संपादकीय

04-Aug-2017 6:08:16 pm
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पूर्व नियोजित ड्रामा

बिहार में राजग के साथ गठबंधन वाली सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी अंतर्रात्मा की आवाज सुनते हुए कल शाम इस्तीफा देकर बृहस्पतिवार को एनडीए के समर्थन से सरकार का पुनर्गठन करके दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। तेजस्वी प्रसाद के इस्तीफे को लेकर लालू प्रसाद की बोल-वाणी से शायद नीतीश कुमार आजिज़़ आ गए थे। तेजस्वी प्रसाद लालू प्रसाद के बेटे हैं और गठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं, जिनके खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामले में केस दर्ज किया है। नीतीश के इस पग से कांग्रेस और राजग के साथ जद-यू के महागठबंधन की गिरहें एक-एक करके खुलने लगी हैं। दरअसल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार ने वैसा ही अभिनय किया जैसा भाजपा द्वारा लिखी पटकथा में इंगित था। अच्छी-खासी चल रही स्थायी सरकार औंधे मुंह गिरी। केंद्र में बैठी भाजपा सरकार ने बदले में संतुष्टि तथा चैन की सांस ली कि आखिर सीबीआई व ईडी का फेंका उनका पासा खूब चल निकला। दरअसल नवंबर, 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में लालू-नीतीश के गठबंधन को मिली आशातीत सफलता एक तरह से मोदी नेतृत्व के लिए किसी तीव्र झटके से कम नहीं थी। इस चुनावी विजय ने नीतीश कुमार का कद इतना बड़ा कर दिया कि लोग उन्हें 2019 के चुनावों में मोदी को चुनौती देने वाले शख्स के रूप में स्वीकारने ल"े थे। अब इन कयासों पर विराम लग गया है। हालांकि, नीतीश कुमार की इस बात को लेकर तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने सच्चाई के लिए अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी को दांव पर लगा दिया लेकिन कानूनन एक बात उनसे पूछी जानी चाहिए कि जब जेडी-यू तथा आरजेडी गठबंधन की नींव रखी गई तो क्या नीतीश कुमार को लालू परिवार के खिलाफ चल रहे आरोपों की जानकारी नहीं थी? अदालत के सम्मुख दोषी करार दिए गए यह लालू प्रसाद ही थे जिन्होंने 2015 के विधानसभाई चुनावों में गठबंधन के लिए धुआंधार प्रचार किया था। तब भी वोटरों ने लालू को खूब वोट दिए, नतीजतन आरजेडी एक बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। शायद अब नीतीश कुमार को लगता है कि सीबीआई के दोषारोपण ने पहले के हालात बदल दिए हैं। उपमुख्यमंत्री को कैबिनेट से हटाने की उनकी इच्छा को सम्मान नहीं दिया गया, इसीलिए उनकी अंतर्रात्मा ने उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने के लिए उकसाया। सिद्धांतों की बात करने वाले नीतीश कुमार सैद्धांतिक रूप से अब इस नयी स्थिति में काम कैसे करेंगे? 2015 नवंबर के चुनावों में उन्हें मोदी, भाजपा तथा उनकी साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ जनादेश मिला था। नीतीश कुमार तथा भाजपा के बीच किसी तरह का भी 'वर्किंग अरेंजमेंटÓ सैद्धांतिक तौर पर सही नहीं कहा जाएगा। दरअसल आजकल भ्रष्टाचार ऐसा हथियार बनकर रह गया है, जिसे अपना हित साधने के लिए कोई भी अवसरवादी इस्तेमाल में ला सकता है। संक्षेप में कहें तो नीतीश कुमार तथा बिहार दोनों ही घाटे में रहेंगे।

 

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