संपादकीय

30-Nov-2018 11:08:54 am
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छक्के छुड़ाने वाली नौ गज की जुबान

शमीम शर्मा
पत्नी ने आवाज लगाते हुए कहा कि जरा ऊपर से अटैची उतार दो, मेरा हाथ छोटा पड़ रहा है। पति ने तुनकते हुए कहा कि हाथ की बजाय तुम्हारी जुबान ज़्यादा लंबी है, उससे कोशिश कर लो।
हालांकि औरतों की जुबान की बहुत चर्चा होती है पर तुलना करके देखें तो नेताओं की जुबान ज़्यादा लम्बी मिलेगी। इस पर एक मनचले का कहना है कि यदि नेता औरत हो तो उसकी जुबान दोगुणी लम्बी होती होगी! महिलाओं की जुबान पर लतीफे तो बेशुमार हैं पर सच्चाई यह है कि मौका मिलते ही समाज उनकी बोलती बंद करने में दक्ष है।
दूसरी तरफ इसमें दो राय नहीं कि नेतागण कहां की बात कहां ले जाते हैं। सालों पहले के किस्से-चुटकियां निकाल कर खींचातानी पर उतर आते हैं। शब्दों पर बवाल खड़ा कर देते हैं और बात का बतंगड़ बनते ही बात से मुकर जाते हैं। उनकी गालियां भी गालियां नहीं होतीं, गोले होते हैं। बम्बारमैंट-सा करती हैं। आकाश पर थूकते हैं और अपणी-अपणी तूम्बड़ी, अपणा-अपणा राग पर उतर आते हैं।
जिनके आगे एक न पीछे दो, उन नेताओं की अंतडिय़ां भी कुर्सी के लिये कुलबुलाती हैं। यही कुलबुलाहट उन्हें बातों के पकोड़े उतारने में पारंगत कर देती है। भाषणों के लच्छे से जनता को फुसलाते हैं और उल्लू सीधा होते ही सबसे कन्नी काट जाते हैं। नेतागण शब्दों की दौलत से जनता को अमीर बनने के सपने दिखाते हैं और नादान जनता यह भूल जाती है कि नेताओं की आंखें सिर्फ अपने सपने देखना जानती है, आमजन की जरूरतों के सपनों से उनका दूर का भी नाता नहीं होता।
इस सबसे हटकर यदि देखें तो आजकल एक ज़ुबान और है, जिसने महिला और नेताओं के भी छक्के छुड़ा दिये हैं और वह है मीडिया की ज़ुबान। जब यह अपने पर आती है तो कइयों को चित कर देती है या सीधे चांद तक पहुंचा कर ही दम लेती है। वह नेता भी भागवान है, जिसे मीडिया की जुबान आशीष देने लगती हो। यह दूसरी बात है कि मीडिया की जुबान प्रभावित भी होती है और शब्दों की अलटा-पलटी भी करवाई जा सकती है। तभी तो चुनाव पूर्व के सर्वेक्षणों में नेताओं के मन-मुताबिक आंकड़े के ऊपर-नीचे होने की आशंका से कोई इनकार नहीं करता।

 

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