संपादकीय

तेल के खेल पर पैनी नजर रखे भारत
Posted Date : 28-Nov-2018 1:13:53 pm

तेल के खेल पर पैनी नजर रखे भारत

भरत झुनझुनवाला
वर्ष 2015 में ईरान के साथ प्रमुख देशों का एक समझौता हुआ था, जिसके अन्तर्गत ईरान पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा लगे हुए प्रतिबन्ध को हटा लिया गया था। साथ में ईरान ने अपने परमाणु अस्त्र कार्यक्रम को स्थगित करने का वायदा किया था। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संगठन ने प्रमाणित किया है कि ईरान परमाणु अस्त्र बनाने के प्रति कोई कदम नहीं उठा रहा है। इसके बावजूद राष्ट्रपति ट्रंप ने 4 नवम्बर से अमेरिकी बैंक के माध्यम से ईरान के साथ लेनदेन बंद कर दिया है। तेल का व्यापार मुख्यत: डालर में होता है जो कि अमेरिकी बैंकों द्वारा संचालित किया जाता है। अर्थ हुआ कि ईरान के लिये अपने तेल को बेचना कठिन हो जायेगा। अमेरिका का मानना है कि 2015 में जो संधि हुई थी, वह ईरान पर पर्याप्त अंकुश नहीं लगाती।
उस समय विश्व बाजार में संकट था कि आने वाले समय में ईरान से तेल उपलब्ध होगा या नहीं। ट्रंप ने आदेश दे रखा था कि 4 नवम्बर के बाद यदि कोई देश ईरान से तेल खरीदता है अथवा ईरान के साथ धन के लेनदेन में लिप्त होता है अथवा ईरान से लिये गये तेल की इंश्योरेन्स आदि करता है, उन पर प्रतिबन्ध लगा दिया जायेगा। विश्व बाजार को संदेह था कि नवम्बर से विश्व बाजार में तेल की उपलब्धि कम हो जायेगी, इसलिये उस समय तेल के दाम ऊपर चढ़ रहे थे। सितम्बर के अन्त में कच्चे तेल का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य 85 डॉलर प्रति बैरल हो गया था। इसके बाद अमेरिका ने भारत समेत आठ देशों को फिलहाल ईरान से तेल खरीदने की छूट दे दी है। इसको देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम पुन: पुराने 65 डॉलर प्रति बैरल पर आ टिके हैं। लेकिन मूल संकट विद्यमान है। अमेरिका और ईरान के बीच जो गतिरोध चल रहा है, वह किसी भी समय पुन: उभर सकता है। इसलिये हमें इस विषय पर एक दीर्घकालीन नीति बनानी होगी।
अमेरिका का मानना है कि ईरान द्वारा आतंकवादी आदि गतिविधियों को समर्थन दिया जा रहा है। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन और रूस, अमेरिका के इस एकतरफा निर्णय से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि ईरान पर दुबारा प्रतिबन्ध लगाना उचित नहीं होगा। उनकी इच्छा है कि अमेरिका द्वारा लगाये गये प्रतिबन्ध के बावजूद ईरान से तेल को खरीदा जा सके। इसके लिये उन्होंने एक वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था बनाने के प्रयास शुरू किये हैं, जिसके अन्तर्गत ईरान से खरीदे गये तेल का पेमेंट अमेरिकी वित्तीय व्यवस्था से बाहर होगा। इन देशों के इस कदम से वर्तमान में जो डॉलर का विश्व अर्थव्यवस्था पर आधिपत्य है, उस पर चोट आयेगी। तेल की वैकल्पिक व्यवस्था चालू हो जाने के बाद यह व्यवस्था अन्य सभी वित्तीय लेनदेन में लागू हो सकती है और विश्व की डॉलर के ऊपर निर्भरता न्यून हो जायेगी।
2015 के पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा ईरान पर प्रतिबन्ध लगाये गये थे। उस समय भी भारत ने ईरान से तेल खरीदना जारी रखा था। भारत ने ईरान से खरीदे गये तेल का आधा भुगतान ईरान फेडरल बैंक की मुम्बई शाखा में रुपयों में जमा करा दिया था। ईरान ने उस रकम का उपयोग भारत से माल खरीदने के लिये किया। भारत प्रयास कर सकता है कि ईरान से खरीदे गये तेल का सौ प्रतिशत पेमेंट ईरान फेडरल बैंक को कर दिया जाये। ऐसा करने पर भारत द्वारा ईरान से तेल की खरीद जारी रह सकेगी।
इस परिस्थिति में हमें तय करना है कि भारत अमेरिका का साथ देगा अथवा जर्मनी का? अमेरिका का साथ देंगे तो आने वाले समय में अमेरिका की हार होने पर उससे हम पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा अमेरिका का साथ देने पर हमको ईरान से तेल की खरीद कम करनी पड़ेगी, जिससे अपने देश में तेल के दाम में और वृद्धि होगी। ऐसे में हमें जर्मनी आदि देशों के साथ मिलकर ईरान से तेल की खरीद जारी रखनी चाहिये। यहां विषय यह भी है कि अमेरिका के साथ जुड़े रहने से हम अमेरिका के माध्यम से पाकिस्तान पर दबाव बना सकते हैं कि वह आतंकवादी गतिविधियों को कम करे। यदि इस सामरिक विषय को महत्व दिया जाता है तब ही अमेरिका के साथ रहना उचित है अन्यथा अमेरिका के साथ रहना हमारे लिये हानिप्रद होगा।
विषय का दूसरा पक्ष रुपये के दाम में आ रही निरन्तर गिरावट है। रुपये के दाम गिरने से अपने देश में आयातित कच्चा तेल महंगा हो जाता है। एक डालर के क्रूड आयल का आयात करने पर एक वर्ष पूर्व हमें 62 रुपये अदा करने पड़ते थे तो आज उसी तेल उसका आयात करने में हमें 72 रुपये का भुगतान करना होगा। प्रश्न है कि रुपया क्यों लुढक़ रहा है? सच यह है कि बीते समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धा शक्ति कम हुई है। तेल के अतिरिक्त तमाम विदेशी माल भारी मात्रा में भारत में प्रवेश कर रहे हैं। जैसे चीन में बने खिलौने, फुटबाल, इत्यादि। कारण यह है कि जीएसटी के कारण जमीनी स्तर पर छोटे उद्योगों के ऊपर दुष्प्रभाव पड़ा है और उनके द्वारा जो निर्यात होते थे, वे दबाव में आ गये हैं। जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में भारी वृद्धि हुई है। जीएसटी और जमीनी भ्रष्टाचार में वृद्धि के कारण भारतीय उद्योग की उत्पादन लागत ज्यादा आ रही है और इस कारण हम अपने माल का निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। हमारे माल की उत्पादन लागत ज्यादा होने के कारण विदेशी उत्पादकों को भारत में अपना माल बेचना आसान हो गया है।
नौकरशाही के भ्रष्टाचार और जीएसटी के अनुपालन के पेचों को हम यदि दूर नहीं करेंगे तो अपनी उत्पादन लागत ज्यादा रहेगी, रुपया लुढक़ेगा और तदनुसार तेल का दाम पुन: बढ़ेगा। अत: सरकार को चाहिये कि ईरान से तेल का आयात बना रहे, इसके लिये कदम उठाये और नौकरशाही के भ्रष्टाचार और कानूनी पेचों से उद्योगों को निजात दिलाये।
अमेरिका तथा ईरान के बीच गतिरोध वर्तमान में कुछ नरम पड़ गया है परन्तु मूलत: गतिरोध कभी भी पुन: आ सकता है। ऐसे में फिर से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़ेंगे और हमारे सामने दुबारा संकट पैदा हो जायेगा। इसलिये हमको समय रहते ईरान के साथ रुपये में पेमेंट करने की व्यवस्था करनी चाहिये। हमें यह भी देखना चाहिये कि ईरान किन देशों से माल खरीदता है। और उन देशों के साथ मिलकर एक वैकल्पिक व्यवस्था बनानी चाहिये, जिससे भारत द्वारा तेल का पेमेंट रुपये में की जाये और उस रुपये से ईरान श्रीलंका से चाय खरीद सके। इस व्यवस्था को बनाने में समय लगेगा। इसलिये समय रहते हमें कदम उठाने चाहिये।

 

तंग नजरिये का बयान
Posted Date : 28-Nov-2018 1:12:12 pm

तंग नजरिये का बयान

कांग्रेस के राजस्थान के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी जो कभी राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार थे, सिर्फ 1 वोट से चुनाव हार जाने की वजह से यह मौका उनके हाथ से निकल गया था। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के राजस्थान में चुनाव जीतने की संभावनाएं हैं। ऐसे में इस वरिष्ठ नेता ने अपने एक बचकाने भाषण से यह मौका फिर हाथ से गंवा दिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जोशी के विवादित बयान से कांग्रेस को अलग कर लिया। जोशी ने अपने एक भाषण में कहा है कि सिर्फ ब्राह्मण ही हिंदू धर्म के विषय में जानते हैं और सिर्फ ब्राह्मणों को ही यह अधिकार है कि वह हिंदू धर्म पर कोई वक्तव्य दे सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग ब्राह्मण नहीं हैं, जैसे कि नरेंद्र मोदी, उमा भारती और साध्वी रितंभरा, वे राम मंदिर और हिंदू धर्म के बारे में कैसे बोल सकते हैं। जोशी के बयान ने संविधान की दो धाराओं का अपमान किया है। पहला तो सभी लोग संविधान के अनुसार बराबर हैं और दूसरा, धर्म किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत चुनाव होता है और उस पर बोलने का उसे पूर्ण अधिकार होता है। जोशी को ज्ञात होना चाहिए कि ब्रिटिश शासन के समय से ब्राह्मणों का समाज में धार्मिक रीतियों पर जो भी नियंत्रण था, वह धीरे-धीरे ढीला पड़ता गया।
वैसे ही 2014 के चुनाव में जो भी साधु और साध्वी आए हैं, वे नई पीढ़ी के हैं, जिस पर ब्राह्मणवाद का कोई नियंत्रण नहीं है। यह नई विचारधारा के हर जाति और धर्म से जुड़े साधु और साध्वी हैं। पुरातन विचारधारा को स्थापित करने का प्रयास समाज के लिए घातक होगा। जब हम समाज में ‘जन्म के आधार पर कर्म’ की धारणा से बाहर निकलने का प्रयास कर रहे हैं, जोशी का बयान संवेदनहीन और निंदनीय है। उनकी विचारधारा और उसके पोषक उनके विरोधियों को आलोचना का एक और मौका दे रहे हैं। कोई भी समझदार व्यक्ति हिंदुत्व की एकता की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाली विचारधारा का समर्थन नहीं कर सकता।

 

ट्विटर पर अफगान संग्राम
Posted Date : 26-Nov-2018 12:11:24 pm

ट्विटर पर अफगान संग्राम

अब ट्विटर राजनयिक महत्ता के विचित्र दौर में पहुंच गया लगता है। गंभीर राजनयिक द्वंद्व के लिए शायद ही किसी राष्ट्राध्यक्ष ने ट्विटर को इस तरह से इस्तेमाल करने की सोची होगी, जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप और इमरान खान ने कर डाला। ट्रंप के ट्वीट के जवाब में पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने सिद्ध कर दिया कि यह राम मिलाई जोड़ी ही है। अमेरिका ने आरोप लगाया कि ‘ये हमारा पैसा खाते हैं परंतु हमारे लिए कुछ भी नहीं करते।’ इस पर इमरान खान ने कहा कि 9/11 के आक्रमण में कोई भी पाकिस्तानी नहीं था और पाक ने हमेशा से अमेरिका के आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में उनका साथ दिया। करीब 75 हज़ार पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में मारे गए और पाक ने लगभग 123 अरब डॉलर का नुकसान सहा है जबकि यूएस की सहायता बस 20 अरब डॉलर की थी। इमरान को मालूम है कि अमेरिका पाक को गंभीरता से नहीं लेता। इमरान खान के कथनानुसार अमेरिका को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है तो पाक को भी कहीं ज्यादा आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है। जिन लोगों ने वायु यानों को अपहृत किया था उनमें से कोई भी पाकिस्तानी नहीं था। परंतु उनका मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद कराची में बैठा हुआ था।

दरअसल, ओसामा के अलावा अलकायदा के बड़े आतंकवादी या तो पाक में मारे या गिरफ्तार किए गए। आखिर सभी आतंकवादियों की शरणगाह पाकिस्तान ही क्यों होता है। अफगानिस्तान में सेना से लड़ रहे तालिबानियों को शिक्षा पाक में ही क्यों मिलती है। जबकि अफगानिस्तान के लिए उसके पड़ोसी ने समस्याएं ही ज्यादा खड़ी की हैं। इस विवाद का अंत यह हुआ कि अमेरिका की ओर से पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता बंद कर दी गई। परंतु यह कार्रवाई एक ऐसे नाजुक समय पर हुई जब अफगानिस्तान में शांति वार्ता चल रही है। तालिबान के नेता रूस और अमेरिका दोनों से शांति वार्ता कर रहे हैं। कतर और मास्को की वार्ता का अंत शांतिपूर्ण होने की उम्मीद कम है। क्योंकि पाकिस्तान में बैठे तालिबान के कमांडर पाकिस्तान की सरकार के अनुसार ही व्यवहार करते हैं।
००

नये रिश्तों का कॉरिडोर
Posted Date : 26-Nov-2018 12:11:01 pm

नये रिश्तों का कॉरिडोर

सही मायनों में गुरु नानकदेव जी के 550वें प्रकाश पर्व के ठीक एक दिन पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने करतारपुर कॉरिडोर योजना को ?मंजूरी देकर सिख श्रद्धालुओं को विशिष्ट सौगात दी है। यूं तो यह विषय वर्ष 1998 में भी उठा था, मगर पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथग्रहण समारोह में गये पंजाब के केबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पाक यात्रा के दौरान फिर नये सिरे से उठा था। अब सरकार के इस फैसले और गुरु नानक के 550वें प्रकाश पर्व से एक दिन पहले की गई कई महत्वपूर्ण घोषणाओं से पर्व का उत्साह बढ़ा है। करतारपुर गुरुद्वारा भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगभग चार किलोमीटर दूर पाकिस्तान के नरोवाल जिले में स्थित है। मान्यता है कि गुरु नानकदेव जी ने अपने जीवन के अंतिम 17-18 वर्ष यहां बिताये थे। अभी तक श्रद्धालु यहां लाहौर होकर पहुंचते रहे हैं। भारत में सरकार ने डेरा बाबा नानक में एक बड़े टेलीस्कोप के जरिये दर्शन की व्यवस्था की हुई है। अब जब करतारपुर कॉरिडोर योजना के सिरे चढऩे की शुरुआत हुई है और पाक ने भी सदेच्छा जताई है तो अब श्रद्धालु बिना वीजा के करतारपुर गुरुद्वारे में दर्शन कर सकेंगे।
हालांकि, पाक ने शीघ्र ही करतारपुर कॉरिडोर योजना को सिरे चढ़ाने की बात की है, मगर दुर्गम भौगोलिक स्थिति वाले इस क्षेत्र में योजना के क्रियान्वयन में समय लगेगा। फिर भी अब सीमा पर तारबाड़ श्रद्धालुओं का रास्ता नहीं रोक पायेगी। कॉरिडोर की आधारभूत संरचना पाकिस्तान को तैयार करनी है। इसे किसी हद तक दोनों देशों में बेहतर रिश्ते तलाशने की दिशा में उठा कदम कहा जा सकता है। उम्मीद है कि यह कॉरिडोर दिल्ली-लाहौर के बीच चलने वाली सदा-ए-सरहद बस सेवा व समझौता एक्सप्रेस की तरह तमाम कूटनीतिक विवादों के बावजूद निर्बाध गति से आवागमन के लिये खुला रहेगा। हकीकत यह भी है कि ऐसे सद्भावना प्रयासों की आड़ में पाक गाहे-बगाहे खेल करता रहा है, ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सीमा की संवेदनशीलता को महसूस करते हुए भारत सतर्क रहे। कोशिश हो कि सिख श्रद्धालु गुरु नानकदेव की कर्मस्थली करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन निर्बाध रूप से कर सकें और राष्ट्रीय सरोकार भी प्रभावित न हों। वहीं केंद्र सरकार द्वारा कॉरिडोर के निर्माण का खर्च उठाने, सुल्तानपुर लोधी को हेरीटेज सिटी बनाने, सेंटर फॉर इंटरफेथ स्टडीज की स्थापना, खास डाक टिकट व सिक्के जारी करने, नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा भारतीय भाषाओं में गुरु नानकदेव जी की शिक्षाएं प्रकाशित करने व नई ट्रेने चलाने जैसे कदम निश्चित रूप से सिख श्रद्धालुओं के लिये खास तोहफा ही हैं।

 

कंप्यूटर के अंगूठा छाप के भरोसे साइबर सुरक्षा
Posted Date : 24-Nov-2018 9:25:09 am

कंप्यूटर के अंगूठा छाप के भरोसे साइबर सुरक्षा

अरुण नैथानी
भारत में कब किस नेता को कौन-सा मंत्रालय मिल जाये, कहा नहीं जा सकता। भले ही उसे उस विभाग की गहरी जानकारी न हो। मगर फिर भी यह उम्मीद तो की ही जाती है कि भले ही कोई मंत्री विषय विशेषज्ञ न हो, मगर मूलभूत जानकारी तो कम से कम ?उसे होनी ही चाहिए। वह बिल्कुल मंत्रालय से अनभिज्ञ तो कम से कम न ही हो। मगर ऐसा कोई वाकया विकसित देश जापान में हो तो बात हैरत की ही मानी जायेगी। यह एक हकीकत है कि वर्ष 2020 में होने वाले ओलंपिक व पैरा ओलंपिक के मद्देनजर साइबर सुरक्षा मंत्री बनाये गये योशिटाका सकुरादा ने पूरी दुनिया में यह कहकर खलबली मचा दी कि उन्होंने कभी कंप्यूटर को हाथ भी नहीं लगाया।
प्रधानमंत्री शिन्जो आबे की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के मंत्री योशिताका सकुरादा को संसदीय समिति की एक बैठक में कंप्यूटर उपयोग के बारे में पूछा गया था। यह जापानी सरकार के लिये बड़ी ही असहज स्थिति थी। उसकी स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो गई। योशिटाका आलोचनाओं के घेरे में ?आ गये और सोशल मीडिया पर उनका खूब मजाक उड़ाया जा रहा है।
दरअसल, 68 साल के कारोबारी योशिटाका को पिछले महीने यह जिम्मेदारी दी गई थी। यह जिम्मा ?ओलंपिक खेलों से जुड़ी साइबर सुरक्षा तैयारियों के लिये दिया गया था। उनके हालिया बयान से जापान में खासा विवाद पैदा हो गया है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि यह अविश्वसनीय है कि जिस व्यक्ति ने कंप्यूटर का कभी उपयोग ही नहीं किया, उसे कैसे साइबर सुरक्षा से जुड़ी अहम और संवेदनशील जिम्मेदारी दी गई है।
दरअसल, जापान की क्योडो न्यूज एजेंसी को योशिटाका ने बताया कि उन्होंने युवा अवस्था में ही स्वतंत्र रूप से अपना कारोबार संभाल लिया था। मेरे सहयोगियों और टीम ने सारा काम मेरे दिशा-निर्देशों पर संभाल लिया था। ऐसे में मुझे कभी कंप्यूटर चलाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उन्होंने सफाई दी कि उनके पास अब अनुभवी लोगों की पूरी टीम है और ओलंपिक खेलों के दौरान साइबर सुरक्षा के बेहतर संचालन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
मगर विडंबना यह है कि उनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। उनकी प्रेस वार्ता में साइबर सुरक्षा के सवाल पर सामान्य कंप्यूटर जानकारी पूछे जाने पर बगलें झांकने से समस्या खड़ी हो गई। जब उन्होंने सुरक्षा बजट के आंकड़े दिये तो उनमें जमीन-आसमान का फर्क नजर आया। एक अन्य संसदीय समिति को संबोधित करते हुए उनकी जुबान फिर फिसली। सदस्यों से बात करते हुए ओलंपिक का खर्च 150 बिलियन येन बताने के बजाय 1500 येन बता दिया। जिसके चलते उनकी खासी किरकिरी हुई। ओलंपिक से जुड़े संवाददाता सम्मेलनों में उनका जवाब होता है कि इस बारे में मुझे नहीं पता।
इतना ही नहीं, उनसे बाद में पूछे गये सवालों के जवाब ने जापानियों की चिंता और बढ़ा दी। जब?उनसे पूछा गया कि क्या देश के परमाणु ?ऊर्जा केंद्रों में यूएसबी ड्राइव का प्रयोग किया जाता है तो इसका जवाब देने में उन्हें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। फिर वे देश के विपक्षी दलों, मीडिया और सोशल मीडिया के निशाने पर आ गये। कुछ लोग जहां इस कंप्यूटर अज्ञानता को लेकर चिंतित हैं तो कुछ लोग उनका भरपूर मजाक उड़ा रहे हैं।
जाहिरा तौर पर सकुरादा के इन बयानों से जापान सरकार के लिये मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। राजनीतिक गलियारों से लेकर आम नागरिकों तक में इसको लेकर जबरदस्त चर्चा हो रही है। जहां कुछ लोग इसको लेकर हैरानी जता रहे हैं तो कुछ चुटकी ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर कहा गया कि हैकरों के लिये सकुरादा को हैक करना असंभव है, जब वे कंप्यूटर प्रयोग ही नहीं करते।
सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ से दलीलें दी जा रही हैं कि सकुरादा उन अमेरिकी कानून निर्माताओं से भिन्न नहीं हैं जो एंक्रिप्शन, साइबर सिक्योरिटी आदि से संबंधित रणनीतियां बनाते हैं, लेकिन स्मार्टफोन व ई-मेल आदि संचार के आधुनिक यंत्रों का उपयोग नहीं करते। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में कहा जाता है कि वे कंप्यूटर का उपयोग नहीं करते लेकिन वे अपने स्मार्ट फोन से लगातार ट्वीट करते रहते हैं।
दरअसल, इससे पहले भी सकुरादा अपने बेतुके बयानों के लिये सुर्खियां बटोरते रहे हैं। विश्व युद्ध के दौरान शाही सेना के जापानी सैनिकों द्वारा कोरियाई महिलाओं के शोषण के बारे में उन्होंने एक बेतुका बयान दिया था, जिसका दक्षिण कोरिया में खासा विरोध हुआ था। जिसके बाद उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी।
दरअसल, पिछले डेढ़ दशक में सकुरादा को संसद में कोई खास जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली थी। प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने पिछले महीने उन्हें दो पदों पर नामित किया था। ?इसके बावजूद एक मंत्री के रूप में वे अपनी क्षमताओं पर पूरा भरोसा जता रहे हैं जबकि ओलंपिक साइबर सुरक्षा को लेकर उनकी जुबान फिसलती ही रहती है। वैसे एक सरकारी सर्वेक्षण में वर्ष 2015 में बताया गया था कि जापान में साठ साल से अधिक उम्र के दो-तिहाई लोगों तक इंटरनेट की पहुंच बहुत कम या बिल्कुल नहीं थी।
००

 

राहत का एक्सप्रेस-वे
Posted Date : 23-Nov-2018 7:20:40 am

राहत का एक्सप्रेस-वे


सुरक्षा-सुविधा के हों पुख्ता इंतजाम
कुंडली-मानसेर-पलवल एक्सप्रेस-वे के लोकार्पण से जहां देश के विकास के पहियों को रफ्तार मिलेगी वहीं दिल्ली की जनता को जाम व प्रदूषण से कुछ राहत जरूर मिलेगी। ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए दिल्ली के चारों तरफ वलयकार रोड बनाने का महत्वाकांक्षी सपना पूरा हुआ। जनसंख्या और वाहनों के लगातार बढ़ते दबाव के मद्देनजर यह कदम बहुत पहले उठा लिया जाना चाहिए?था। इस परियोजना को राष्ट्रमंडल खेलों तक सिरे चढ़ाने की योजना थी, जो तंत्र की काहिली के चलते समय से पूरी नहीं हो पायी। निश्चित रूप से इस विशाल परियोजना को समय से पूरा करने का श्रेय भाजपा को दिया जा सकता है, मगर यह राजनीति का मुद्दा नहीं बनना चाहिए। हर सरकार का दायित्व है कि लोगों के कल्याण की बड़ी योजनाओं को समय रहते पूरा किया जाये। विपक्ष को भी इसमें मीन-मेख निकालने से बचना चाहिए। बहरहाल, अब आठ राज्यों के हल्के व भारी वाहन दिल्ली में प्रवेश किये बिना ही गंतव्य स्थान तक पहुंच सकेंगे। सही मायनो में वाहनों का जाम में फंसना जहां अर्थव्यवस्था के लिये हानिकारक होता है, वहीं समय, पेट्रोल की बर्बादी के साथ प्रदूषण भी बढ़ता है।
इस मायने में केएमपी एक्सप्रेस-वे की सार्थकता को देखना चाहिए। इससे जहां हरियाणा के विकास को गति मिलेगी, वहीं दिल्ली के लोगों को अनावश्यक दबाव से मुक्ति मिलेगी। दिल्ली और एनसीआर के लोग पिछले कुछ समय से प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। यदि वर्ष 2010 में लक्षित समय में यह परियोजना पूरी हो जाती तो दिल्ली की आबोहवा इतनी खराब नहीं होती। पिछले आठ वर्षों में वाहनों से होने वाला प्रदूषण चालीस फीसदी बढ़ा है। अब वाणिज्यिक वाहनों के बाहर ही बाहर निकलने से दिल्ली को राहत अवश्य मिलेगी। सडक़ विकास की आधारभूत संरचना होने के कारण अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में केएमपी में यातायात का सुगम प्रवाह बनाने के लिये सतर्क रहने की आवश्यकता है। खुली-चौड़ी सडक़ों में फर्राटा गाड़ी दौडऩे के लोभ संवरण से वाहन चालक मुक्त नहीं हो पाते जो अनेक लोगों के लिये जानलेवा साबित होता है। ऐसे में नये मार्ग की तकनीकी खामियों को दूर करते हुए यातायात सुचारु रूप से चलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। लंबे सफर में यात्रियों व वाहन चालकों के लिये पर्याप्त सुविधाओं के साथ दुर्घटनाओं को टालना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। निश्चित रूप से केएमपी हरियाणा, एनसीआर और दिल्ली के लिये वरदान साबित हो सकेगा।
००