संपादकीय

02-Dec-2018 12:14:26 pm
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अन्नदाता की गुहार

राजधानी की सडक़ें एक बार फिर देश भर से आए किसानों के नारों से गूंजती रहीं। कुछ तो बात है, जिसके लिए किसानों को बार-बार सडक़ पर उतरना पड़ रहा है। जून 2017 में कृषि उपजों की कीमत को लेकर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में चला आंदोलन हो, या इस वर्ष दो बार हो चुके किसानों के मुंबई मार्च हों, बीते जून में आयोजित ‘गांव बंद’ का आंदोलन हो या फिर अक्टूबर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों का दिल्ली मार्च, पिछले दो वर्षों में लगातार यह देखा जा रहा है कि किसानों ने बार-बार अपनी आवाज उठाई, पर कुछ ही समय बाद उन्हें पुरानी ही मांगों को लेकर दोबारा आंदोलन करना पड़ा। क्या सचमुच उनकी हालत ‘करो या मरो’ वाली हो गई है?
इस बार किसानों और खेत मजदूरों के 207 संगठनों से जुड़े लोग एक निर्णायक लड़ाई के मूड में दिल्ली आए। उनकी मांगें दो-तीन ही हैं, और वे बिल्कुल स्पष्ट हैं। एक यह कि कृषि समस्याओं को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए, जो कम से कम तीन हफ्तों का हो और इसमें स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं समेत कृषि संकट के सभी मुद्दों पर निर्णायक बहस हो। इसके लिए उन्होंने बाकायदा एक बिल का मसविदा भी तैयार किया है। सबसे बड़ी बात यह कि इस बार किसान अकेले नहीं हैं। मध्यवर्ग के कई संगठन भी उनके साथ खड़े दिखे। एक ऐसे समय में, जब देश के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हों, किसानों का इतने बड़े पैमाने पर दिल्ली आना चकित करता है। वे न आते तो भी कृषि संकट को जाहिर करने वाले तथ्य पहले से ही देश के सामने हैं। खेती की लागत बढ़ती जा रही है। किसान को तबाह कर रही आम महंगाई को एक तरफ रख दें तो बीज, खाद, डीजल, बिजली, कीटनाशक, मजदूरी, यानी लागत के सारे पहलू तेजी से ऊपर चढ़े हैं जबकि फसलों की कीमत पछता-पछता कर बढ़ाई जा रही है। 
सरकार द्वारा खेती को राहत देने के लिए किए गए हालिया उपाय नाकाफी रहे हैं। किसानों का कहना है कि वादा सी2 यानी संपूर्ण लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने का था। धान की सी2 लागत 1,560 रुपये की डेढ़ गुना कीमत 2,340 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है, लेकिन इस वर्ष धान का समर्थन मूल्य 1,750 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया गया है। इस तरह धान में लगभग 600 रुपये प्रति क्विंटल की चपत किसानों को लगी है, और सरकारी खरीद केंद्रों पर उनका धान भी कम खरीदा गया है। ऐसा ही नुकसान उन्हें सारी फसलों में झेलना पड़ रहा है। इसीलिए किसान चाहते हैं कि उन्हें एकमुश्त कर्जमाफी दी जाए और उचित दाम की गारंटी देने वाला कानून बनाया जाए। कृषि को तंगहाल रखकर अर्थव्यवस्था को बहुत दिनों तक गतिशील नहीं रखा जा सकता। लिहाजा वक्त का तकाजा है कि संसद इन मांगों पर बहस करके किसानों को पक्की उम्मीद बंधाए।

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