माता के चौथे स्वरूप का पूजन विधिविधान से करने पर भक्तों को मिलती है अक्षय सुखों की प्राप्ति
रायपुर। शारदीय नवरात्र के चतुर्थ दिवस पर आज शहर के प्राचीनतम मंदिरों यथा महामाया मंदिर, शीतला मंदिर, पुरानी बस्ती आमापारा, मां दंतेश्वरी मंदिर कुशालपुर, मां कालीमंदिर आकाशवाणी आमापारा, महादेव घाट एवं कंकाली मंदिर में मां कुष्मांडा की आराधना मंदिर के पुजारियों द्वारा विधि विधान से पूजा कर संपन्न की गई। ज्ञातव्य है कि माता के नवरूपों में माता कुष्मांडा का विशिष्ठ महत्व है। नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमश: कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कुष्मांडा। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। यह देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। यह देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंतत: इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
मंत्र- सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे॥
मां कुष्मांडा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा। मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था। मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी। पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है। इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है।
मां कुष्मांडा की पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा स्वरूप की विधिवत करने से विशेष फल मिलता है। पूजा में मां को लाल रंग के फूल, गुड़हल या गुलाब का फूल भी प्रयोग में ला सकते हैं, इसके बाद सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें। सफेद कुम्हड़े की बलि माता को अर्पित करें। कुम्हड़ा भेंट करने के बाद मां को दही और हलवा का भोग लगाएं और प्रसाद में वितरित करें।