संपादकीय

25-Oct-2018 8:38:35 am
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सम्पादकीय- सीबीआई में फेरबदल

सीबीआई के दो टॉप अफसरों की लड़ाई से पैदा संकट को दूर करने के लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाया, लेकिन इससे मामला और उलझ गया। सरकार ने सीबीआई डायरेक्टरआलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना, दोनों को छुट्टी पर भेज दिया और एम. नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक की जिम्मेदारी सौंप दी। लेकिन आलोक वर्मा केंद्र के इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए, जहां उनकी याचिका स्वीकार कर ली गई। CBI निदेशक आलोक वर्मा के आवास के बाहर नज़र रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए चार लोगों में से दो को पकड़े जाने और पूछताछ की गयी है।  बताया जा रहा है की शुक्रवार को इस पर सुनवाई हो सकती है। इस बीच वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक बनाए जाने की आलोचना की है। वह इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।

जाहिर है, सीबीआई भ्रष्टाचार, झगड़ों और झमेलों का अड्डा बन गई है और पिछले पांच सालों में इसको स्वच्छ, सक्षम और स्वायत्त बनाने की तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया है। याद रहे, सन 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सरकार का पालतू तोता बताते हुए इसके स्वरूप में बदलाव करने का निर्देश दिया था। इसे स्वायत्त बनाने के लिए इसके निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया को बदलने का निर्णय किया गया। तय हुआ कि व्यवस्था के विभिन्न अंगों के प्रतिनिधि मिलकर इसका निदेशक चुनेंगे और उसका कार्यकाल निश्चित होगा। लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के तहत सीबीआई निदेशक की नियुक्ति जिस कलीजियम द्वारा की जाती है, उसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता और भारत के प्रधान न्यायाधीश अथवा उनके द्वारा नामित कोई जज शामिल होते हैं।

निदेशक का न्यूनतम कार्यकाल दो साल निर्धारित किया गया। तय हुआ कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग आईपीएस अधिकारियों का एक पैनल तैयार करेगा जिसे सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग) के पास भेजा जाएगा। सीवीसी उन नामों पर विचार कर उन्हें अंतिम रूप देगा और कलीजियम के विचारार्थ प्रस्तुत करेगा। इस प्रक्रिया के अनुसार पहले डायरेक्टर अनिल सिन्हा बने, जिनका कार्यकाल निर्विवाद रहा। लेकिन उनके जाने के कुछ ही समय बाद स्थिति यहां तक पहुंच गई। तो क्या माना जाए कि इतना बदलाव नाकाफी था? क्या और आगे बढ़ने की जरूरत है? मसलन यह कि केवल निदेशक नहीं, बल्कि चोटी के तीन आला पद उसी प्रक्रिया में भरे जाएं और चुनाव आयोग की तरह यहां भी किसी का शीर्ष तक पहुंचना पहले से तय हो। एक शासन तंत्र के रूप में भारत की सफलता काफी हद तक सीबीआई के कामकाज और उसकी साख पर निर्भर करती है। इसका स्वरूप न तो सरकारी तोते जैसा होना चाहिए, न ही सरकार की कनपटी से पिस्तौल सटाए दबंग जैसा। सीबीआई को एक भरोसेमंद जांच संस्था बनाने के लिए प्रयोग जारी रहने चाहिए, जब तक देश इसके कामकाज को लेकर आश्वस्त न हो जाए।

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