संपादकीय

21-Aug-2018 1:05:53 pm
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सम्पादकीय- प्रयत्नों की रोशनी से झाँकती उम्मीदें !

जब भी साल बदलता है, हमें ठहरकर सोचने पर मजबूर करता है। यों तो हर पल गतिमान समय की धार में साल, वर्ष, बरस… जो भी कह लें, एक छोटा–सा बिंदु है … पर चूँकि हम इसी बहाने से ईस्वी सन वाला दीवारों पर टँगा कैलेंडर बदलते हैं, आँकड़ा बदलते हैं, तो इस वक्फे का इस्तेमाल पीछे पलटकर देखने और आगे के स्वप्न संजोने के लिए कर ही लेते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। आख़िर हम घड़ी की भागती सुइयों और कैलेंडर पर बदलती तारीखों से ख़ुद को इतना करीब से जोड़ चुके हैं। इस लौकिक जीवन में काल का ये खंड और बदलते साल के आँकड़े हमें रोमांचित भी करेंगे और इससे नत्थी हमारी ज़िंदगी को लेकर सोचने पर मजबूर भी करेंगे। जिंदगी कभी किसी के लिए नहीं रूकती है.

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