संपादकीय

21-Jan-2019 12:57:43 pm
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अटल स्मृतियों का दस्तावेज

अरुण नैथानी
यूं तो अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण जीवन — राजनीतिक कौशल, प्रशासकीय क्षमता, वग्मिता, साहित्य सृजन सदा सम्मोहित करता रहा है। वहीं लंबे सक्रिय राजनीतिक जीवन के बावजूद उन्होंने अपने संवेदनशील रचनाकार को जीवित रखा।
भारतीय राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी पर केंद्रित साहित्य अमृत का हालिया अंक पठनीय-संग्रहणीय बन पड़ा है। समाज के हर वर्ग के लोगों ने अपने अनुभवों से अटल जी का भावपूर्ण स्मरण किया है। अंक में प्रतिस्मृति स्तंभ में मकर संक्रांति 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लिखा चौदह पेज का लेख शामिल है, जो उनकी यात्रा और राजनीति के महत्वपूर्ण पड़ावों पर गंभीर दृष्टि को रेखांकित करता है। वहीं ‘विदेश नीति मे अंतर्राष्ट्रीयता का अतिरेक’ शीर्षक लेख में 2 सितंबर 1957 को विदेश नीति पर दिये गए भाषण के प्रेरक अंश शामिल हैं। जनसंघ को सींचने वाले पं. दीनदयाल उपाध्याय के रहस्यमयी अवसान पर ‘मेरे लिये तो रोशनी बुझ गई’ शीर्षक से मर्मस्पर्शी श्रद्धांजलि प्रकाशित है। ‘युद्ध में जीते,संधि में हारे ‘शीर्षक से संसदीय जीवन का पहला भाषण एक याद को संजोने जैसा है। विदेशमंत्री के रूप में यूएनओ की जिनेवा महासभा में 1978 को हिंदी में दिये गये बहुचर्चित भाषण के अंश भी प्रकाशित किये गये हैं। इसके अलावा 1996 में प्रधानमंत्री के रूप में दिये गये पहले भाषण, वर्ष 1998 में लालकिले से राष्ट्र के नाम पहले संबोधन के अंश प्रकाशित है। अंक में उनकी साहित्यिक रचनाएं एक संवेदनशील रचनाकार के रूप में उनकी प्रतिष्ठा की पुष्टि करती हैं।
समीक्ष्य अंक में अटलजी के जीवन के हृदयस्पर्शी संस्मरणों तथा उनके साथ बिताये पलों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, अमित शाह, आदि राजनेताओं व लेखकों ने उनका भावपूर्ण स्मरण किया है।
इस अंक से गुजरते हुए पाते हैं हर राजनीतिक दल, संगठन, साहित्य, पत्रकारिता, संस्कृति से जुड़े तमाम लोगों ने एक अटल सत्य को शब्द दिये हैं। चित्रों व उन पर केंद्रित चित्रांकनों के जरिये उनके व्यक्तित्व को उभारने की कोशिश हुई है।

 

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