संपादकीय

07-Jul-2017 3:36:56 pm
Posted Date

विकास या महंगाई?

मैं बहुत आत्मविश्वास से यह कहने की पोजीशन में नहीं था कि हमारा देश विकास कर रहा है लेकिन जब से मीडिया में विज्ञापनों की आंधी आई है कि वाकई में पिछले 3 सालों में भारत में विकास हुआ है और उपलब्धियां जनता-जनार्दन को बताई जा रही हैं, तब से मुझे लग रहा है कि शायद मैं ही अल्पज्ञानी हूं। सरकार बेचारी देश का निर्माण भी करे और ऊपर से इस नासमझ जनता को करोड़ों रुपये खर्च कर यह भी बताये कि देख भइये हमने इतना निर्माण कर दिया और तुझे इल्म ही नहीं है। अनायास मालवीय जी देवदूत की तरह प्रकट हुए। मैंने कहा-और महाराज, विकास आज 3 बरस का हो गया। वे बोले-विकास की तो शादी भी हो "ई श्रीमान और उसका लड़का भी अब 4 का हो गया है। मैंने कहा-नादानों जैसी बातें मत करिये बाबू, आप अख़बार इत्यादि नहीं बांचते क्या? सिर्फ 10 से 5 वाली नौकरी में ही अपना जीवन व्यर्थ किये हुए हो, सरकार विगत 3 वर्षों से विकास भी कर रही है और तो और लोगों को पकड़-पकड़ कर विकास के बारे में बता भी रही है और एक आप हैं, जिन्हें होश ही नहीं है? उन्हें बाबू संबोधन इसलिए बुरा नहीं लगा क्योंकि बाबू ऐसे-ऐसे प्रताप दिखा चुके हैं कि वहां पहुंचना शायद उनके बस में नहीं। हां 10 से 5 वाली बात में अलबत्ता सत्यता थी पर इस बात से वे पूर्णत: असहमत थे कि उन्हें होश नहीं है। उन्होंने कहा-सारे के सारे समाचार पत्र तो यही कह रहे हैं कि जनता को सब्ज़बाग़ दिखाकर ठगा गया है, सिर्फ जुबानी पटाखे फोड़े गए हैं, काले धन के इंतज़ार में लो"ों की आंखें पथरा रही हैं और आप कहना चाह रहे हैं कि हमारा देश विकास कर रहा है? मैंने कहा-आप बहुत सतही बातें कर रहे हैं। आप ही मुझे बताइये 3 बरस पहले आप कितने रुपयों में किराना-सब्ज़ी लाते थे? वे बोले-यही कोई 200-250 में काम चल जाता था। मैंने कहा-अब सोचिये आप 1000 रुपये तक का किराना-सब्ज़ी लेने लगे हैं, ये विकास नहीं तो और क्या है। वे चीखते हुए बोले-महाराज, इसे विकास नहीं, महंगाई कहा जाता है। मैंने कहा-नजरिये का फर्क है, आपके लिए जो महंगाई है वो सरकार के लिए शायद विकास है, देश में सौ और पांच सौ के नोट का फर्क मिट रहा है और आप कह रहे हैं विकास नहीं है। वे बोले-देखिये विकास तो चहुंओर हो रहा है।  माननीय विदेशी पर्यटन कर रहे हैं, लोकतांत्रिक सरकारें गिराई जा रही हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं और क्या-क्या क्या गिनाऊं आपको? मुझे यह महसूस हुआ कि वाकई मेरा सामान्य ज्ञान ही कम है। मुझे इस बात का भी इल्म हो चला है कि जनता-जनार्दन को सरकारी उपलब्धियां गिनवाने की ज़रूरत ही नहीं होना चाहिए, यदि वाकई सरकार जनता-जनार्दन तक पहुंची हो तो।

 

Share On WhatsApp