संपादकीय

05-Nov-2018 8:33:41 am
Posted Date

कृषि निर्यात की संभावनाएं

 इस समय जब देश के सामने निर्यात घटने और विदेश व्यापार घाटा बढ़ने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है, तब कृषि निर्यात बढ़ने की संभावनाओं को मुट्ठी में लेने की जरूरत दिखाई दे रही है। ऐसे में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री ने कहा है कि सरकार जल्द ही नई कृषि निर्यात नीति पेश करेगी। इसके तहत निर्यात बढ़ाने के लिए कई विशेष कृषि क्षेत्र स्थापित किए जाएंगे। साथ ही कृषि निर्यात को मौजूदा तीस अरब डॉलर से बढ़ा कर 2022 तक साठ अरब डॉलर तक पहुंचाने और भारत को कृषि निर्यात से संबंधित दुनिया के दस प्रमुख देशों में शामिल कराने का लक्ष्य रखा जाएगा। यद्यपि यह लक्ष्य चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इस समय भारत में कृषि निर्यात की विभिन्न अनुकूलताओं के कारण इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। गौरतलब है कि 2017-18 में देश में रिकॉर्ड कृषि उत्पादन हुआ है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। भैंस के मांस, पालतू पशुओं और मोटे अनाज के मामले में भी भारत सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत का फलों और सब्जियों के उत्पादन में दुनिया में दूसरा स्थान है। इस समय देश में 6.8 करोड़ टन गेहूं और चावल का भंडार है। यह जरूरी बफर स्टॉक के मानक से दोगुना है। दूध का उत्पादन आबादी बढ़ने की दर से चार गुना तेजी से बढ़ रहा है। चीनी का उत्पादन चालू वर्ष में 3.2 करोड़ टन होने की उम्मीद है, जबकि देश में चीनी की खपत 2.5 करोड़ टन है। देश में फलों और सब्जियों का उत्पादन मूल्य 3.17 लाख करोड़ रुपए वार्षिक हो गया है। इसी तरह कृषि क्षेत्र के एक महत्त्वपूर्ण भाग दूध उत्पादन के क्षेत्र में भी भारत की स्थिति मजबूत होती जा रही है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दूध उत्पादन, संग्रहण और वितरण के क्षेत्र में विभिन्न सुविधाओं के लिए 2021 तक करीब एक सौ चालीस अरब रुपए का निवेश होगा। इससे दूध के उत्पादन, निर्यात और इस क्षेत्र में रोजगार बढ़ने का चमकीला परिदृश्य दिखाई देगा। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश में जो दूध उत्पादन वर्ष 2016-17 के दौरान 16.54 करोड़ टन था, उसके 2017-18 के दौरान 17.63 करोड़ टन रहने का अनुमान है। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दूध निर्यात के लिए दी जा रही विशेष सब्सिडी से भारत के दूध की वैश्विक बिक्री में तेजी आई है और इसी कारण भारत से दूध की आपूर्ति वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी हो गई है। देश में कृषि निर्यात बढ़ने के तीन प्रमुख कारण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। पहला कारण, पिछले दिनों सरकार द्वारा घोषित किए गए उदार कृषि निर्यात संबंधी नए प्रोत्साहन हैं। दूसरा, अमेरिका द्वारा चीन से आयातित नई कृषि वस्तुओं पर पच्चीस प्रतिशत आयात शुल्क लगाने के बाद चीन द्वारा भी अमेरिका की कई वस्तुओं पर पच्चीस प्रतिशत आयात शुल्क लगा दिया गया है। इन उत्पादों में सोयाबीन, तंबाकू, फल, मक्का, गेहूं, रसायन आदि शामिल हैं। चीन द्वारा लगाए गए आयात शुल्क के कारण अमेरिका की ये सारी वस्तुएं चीन के बाजारों में महंगी हो गई हैं। चूंकि ये अधिकांश वस्तुएं भारत भी चीन को निर्यात कर रहा है और भारतीय वस्तुओं पर चीन ने कोई आयात शुल्क नहीं बढ़ाया है। ऐसे में ये भारतीय कृषि वस्तुएं चीन के बाजारों में कम कीमत पर मिलने लगी हैं। इससे चीन को भारत के निर्यात बढ़ेंगे। तीसरा प्रमुख कारण भारत और चीन के बीच आयोजित संयुक्त आर्थिक समूह बैठक 2018 में भारत से चीन को कृषि निर्यात बढ़ाने का परिदृश्य उभरना है। इस बैठक में चीन के वाणिज्य मंत्री झोंग शैन ने कहा कि जहां भारत-चीन व्यापार में बढ़ते हुए घाटे को कम करने पर ध्यान दिया जाएगा, वहीं चीन भारत से मंगाए जाने वाले कृषि उत्पादों जैसे अनाज, सरसों, सोयाबीन, बासमती और गैर-बासमती चावल, फल, सब्जियों तथा अन्य ऐसी मदों पर आ रही निर्यात मुश्किलों को कम करने की ओर ध्यान देगा। इससे कृषि निर्यात के लिए चीन के बाजार में नई संभावनाएं बनी हैं।

गौरतलब है कि सरकार ने कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए जो विशेष प्रोत्साहन के संकेत दिए हैं, उनसे मूल्यवर्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकेगा। साथ ही कृषि निर्यात प्रक्रिया के बीच खराब होने वाले सामान, बाजार पर नजर रखने के लिए संस्थापक व्यवस्था और साफ-सफाई के मसले पर ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा। निर्यात किए जाने वाले कृषि जिंसों के उत्पादन और घरेलू दाम में उतार-चढ़ाव पर लगाम लगाने के लिए कम अवधि के लक्ष्यों तथा किसानों को समर्थन मूल्य मुहैया कराने और घरेलू उद्योग को संरक्षण देने पर ध्यान दिया जा सकेगा। साथ ही राज्यों की कृषि निर्यात में ज्यादा भागीदारी, बुनियादी ढांचे और ढुलाई में सुधार और नए कृषि उत्पादों के विकास में शोध और विकास गतिविधियों पर जोर दिया जा सकेगा। चूंकि विभिन्न निर्यातों में कृषि निर्यात सबसे जोखिम भरे होते हैं, इसलिए देश से खाद्य निर्यात क्षेत्र के समक्ष जो समस्याएं और चुनौतियां हैं, उनके समाधान के लिए रणनीतिक कदम जरूरी होंगे। खाद्य निर्यात से संबंधित सबसे बड़ी चुनौती अपर्याप्त परिवहन और भंडारण क्षमता के कारण खेत से खाद्य वस्तुएं बाजारों और कारखानों से प्रसंस्कृत वस्तुएं विदेशी उपभोक्ता तक पहुंचने में बहुत नुकसान होता है। कृषि निर्यात से संबंधित नई तकनीक और प्रक्रियाओं, सुरक्षा और पैकेजिंग की नियामकीय व्यवस्था संबंधी कमी और कुशल श्रमिकों की कमी भी खाद्य निर्यात को प्रभावित कर रही है। विभिन्न देशों द्वारा लागू किए गए कृषि व्यापार संबंधी कड़े तकनीकी अवरोधों के कारण भी भारतीय खाद्य निर्यात की क्षमता बाधित हुई है। निर्यात की जा रहे कृषि उत्पादों पर गैर-शुल्क बाधाएं, खाद्य गुणवत्ता सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख बाजारों में खाद्य उत्पादों के निर्यात में बड़े अवरोधक बने हुए हैं। इन्हें दूर कराने के कारगर प्रयास करने होंगे। चूंकि कृषि निर्यात ही एकमात्र ऐसा उपाय है जिसके जरिए बिना महंगाई के रोजगार और राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी की जा सकती है। इसलिए देश से कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए कई और जरूरतों पर ध्यान देना होगा। कृषि निर्यातकों के हित में मानकों में बदलाव किया जाए, जिससे कृषि निर्यातकों को कार्यशील पूंजी आसानी से प्राप्त हो सके। सरकार को अन्य देशों की मुद्रा के उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा। चिह्नित फूड पार्क विश्वस्तरीय बुनियादी सुविधाएं, शोध सुविधाएं, परीक्षण प्रयोगशालाएं, विकास केंद्र और परिवहन लिंक के साथ मजबूत बनाने होंगे। बेहतर खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता प्रमाणन व्यवस्था, तकनीकी उन्नयन, परिवहन सुधार, पैंकेजिंग गुणवत्ता और ऋण तक आसान पहुंच की मदद से खाद्य निर्यात क्षेत्र में आमूल बदलाव लाया जा सकता है। खाद्य निर्यात क्षेत्र के आकार और बढ़ोतरी की संभावनाओं को देखते हुए भारत की उद्योग और व्यापार नीति की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका बनानी होगी।

 
 

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