संपादकीय

02-Dec-2018 12:13:38 pm
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बदलाव की बयार में बागियों की चुनौती

यश गोयल
राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा दुबारा सत्ता में आने के लिये अपनी 159 सीटें बचाने में तो कांग्रेस सत्ता पर काबिज होने के लिये साम, दाम, दंड, भेद अपना रही है। भाजपा गांधी परिवार और कांग्रेस की 60 साल की नाकामियों पर जमकर प्रहार कर रही है तो कांग्रेस राफेल, सीबीआई, आरबीआई, जीएसटी, नोटबंदी की बखिया उधेड़ती आ रही है।
इस चुनाव में 88 पार्टियों के 2294 प्रत्याशी मैदान में हैं। 200 सीटों की विस में 185 सीटों पर 840 निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशियों के साथ खड़े हैं। सत्ताधारी भाजपा सभी 200, कांग्रेस 195 सीटों पर और उसका पांच सीटों पर राष्ट्रीय लोकदल, एनसीपी और एलजेडी से गठबंधन, बसपा 190, सीपीआई 16, सीपीएम 28, भारतवाहिनी 63, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी 58, आप 142 और छोटी पार्टियों के प्रत्याशी भी इस चुनावी दंगल को रोचक बना रहे हैं। वैसे भाजपा के पूर्व नेता घनश्याम तिवारी और हनुमान बेनिवाल के संयुक्त राजस्थान लोकतांत्रिक मोर्चा ने सत्ताधारी राजे सरकार और कांग्रेस को कुछ सीटों पर मुश्किल में डाल रखा है।
128 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस की सीधी टक्कर है मगर 60 सीटों पर कांग्रेस के 35 और भाजपा के 30 बागियों के कारण भितरघात की आशंका ने दोनों प्रमुख दलों की नींद उड़ाई हुई है। एंटी इनकम्बेंसी के चलते भाजपा की कठिनाइयां कम नहीं हैं क्योंकि उसने 56 विधायकों (छह मंत्रियों सहित) के टिकट काटे हैं। पांच मंत्री सुरेंद्र गोयल, हेम सिंह भडाना, राजकुमार रिणवा, धान सिंह भडाना और ओमप्रकाश हुडला तथा पांच वर्तमान विधायक बागी बन कर कांटे की टक्कर दे रहे हैं जबकि भाजपा ने चार मंत्रियों सहित 11 नेताओं को और कांग्रेस ने एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और 9 पूर्व विधायकों को बागी घोषित कर छह साल के लिये पार्टी से निष्कासित कर दिया है। 60-65 सीटों पर तिकोना और 12 सीटों पर चौतरफा मुकाबला होगा।
भाजपा ने नामांकन के अंतिम दिन चार घंटे पहले एक मात्र मुस्लिम प्रत्याशी और पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान को डिडवाना सीट से हटाकर टोंक विस सीट पर पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट के सामने खड़ा कर दिया है। इसी तरह कांग्रेस ने भाजपा से निकले पैराशूट उम्मीदवार मानवेंद्र सिंह (पूर्व विदेशमंत्री जसवंत सिंह के पुत्र) को मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ झालरापाटन सीट पर टिकट देकर चुनावी रण में सनसनी पैदा कर दी। भाजपा ने राजपूत जाति को अपने पक्ष में करने के लिये 26 को टिकट दिये तो कांग्रेस ने केवल 13 को टिकट दिये। भाजपा ने 94 प्रत्याशियों के टिकट दोहराये हैं, जबकि कांग्रेस ने 85 के।
भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने तो प्रधानमंत्री तक को ज्ञापन देकर मुसलमानों को ‘पोलिटिकल एपार्थाइड’ की संज्ञा दे अपना दुखड़ा रोया। यूनुस खान को शायद मजबूरी (मुख्यमंत्री राजे का दबाव) में सचिन पायलट को टक्कर देने के लिये अपने वर्तमान एमएलए अजीत मेहता का नाम काट कर भाजपा ने ‘फेस सेविंग’ करने का प्रयास किया जबकि राजनीतिक विश्लेषकों का सोचना है कि एक मात्र मुस्लिम नेता की ‘डू और डॉई’ की स्थिति है। आरएसएस और यूपी के मुख्यमंत्री योगी के इशारे पर बीजेपी ने पोकरण से हिंदू ध्रुवीकरण के उद्देश्य से महंत प्रतापपुरी को कांग्रेस के मुस्लिम धर्मगुरु गाजी फकीर के बेटे सालेह मोहम्मद के सामने उतार कर जाति और धर्म की राजनीति बाड़मेर-जैसलमेर से शुरू की है, जिसका प्रभाव अभी तो नहीं पर 2019 के लोकसभा चुनाव पर अवश्य पड़ेगा।
भाजपा और कांग्रेस, दोनों ने चुनावी घोषणापत्रों में युवाओं को नौकरी, किसानों को ऋण माफी और कर्ज, बेटी, महिलाओं आदि को वादों का लॉलीपाप दिया है पर चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, यूपी के सीएम योगी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी में जाति और धर्म के बाण चल रहे हैं। जैसे मणिशंकर अय्यर ने गुजरात चुनाव के ऐन वक्त कांग्रेस की लुटिया डुबो दी थी, इसी तरह राहुल के पुष्कर घाट पर अपना दत्तात्रेय गौत्र बताना भी भाजापाइयों और योगी बंधुओं को कड़वा लगा। प्रासंगिक मुद्दे जैसे जल संकट, सूखा, किसान- मजदूर रोजगार, बीमारी, कुपोषण, सिंचाई, और गौरक्षा के नाम पर ‘मॉब लिंचिंग’ गायब है।
सत्ता का पांच सालाना टर्न तो बदलता दिख रहा है! मगर क्या कांग्रेस अपने दम पर सरकार बना पायेगी वो भी तब जब भाजपा ही नहीं, जनता भी विकल्प देने के लिये ‘कांग्रेस में सीएम चेहरे’ को ढूंढ़ रही है। अगर सभी सर्वे सही नहीं हुए तो खंडित जनादेश में बागी, निर्दलीय और छोटे दल के विजयी उम्मीदवारों की चांदी होना तय है। ऐसा 2008 के चुनाव में कांग्रेस के साथ हुआ था।

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