संपादकीय

04-Dec-2018 1:08:28 pm
Posted Date

सद्भाव संगीत के विरुद्ध बेसुरे राग

विश्वनाथ सचदेव
गांधीजी की प्रार्थना सभा में जो भजन अक्सर गाए जाते थे, उनमें एक नरसी का वैष्णव जन वाला गीत था, जिसमें पराई पीर को समझना धार्मिक होने की एक शर्त मानी गई थी और दूसरा ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ वाला वह गीत था, जिसमें एक ईश्वर की परिकल्पना को स्वर दिया गया था, होंगे तब भी कुछ लोग, जिन्हें ईश्वर और अल्लाह को एक कहने में कुछ कष्ट होता होगा पर उदार धार्मिक वृत्ति वाले किसी भी व्यक्ति को यह भजन गाए जाने पर एतराज नहीं था। आज भी गांधी के ये दोनों भजन बड़ी आस्था और तन्मयता से गाए जाते हैं। धार्मिक सद्भाव का एक संदेश देते हैं ये भजन। ‘एकं सत विप्रा: बहुधा वदंति’ में विश्वास करने वाली भारतीय मनीषा में भला ईश्वर या अल्लाह या गॉड को याद करने पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।
पर कुछ लोगों को आपत्ति है। कुछ दिन पहले राजधानी दिल्ली में कर्नाटक संगीत के जाने-माने कलाकार टी.एम. कृष्णा का एक कार्यक्रम आयोजित किए जाने की घोषणा हुई थी। कृष्णा अपने गीतों में ईश्वर, अल्लाह और गॉड तीनों को एक साथ याद करते हैं। सूफी गीत भी गाते हैं, पराई पीर को समझने का संदेश भी देते हैं, ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ के स्वर भी गुंजाते हैं और यीशु को भी याद करते हैं। सर्वधर्म समभाव की बात कहने वाले इस कार्यक्रम को ‘एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ के आर्थिक सहयोग से आयोजित किया जा रहा था। लेकिन निर्धारित तिथि से दो-चार दिन पहले अचानक भारत सरकार के इस संस्थान ने ‘कुछ जरूरी काम’ में व्यस्तता के नाम पर इसे स्थगित करने की घोषणा कर दी। इस घोषणा में यह नहीं बताया गया था कि कार्यक्रम की अगली तारीख क्या है। यह स्थगन कोई अनहोनी बात नहीं थी। कार्यक्रम कई बार स्थगित करने पड़ते हैं, फिर आयोजित हो जाते हैं। पर, टी.एम. कृष्णा के इस कार्यक्रम का स्थगित होना सामान्य बात नहीं थी। कुछ खास था इस स्थगन में कि विश्व प्रसिद्ध गायक को यह कहना पड़ा कि वे किसी के भी आमंत्रण पर दिल्ली में यह कार्यक्रम करने को तैयार हैं। और फिर दिल्ली सरकार के आमंत्रण पर उन्होंने यह कार्यक्रम किया भी।
महत्वपूर्ण है केंद्र सरकार के एक संस्थान द्वारा स्थगित किए गए कार्यक्रम को दिल्ली की ‘आप’ पार्टी की सरकार द्वारा आयोजित किया जाना, पर इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि टी.एम. कृष्णा के कार्यक्रम को केंद्रीय सरकार के एक संस्थान द्वारा ‘जनता के पैसों’ से आयोजित किए जाने का विरोध करने वालों ने संस्थान को बाध्य किया था कार्यक्रम न करने के लिए। इन तत्वों को शिकायत कृष्णा द्वारा ईसाई गीत गाने से थी। उनका यह मानना है कि टी.एम. कृष्णा ‘राष्ट्र-विरोधी’ हैं। इसीलिए ये तत्व सोशल मीडिया पर कर्नाटक संगीत के इस पुरोधा का विरोध कर रहे थे। इस विरोध को आज ‘ट्रॉल’ किया जाना कहते हैं और यह तत्व इतने ताकतवर हो गए हैं कि ‘एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ को कार्यक्रम से अपने आप को अलग करना पड़ गया।
इस कार्रवाई के पीछे कुछ भी कारण बताए जा रहे हों पर है यह एक सेंसरशिप ही। इस तरह की कार्रवाई, दुर्भाग्य से, हमारे यहां कोई नई बात नहीं है। सरकारें पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाती रही हैं, कला प्रदर्शनियों के आयोजन रोके जाते रहे हैं, कलाकारों और लेखकों को प्रताडि़त किया जाता रहा है। इसी प्रवृत्ति के चलते एम.एफ. हुसैन को अपना देश छोडक़र जाना पड़ा था और मुरुगन जैसे तमिल साहित्यकार को ‘अपने साहित्यकार’ की ‘आत्महत्या’ की घोषणा करनी पड़ी थी।
हमारे संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। हर नागरिक को अपनी बात कहने का अधिकार है। यह सही है कि स्वतंत्रता का मतलब असीमित उच्छृंखलता नहीं है। मर्यादा में रहकर हम अपनी स्वतंत्रता का उत्सव मनाते रह सकते हैं। विचार-वैभिन्य हमारे जनतंत्र की खूबी है। हजार फूलों का साथ-साथ खिलना हमारी सुंदरता है। लेकिन पिछले एक अर्से से असहमति के अस्वीकार की अजनतांत्रिक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। टी.एम. कृष्णा जैसे कलाकार के कार्यक्रम को रोकने की कोशिश इसी प्रवृत्ति का एक उदाहरण है किसी को भी राष्ट्र विरोधी कह देना एक सामान्य-सी बात हो गई है
कहा यह जा रहा है कि टी.एम. कृष्णा एक कलाकार होने के साथ-साथ ‘एक्टिविस्ट’ भी हैं। शब्दकोश के अनुसार, अंग्रेज़ी के इस शब्द का अर्थ है ‘सक्रियतावादी।’ सामान्य बोलचाल में इस सक्रियता का मतलब सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय होना माना जाता है। पर इस सक्रियता के विरोधी इसे राष्ट्र-विरोध मानते हैं। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है। इसी प्रवृत्ति के चलते कभी किसी विश्वविद्यालय में ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ दिख जाती है और कभी साहित्य अकादमी का विरोध करने वाले ‘अवार्ड वापसी गैंग’ के सदस्य घोषित कर दिए जाते हैं। यह संभव है, और शायद है भी कि कलाकार टी.एम. कृष्णा के कुछ राजनीतिक विचार हों, लेकिन राजनीतिक विचार या फिर भिन्न राजनीतिक विचार अपराध कैसे हो सकते हैं? यदि कोई राष्ट्र विरोधी काम करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, पर किसी को भी राष्ट्र विरोधी घोषित करने का अधिकार कुछ लोगों को कैसे मिल सकता है?
जहां तक धार्मिक प्रतिबद्धता का सवाल है, देश के हर नागरिक को अपनी आस्था और विश्वास के साथ जीने का अधिकार है। हमारा संविधान तो अपने धर्म के प्रचार का अधिकार भी देता है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि दूसरे के धर्म का अपमान किया जाए। भारतीय समाज बहुधर्मी है, बहुभाषी है। यहां सदियों से भिन्न मतों-विचारों, मान्यताओं वाले लोग साथ-साथ रहते आए हैं। यह विभिन्नता हमारी ताकत है, हमारी सुंदरता भी। लेकिन सच्चाई यह भी है कि हमारे समाज में असहिष्णुता पनप रही है। धर्म के नाम पर लेखकों, कलाकारों, संगीतज्ञों के विरुद्ध एक खतरनाक वातावरण बनाया जा रहा है। सच पूछा जाए तो वह राष्ट्र विरोधी नहीं है जो ईश्वर, अल्लाह, गॉड के गीत गाता है। राष्ट्र-विरोधी वह है जो इस धार्मिक सद्भावना को किसी भी तरह से चोट पहुंचा रहा है।
किसी भी कलाकार की राजनीतिक व सामाजिक सक्रियता पर किसी को आपत्ति हो सकती है, पर यह आपत्ति उसकी कला को प्रतिबंधित नहीं कर सकती। यहीं यह बात भी समझनी होगी कि किसी सरकार का विरोध करने का मतलब देश का विरोध करना नहीं होता। टी.एम. कृष्णा का संगीत सुनाना उनका अधिकार है और उसे सुनने का अधिकार भी देश के नागरिक को है। इस दृष्टि से देखें तो दिल्ली की सरकार ने कार्यक्रम को आयोजित करके केंद्र की सरकार का दायित्व निभाया है। सरकारों का दायित्व है कि राम-रहीम के नाम पर नफरत फैलाने वालों पर अंकुश लगाएं। ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ का गांधीजी का संदेश उस धार्मिक सद्भावना की पहली शर्त है जो भारतीय समाज को परिभाषित करती है। इस संदेश को सही अर्थों में समझने-समझाने की जरूरत है।

 

Share On WhatsApp