सही मायनों में गुरु नानकदेव जी के 550वें प्रकाश पर्व के ठीक एक दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने करतारपुर कॉरिडोर योजना को ?मंजूरी देकर सिख श्रद्धालुओं को विशिष्ट सौगात दी है। यूं तो यह विषय वर्ष 1998 में भी उठा था, मगर पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथग्रहण समारोह में गये पंजाब के केबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पाक यात्रा के दौरान फिर नये सिरे से उठा था। अब सरकार के इस फैसले और गुरु नानक के 550वें प्रकाश पर्व से एक दिन पहले की गई कई महत्वपूर्ण घोषणाओं से पर्व का उत्साह बढ़ा है। करतारपुर गुरुद्वारा भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगभग चार किलोमीटर दूर पाकिस्तान के नरोवाल जिले में स्थित है। मान्यता है कि गुरु नानकदेव जी ने अपने जीवन के अंतिम 17-18 वर्ष यहां बिताये थे। अभी तक श्रद्धालु यहां लाहौर होकर पहुंचते रहे हैं। भारत में सरकार ने डेरा बाबा नानक में एक बड़े टेलीस्कोप के जरिये दर्शन की व्यवस्था की हुई है। अब जब करतारपुर कॉरिडोर योजना के सिरे चढऩे की शुरुआत हुई है और पाक ने भी सदेच्छा जताई है तो अब श्रद्धालु बिना वीजा के करतारपुर गुरुद्वारे में दर्शन कर सकेंगे।
हालांकि, पाक ने शीघ्र ही करतारपुर कॉरिडोर योजना को सिरे चढ़ाने की बात की है, मगर दुर्गम भौगोलिक स्थिति वाले इस क्षेत्र में योजना के क्रियान्वयन में समय लगेगा। फिर भी अब सीमा पर तारबाड़ श्रद्धालुओं का रास्ता नहीं रोक पायेगी। कॉरिडोर की आधारभूत संरचना पाकिस्तान को तैयार करनी है। इसे किसी हद तक दोनों देशों में बेहतर रिश्ते तलाशने की दिशा में उठा कदम कहा जा सकता है। उम्मीद है कि यह कॉरिडोर दिल्ली-लाहौर के बीच चलने वाली सदा-ए-सरहद बस सेवा व समझौता एक्सप्रेस की तरह तमाम कूटनीतिक विवादों के बावजूद निर्बाध गति से आवागमन के लिये खुला रहेगा। हकीकत यह भी है कि ऐसे सद्भावना प्रयासों की आड़ में पाक गाहे-बगाहे खेल करता रहा है, ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सीमा की संवेदनशीलता को महसूस करते हुए भारत सतर्क रहे। कोशिश हो कि सिख श्रद्धालु गुरु नानकदेव की कर्मस्थली करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन निर्बाध रूप से कर सकें और राष्ट्रीय सरोकार भी प्रभावित न हों। वहीं केंद्र सरकार द्वारा कॉरिडोर के निर्माण का खर्च उठाने, सुल्तानपुर लोधी को हेरीटेज सिटी बनाने, सेंटर फॉर इंटरफेथ स्टडीज की स्थापना, खास डाक टिकट व सिक्के जारी करने, नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा भारतीय भाषाओं में गुरु नानकदेव जी की शिक्षाएं प्रकाशित करने व नई ट्रेने चलाने जैसे कदम निश्चित रूप से सिख श्रद्धालुओं के लिये खास तोहफा ही हैं।
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