संपादकीय

19-Jan-2019 1:00:19 pm
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आरक्षण की मरीचिका

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिये दस फीसदी आरक्षण बिल के कानून बन जाने के बाद अब केंद्र सरकार इसे उच्च शिक्षा व निजी शिक्षण संस्थानों में जुलाई तक लागू करने पर आमादा है। चुनावी वेला में इसके निहितार्थ समझना कठिन नहीं हैं। मंगलवार को यूजीसी, एआईसीटीई व मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में सभी विश्वविद्यालयों को सूचना देने तथा इसे प्रॉस्पेक्टस में शामिल करने की बात कही गई है। साथ ही दस फीसदी आरक्षण से अन्य वर्गों के लिये सीटें कम न हों, इसके लिये 25 फीसदी सीटें बढ़ाने की बात कही गई है। राजनीतिक रूप से सरकार के लिये यह निर्णय लाभदायक हो सकता है मगर व्यवहार में इसका क्रियान्यवन संभव नजर नहीं आता। देश के चालीस हजार कॉलेजों और 900 विश्वविद्यालयों में इसे लागू करने की बात कही जा रही है। सबसे बड़ा पेच निजी संस्थानों में आरक्षण लागू करवाना है, जिनमें आरक्षण के मुद्दे पर पहले ही कई मामले अदालतों में चल रहे हैं। जिसको लेकर असमंजस की स्थिति बनी रहेगी। पहले ही 2009 में पारित शिक्षा के अधिकार कानून के तहत आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को पच्चीस फीसदी सीटें आरक्षित करने को लेकर निजी स्कूलों के प्रबंधन से खींचतान चल रही है।
एक अनुमान के अनुसार यदि केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों तथा समस्त शैक्षिक संस्थानों में दस फीसदी आरक्षण का क्रियान्वयन होता है तो तकरीबन दस लाख सीटें बढ़ाने की आवश्यकता होगी। शिक्षण संस्थानों की मौजूदा स्थिति का अवलोकन किया जाये तो वहां पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। भवन, जरूरी उपकरणों के अलावा प्रशिक्षित शिक्षकों के पद रिक्त हैं। सरकार को इतना बड़ा फैसला लेने से पहले निजी शिक्षण संस्थानों को विश्वास में लेकर व्यावहारिक दिक्कतों को जानना चाहिएथा। प्रबंधकों ने बड़ी पूंजी लगाकर लाभ के मकसद से संस्थान खड़े किये हैं। बीते साल ही अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने कम होते दाखिलों के चलते आठ सौ इंजीनियरिंग कॉलेजों को बंद करने का फैसला लिया था। बाजार में रोजगार के अभाव के चलते छात्र इंजीनियरिंग में दाखिला लेने से कतरा रहे हैं। प्रतिस्पर्धा के अनुरूप योग्यता न होने के कारण भी डिग्रीधारी बेरोजगार घूम रहे हैं। ऐसे में बुनियादी सुविधाओं के अभाव में आरक्षण की सीटें बढ़ाने से क्या कोई लक्ष्य हासिल हो पायेगा आवश्यकता इस बात की भी है कि पहले शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के अनुकूल संसाधन जुटाये जायें और पर्याप्त प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्तियां की जायें, तभी आरक्षण के चलते प्रवेश लेने वाले कमजोर वर्ग के छात्रों का भला हो पायेगा।

 

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