम्मेदारी दी हुई है। बता दें कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 की पूर्व तिमाही में भारत के जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट आयी है। डिप्टी गवर्नर पात्रा की माने तो, भारत इस वर्ष की पूर्व तिमाही में तकनीकी रूप से मंदी की स्थिति में पहुंचा है। यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है।
आरबीआई के कार्यकारी निदेशक मृदुल सागर ने नीतिगत दर को यथावत रखने के पक्ष में वोट करते हुए इस बात पर चिंता व्यक्त की कि यदि मौजूदा नकारात्मक वास्तविक ब्याज दर और नीचे जाती है, इससे विकृतियां पैदा हो सकती है जिससे सकल बचत, चालू खाता एवं मध्यम अवधि में बढ़ोतरी पर विपरीत असर पड़ सकता है। समिति ने मुद्रास्फीति को लक्ष्य के दायरे में लाने के संग आर्थिक बढ़ोतरी को गति प्रदान करने हेतु जब तक जरूरी हो, मौद्रिक नीति के मामले में उदार रुख रखने का भी समर्थन किया। अक्टूबर 2020 की पहले पखवाड़े में जारी मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दर रेपो को 4 फीसदी पर बरकरार रखा गया। साथ ही दूसरे दरों में भी कोई परिवर्तन नहीं किया गया।