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17-Nov-2018 11:27:51 am
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न्यायालय कर्नाटक में आवारा कुत्तों की हत्या के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के लिए राजी

नयी दिल्ली,17 नवंबर । उच्चतम न्यायालय आवारा कुत्तों की सामूहिक हत्या के आरोपों पर कर्नाटक में नगरपालिका परिषद के मुख्य अधिकारी और एक निजी ठेकेदार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया। न्यायमूर्ति एन वी रमन और न्यायमूर्ति एम एम शांतनागौदर की पीठ ने सकलेशपुर शहर की नगरपालिका परिषद के मुख्य अधिकारी विल्सन वी टी और ठेकेदार वी जॉर्ज रॉबर्ट को नोटिस जारी किया तथा उनसे चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा। याचिकाकर्ता पशु अधिकारी कार्यकर्ता नवीन कामत की ओर से पेश हुए वकील सिद्धार्थ गर्ग ने कहा कि न्यायालय के विशिष्ट दिशा निर्देशों की जानबूझकर अवज्ञा करने के लिए दोनों प्रतिवादियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाए। उन्होंने बताया कि 18 नवंबर 2015 को शीर्ष न्यायालय ने निर्देश दिया था कि स्थानीय अधिकारियों और पंचायतों को पशु अत्याचार निरोधक (पीसीए) कानून, 1960 और पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2001 का सख्ती से पालन करें तथा अदालत के आदेश को दरकिनार करने के लिए ‘‘तिकड़मबाजी या नया हथकंडा’’ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गर्ग ने कहा कि पीसीए कानून 1960 और एबीसी नियम, 2001 आवारा कुत्तों को लापरवाही से पकडऩे तथा उनके स्थान परिवर्तन पर रोक लगाता है और उनकी केवल नसबंदी तथा उसी स्थान पर वापस छोडऩे के उद्देश्य से पकडऩे की अनुमति देता है जहां से उन्हें पकड़ा गया था। याचिका के अनुसार, विल्सन ने अपनी नगरपालिका में आवारा कुत्तों को पकडऩे तथा फिर उनके स्थान परिवर्तन का ठेका जॉर्ज को दिया था। जॉर्ज को 350 कुत्तों को पकडऩे के लिए 91,537 रुपये दिए गए। याचिका में कहा गया है, ‘‘यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि पीसीए कानून और एबीसी नियम के तहत केवल पकडऩे फिर नसबंदी करने, टीका लगाने और फिर उसी स्थान पर छोडऩे की ही मंजूरी है। इसमें इस तरह पकडऩे और स्थान परिवर्तन की अनुमति नहीं है।’’ याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादियों ने ‘‘जानबूझकर’’ न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन किया और उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जानी चाहिए। इसमें कहा गया है, ‘‘अगर ऐसे उल्लंघनों से तेजी और सख्ती से नहीं निपटा गया तो फिर इस अदालत से समाज को बहुत गलत संदेश जाएगा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों से खिलवाड़ किया जा सकता है और इस गंभीर अवज्ञा के कोई गंभीर परिणाम नहीं होते। प्रतिवादियों के काम इस अदालत की गरिमा का मजाक बना रहे हैं और इस अदालत की नाराजगी मोल ली है।’’

 

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