नईदिल्ली,21 नवंबर । चालूू वित्त वर्ष की पहली छमाही में कागज आयात में 30 फीसदी की बढोतरी होने से इस क्षेत्र के घरेलू उद्योग की चिंतायें बढ़ गयी है।
डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्टेटीस्टिक्स (डीजीसीआईएंडएस) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष की पहली छमाही में 6.8 लाख टन आयात के मुकाबले इस साल आयात 8.9 लाख टन पहुंच गया है। नये आकंड़े इस बात का भी खुलासा करते हैं कि इसी अवधि में चीन और आसियान से आयात क्रमश: 40 फीसदी और 75 फीसदी बढ़ा है।
इंडियन पेपर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईपीएमए) ने वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को लिखे एक पत्र में बुनियादी सीमा शुल्क में बढ़ोतरी और भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की समीक्षा की बात की है जिससे काफी कम शुल्क पर कागज और पेपरबोर्ड का आयात हो रहा है, जो घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंचाता है।
आईपीएमए के अध्यक्ष ए एस मेहता ने गुरुवार को यहां जारी बयान में कहा कि घरेलू कागज उद्योग ने भारी निवेश किया है और मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त क्षमता से अधिक की स्थिति में होने के बावजूद भारत ने चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान 5,000 करोड़ रुपये के पेपर और पेपरबोर्ड का आयात किया है। यदि आयात को इसी तरह निम्न कीमतों पर जारी रखा गया तो घरेलू निवेश सार्थक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भारत यकीनन दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता पेपर मार्केट है। लेकिन दुर्भाग्यवश मौजूदा मांग में वृद्धि आयात द्वारा पूरी हो रही है, जबकि घरेलू उद्योग पूरी विनिर्माण क्षमता का उपयोग नहीं कर पा रहा है।
आईपीएमए के अनुसार भारत-आसियान एफटीए और भारत-कोरिया सीईपीए के तहत, कागज और पेपरबोर्ड पर बुनियादी सीमा शुल्क में पिछले कुछ वर्षों में लगातार कमी आई है और वर्तमान में यह शुल्क शून्य फीसदी है। इसके अलावा, एशिया प्रशांत व्यापार समझौते (एपीटीए) के तहत भारत ने चीन (और अन्य देशों) के लिए आयात शुल्क रियायतें भी बढ़ा दी हैं और कागज के अधिकांश ग्रेड पर मूल सीमा शुल्क को मौजूदा 10 फीसदी से घटाकर सात फीसदी कर दिया है।