संपादकीय

15-Dec-2018 12:06:28 pm
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जनादेश का संदेश

सही मायनों में पांच राज्यों खासकर तीन हिंदी भाषी राज्यों की जनता ने राजनेताओं को स्पष्ट संदेश दिया है कि हवा-हवाई वादों का जमीन पर भी असर दिखना चाहिए। यह भी कि बेरोजगारों व किसानों को नजरअंदाज करके सुनहरे सपने दिखाने से काम नहीं चलेगा। एकतरफा जनादेश की आशा पालने वाली कांग्रेस के लिए भी संकेत है कि उसकी सरकारों का भविष्य भी इस बात पर निर्भर करेगा कि वे जनाकांक्षाओं पर किस हद तक खरी उतरती हैं। नि:संदेह राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने के ठीक एक साल बाद विपक्ष के नेता के रूप में छवि हासिल कर पाये हैं। लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने वाले कांग्रेसियों के लिए चुनाव परिणाम प्राणवायु की तरह हैं। बशर्ते वे आने वाले आम चुनाव तक सजगता-सक्रियता बनाये रखें। कहना जल्दबाजी होगा कि यह जनादेश मोदी-शाह की जोड़ी के लिए खतरे की घंटी है। निर्विवाद रूप से मोदी की अजेय छवि प्रभावित हुई है, उनके बूते विधानसभा चुनाव जीतने का तिलिस्म टूटा है। मगर नहीं भूलना चाहिए कि इस जोड़ी ने देश में चुनाव-शैली में अप्रत्याशित बदलाव करके बार-बार चौंकाया है। फिर इन चुनाव परिणामों ने उन्हें चेताया है।
चुनावों के दौरान जो कर्कश आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला चला, उसके बाद राहुल गांधी ने जिस सौम्यता के साथ मुख्यमंत्री रहे भाजपा के नेताओं के कामकाज को सराहा और उनके काम को आगे बढ़ाने की बात कही, वह सुखद है। ऐसी ही भाषा डॉ. रमन सिंह, शिवराज चौहान व वसुंधरा राजे ने भी अभिव्यक्त की। बहुत संभव है मोदी-शाह की जोड़ी बाकी बचे समय में उस आक्रामकता का परित्याग करे, जिसके लिये उन्हें दंभी कहा जाता रहा है। संभव है कि राजग के कई दलों के अलग होने और शिव सेना जैसे अन्य दलों के तेवर दिखाने के बाद नये सहयोगी तलाशने के लिये मोदी लचीला रुख अपनायें। नहीं भूलना चाहिए कि मिजोरम में कांग्रेस ने सरकार गंवाई है, तेलंगाना में गठबंधन हारा है और मध्यप्रदेश व राजस्थान में भाजपा से कांग्रेस को कड़ी चुनौती मिली है। ऐसे में इन परिणामों को 2019 का सेमीफाइनल मान लेना निष्कर्षों की सरल व्याख्या होगी। कहा भी जा रहा है कि जैसा 19 का पहाड़ा याद करना बेहद मुश्किल होता है, 2019 का आम चुनाव भी खासा जटिल होने वाला है। जनता ने हार-जीत के कई पत्ते अभी राजनेताओं से साझे नहीं किये हैं। जनता सोशल मीडिया के दौर में काफी सचेत है। आम चुनावों के लिये बाकी महीनों में कई नये विमर्श व रणनीतियां सामने आएंगी, ऐसे में फाइनल का निष्कर्ष देना दूर की कौड़ी ही होगी।

 

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