मुंबई ,02 दिसंबर । मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मुसलमानों को आरक्षण न देने के फैसले से मुस्लिम समुदाय में गम और गुस्सा है। कई मुस्लिम धार्मिक संगठनों के पदाधिकारियों ने इस फैसले को खुले तौर पर मुस्लिम विरोधी बताया और इस अन्याय के खिलाफ लडऩे का संकल्प किया है। सरकार के सब का साथ, सब का विकास के नारे को ढकोसला और महज चुनावी प्रचार बताया।
जमीअतुल उलेमा महाराष्ट्र के सेक्रेटरी गुलजार अहमद आजमी ने कहा, फडणवीस सरकार के इस बर्ताव से एक बार फिर बीजेपी की मुसलमानों से नफरत साबित हो गई है। सब का साथ, सब का विकास का नारा झूठा है और जब भी मौका मिला है, बीजेपी ने मुसलमानों को डसा है।
रजा अकेडमी के जनरल सेक्रटरी मोहम्मद सईद नूरी ने कहा, बीजेपी सरकार से तो मुसलमानों को कोई उम्मीद थी ही नहीं। मुस्लिम आरक्षण को लेकर उनका रद्दे-अमल उनके असल अजेंडा को पेश करता है। जहां तक पिछली सरकार की बात है, तो उन्होंने भी जाते-जाते 5 प्रतिशत आरक्षण इस कच्चे अंदाज में दिया कि वह मामला फौरन ही खत्म होकर रह गया। जमीअतुल उलेमा के अध्यक्ष हाफिज नदीम सिद्दीकी ने कहा, फडणवीस का मुसलमानों को आरक्षण न देने की बात करना बीजेपी की मुसलमानों को लेकर असली सोच को दर्शाता है। यह मुसलमानों के साथ अन्याय है। सरकार यह जान ले कि हम अदालत से ले कर सडक़ों तक आंदोलन जारी रखेंगे और आरक्षण लेकर ही दम लेंगे।
अखिल भारतीय उलेमा कौंसिल के सेक्रटरी मौलाना मेहमूद खान दरयाबादी ने कहा, हाई कोर्ट ने मुसलमानों को 5 प्रतिशत शैक्षिक आरक्षण की अनुमति दी थी। इसके बावजूद अगर मुसलमानों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है, तो यह उनके साथ सरासर नाइंसाफी है। उन्होंने कहा मुस्लिम समाज आज भी हर मैदान में दूसरों से बहुत पीछे है, इसीलिए मुसलमानों को आरक्षण हासिल करने की कोशिशें जारी रखनी चाहिए।
जमीअत अहले-हदीस के अध्यक्ष मौलाना अब्दुस्सलाम सलफी ने कहा, जिन मुद्दों को देखते हुए मुसलमानों को 5 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था, जिसे अदालत ने भी जारी रखने को कहा था, उन्हें देखते हुए राज्य सरकार का मुसलमानों को आरक्षण न देना बिलकुल गलत है। मुसलमानों को भी तरक्की के मौके दिए जाने चाहिए, जिससे वह आगे बढ़ सकें। ऐसे पक्षपात के माहौल में तरक्की कैसे मुमकिन होगी।