संपादकीय

21-Jul-2017 6:27:33 pm
Posted Date

विपक्ष के गांधी

विपक्ष ने संयुक्त रूप से गोपाल कृष्ण गांधी को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुना है। उन्हें विपक्ष के 18 दलों का समर्थन हासिल है। खास बात यह है कि उन्हें जेडीयू ने भी अपना सपॉर्ट दिया है, जिसने राष्ट्रपति पद के लिए सत्तापक्ष के साथ जाने का फैसला किया था। इस बार विपक्ष ने अपना कैंडिडेट चुनने में सत्ता पक्ष से ज्यादा तत्परता दिखाई है और सत्ता पक्ष को दबाव में ला दिया है। संख्या बल के हिसाब से गोपाल कृष्ण गांधी का जीतना मुश्किल है क्योंकि सत्ता पक्ष के सांसदों की संख्या ज्यादा है। लेकिन विपक्ष के लिए प्राय: हमेशा ही राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनावों का प्रतीकात्मक या वैचारिक महत्व ज्यादा रहा है। अपने उम्मीदवार के चयन के जरिए विपक्ष देश को एक संदेश देने की कोशिश करता है। इसके पीछे यह सोच काम करती है कि लोकतंत्र केवल बहुमत के मूल्यों से नहीं चलता। यह ठीक है कि व्यवस्था के संचालन संबंधी निर्णय बहुमत से ही लिए जाते हैं, मगर सिस्टम की सार्थकता इसी में है कि महत्वपूर्ण फैसलों में अल्पमत की आवाज भी शामिल हो। इसे ध्यान में रखकर ही गोपाल कृष्ण गांधी को चुना गया है। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते हैं, लेकिन यह ज्यादा बड़ी बात नहीं। अहम यह है कि वह गांधीजी के मूल्यों और आदर्शों के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने अपने जीवन में गांधीवाद को उतारा और उच्च पदों पर रहते हुए भी सादगी और सच्चाई के रास्ते पर चले। जब वह प. बंगाल के राज्यपाल थे, तब राज्य में बिजली संकट को देखते हुए उन्होंने राजभवन में बिजली के उपयोग में कटौती की पहल की थी। राज्यपाल के रूप में वह राज्य प्रशासन को लेकर अपने विचार खुलकर रखते रहे। नंदीग्राम में हुए किसान आंदोलन के समय उन्होंने तत्कालीन लेफ्ट सरकार को आड़े हाथों लिया था। तब उन्होंने कहा था कि मैं अपनी शपथ के प्रति इतना ढीला रवैया नहीं अपना सकता, अपना दुख और पीड़ा मैं और अधिक नहीं छिपा सकता। एक बार वे सीबीआई को 'सरकारी कुल्हाड़ीÓ की संज्ञा भी दे चुके हैं। साल 2015 में एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- 'गोरक्षा के नाम पर हो रही हत्या को किसी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता।Ó वह लोकपाल को लेकर सरकार के लचर व्यवहार पर कई बार सवाल उठा चुके हैं। ऐसे व्यक्ति को सामने रखकर विपक्षी दलों ने समाज में गांधीवादी मूल्यों की प्रासंगिकता को रेखांकित किया है। गांधी ने जीवन में सादगी और शुचिता की वकालत की थी। वे अत्यधिक उपभोग पर आत्मसंयम को तरजीह देते थे और सभी प्राणियों के प्रति करुणा को मानव जीवन के लिए जरूरी मानते थे। आज जब समाज में स्वार्थ, दिखावा और आक्रामकता बढ़ रही है, तब गांधी के आदर्शों की सख्त जरूरत है। जीत-हार अपनी जगह लेकिन यह संदेश भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

 

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