संपादकीय

04-Aug-2017 6:07:23 pm
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सबसे ऊपर सुशासन

नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी से हाथ मिलाकर सबको चौंका दिया है। उनके इस फैसले को पारंपरिक सियासी मुहावरों से नहीं समझा जा सकता। इसे बदलते परिदृश्य के संदर्भ में ही समझना होगा। सच्चाई यह है कि 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव का जनादेश बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ तो था ही, लेकिन उतना ही वह नीतीश की व्यक्तिगत छवि और उनके विकास मॉडल के पक्ष में भी था। याद कीजिए, उस चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिंदुत्व की नहीं अपने विकास मॉडल की बात ज्यादा करते थे और अपनी बात को दमदार बनाने के लिए उन्होंने एक डिवेलपमेंट पैकेज भी घोषित किया। फिर भी लोगों ने उनके मॉडल को नकारकर नीतीश के विकास मॉडल को पसंद किया, जिसमें समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने की बात थी। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि लालू प्रसाद यादव जनता के इस नए मिजाज को समझ नहीं पाए। वक्त के हिसाब से खुद को बदलने के बजाय उन्होंने अपनी पुरानी शैली जारी रखी। राज्य सरकार में अपने दोनों बेटों को शामिल किया और बेटी को राज्यसभा भेजा। यही नहीं, शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली नेताओं को खुलेआम संरक्षण देना जारी रखा। उन पर और उनके परिवार पर जिस तरह एक के बाद एक संपत्ति बनाने के आरोप ल"ने शुरू हुए, उससे राज्य सरकार की किरकिरी होने ल"ी। पटना में एक मॉल बनाने के दौरान निकली मिट्टी को सरकारी पैसे से खरीदे जाने का प्रकरण सार्वजनिक हो जाने के बाद यह बात शायद ही किसी के "ले उतरे कि लालू परिवार पर ल"े सारे आरोप राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित हैं। जो नीतीश कुमार आरोप ल"ते ही अपने मंत्रियों का इस्तीफा ले लेते रहे हैं, उनके लिए इस हकीकत के साथ एडजस्ट करना कठिन था कि उनके डिप्टी सीएम गंभीर आरोपों से घिरे हैं। उन्होंने आरजेडी को अपनी गलती सुधारने के मौके भी दिए। इसके बावजूद तेजस्वी यादव को अपना पद छोडऩे पर राजी नहीं किया जा सका तो नीतीश ने वही किया जो वे कर सकते थे। उन्होंने खुद इस्तीफा दिया और राज्य पर एक मध्यावधि चुनाव थोपने की जगह बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई। अब खुद को मिले जनादेश का आदर वे इसी रूप में कर सकते हैं कि राज्य में विकास की गति बढ़ाएं और बीजेपी के सांप्रदायिक अजेंडे को अमल में न आने दें। इस बीच नीतीश ने भारतीय राजनीति के सेकुलर धड़े को यह सबक भी दिया है कि जनहित से परे जाकर किसी भी विचार का कोई अर्थ नहीं है। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अगर आप भ्रष्टाचार का बचाव करते नजर आते हैं तो इसमें सबसे ज्यादा नुकसान धर्मनिरपेक्षता का ही है। बहरहाल, अभी की बीजेपी को साथ लेकर चलना नीतीश के लिए पहले जितना आसान नहीं होने वाला है। जितने भी दिन वे शांति से सरकार चला सकें, बिहार के लिए उतना ही अच्छा है।

 

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