अब ट्विटर राजनयिक महत्ता के विचित्र दौर में पहुंच गया लगता है। गंभीर राजनयिक द्वंद्व के लिए शायद ही किसी राष्ट्राध्यक्ष ने ट्विटर को इस तरह से इस्तेमाल करने की सोची होगी, जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप और इमरान खान ने कर डाला। ट्रंप के ट्वीट के जवाब में पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने सिद्ध कर दिया कि यह राम मिलाई जोड़ी ही है। अमेरिका ने आरोप लगाया कि ‘ये हमारा पैसा खाते हैं परंतु हमारे लिए कुछ भी नहीं करते।’ इस पर इमरान खान ने कहा कि 9/11 के आक्रमण में कोई भी पाकिस्तानी नहीं था और पाक ने हमेशा से अमेरिका के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में उनका साथ दिया। करीब 75 हज़ार पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में मारे गए और पाक ने लगभग 123 अरब डॉलर का नुकसान सहा है जबकि यूएस की सहायता बस 20 अरब डॉलर की थी। इमरान को मालूम है कि अमेरिका पाक को गंभीरता से नहीं लेता। इमरान खान के कथनानुसार अमेरिका को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है तो पाक को भी कहीं ज्यादा आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। जिन लोगों ने वायु यानों को अपहृत किया था उनमें से कोई भी पाकिस्तानी नहीं था। परंतु उनका मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद कराची में बैठा हुआ था।
दरअसल, ओसामा के अलावा अलकायदा के बड़े आतंकवादी या तो पाक में मारे या गिरफ्तार किए गए। आखिर सभी आतंकवादियों की शरणगाह पाकिस्तान ही क्यों होता है। अफगानिस्तान में सेना से लड़ रहे तालिबानियों को शिक्षा पाक में ही क्यों मिलती है। जबकि अफगानिस्तान के लिए उसके पड़ोसी ने समस्याएं ही ज्यादा खड़ी की हैं। इस विवाद का अंत यह हुआ कि अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता बंद कर दी गई। परंतु यह कार्रवाई एक ऐसे नाजुक समय पर हुई जब अफगानिस्तान में शांति वार्ता चल रही है। तालिबान के नेता रूस और अमेरिका दोनों से शांति वार्ता कर रहे हैं। कतर और मास्को की वार्ता का अंत शांतिपूर्ण होने की उम्मीद कम है। क्योंकि पाकिस्तान में बैठे तालिबान के कमांडर पाकिस्तान की सरकार के अनुसार ही व्यवहार करते हैं।
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