संपादकीय

24-Nov-2018 9:25:09 am
Posted Date

कंप्यूटर के अंगूठा छाप के भरोसे साइबर सुरक्षा

अरुण नैथानी
भारत में कब किस नेता को कौन-सा मंत्रालय मिल जाये, कहा नहीं जा सकता। भले ही उसे उस विभाग की गहरी जानकारी न हो। मगर फिर भी यह उम्मीद तो की ही जाती है कि भले ही कोई मंत्री विषय विशेषज्ञ न हो, मगर मूलभूत जानकारी तो कम से कम ?उसे होनी ही चाहिए। वह बिल्कुल मंत्रालय से अनभिज्ञ तो कम से कम न ही हो। मगर ऐसा कोई वाकया विकसित देश जापान में हो तो बात हैरत की ही मानी जायेगी। यह एक हकीकत है कि वर्ष 2020 में होने वाले ओलंपिक व पैरा ओलंपिक के मद्देनजर साइबर सुरक्षा मंत्री बनाये गये योशिटाका सकुरादा ने पूरी दुनिया में यह कहकर खलबली मचा दी कि उन्होंने कभी कंप्यूटर को हाथ भी नहीं लगाया।
प्रधानमंत्री शिन्जो आबे की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के मंत्री योशिताका सकुरादा को संसदीय समिति की एक बैठक में कंप्यूटर उपयोग के बारे में पूछा गया था। यह जापानी सरकार के लिये बड़ी ही असहज स्थिति थी। उसकी स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो गई। योशिटाका आलोचनाओं के घेरे में ?आ गये और सोशल मीडिया पर उनका खूब मजाक उड़ाया जा रहा है।
दरअसल, 68 साल के कारोबारी योशिटाका को पिछले महीने यह जिम्मेदारी दी गई थी। यह जिम्मा ?ओलंपिक खेलों से जुड़ी साइबर सुरक्षा तैयारियों के लिये दिया गया था। उनके हालिया बयान से जापान में खासा विवाद पैदा हो गया है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि यह अविश्वसनीय है कि जिस व्यक्ति ने कंप्यूटर का कभी उपयोग ही नहीं किया, उसे कैसे साइबर सुरक्षा से जुड़ी अहम और संवेदनशील जिम्मेदारी दी गई है।
दरअसल, जापान की क्योडो न्यूज एजेंसी को योशिटाका ने बताया कि उन्होंने युवा अवस्था में ही स्वतंत्र रूप से अपना कारोबार संभाल लिया था। मेरे सहयोगियों और टीम ने सारा काम मेरे दिशा-निर्देशों पर संभाल लिया था। ऐसे में मुझे कभी कंप्यूटर चलाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उन्होंने सफाई दी कि उनके पास अब अनुभवी लोगों की पूरी टीम है और ओलंपिक खेलों के दौरान साइबर सुरक्षा के बेहतर संचालन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
मगर विडंबना यह है कि उनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। उनकी प्रेस वार्ता में साइबर सुरक्षा के सवाल पर सामान्य कंप्यूटर जानकारी पूछे जाने पर बगलें झांकने से समस्या खड़ी हो गई। जब उन्होंने सुरक्षा बजट के आंकड़े दिये तो उनमें जमीन-आसमान का फर्क नजर आया। एक अन्य संसदीय समिति को संबोधित करते हुए उनकी जुबान फिर फिसली। सदस्यों से बात करते हुए ओलंपिक का खर्च 150 बिलियन येन बताने के बजाय 1500 येन बता दिया। जिसके चलते उनकी खासी किरकिरी हुई। ओलंपिक से जुड़े संवाददाता सम्मेलनों में उनका जवाब होता है कि इस बारे में मुझे नहीं पता।
इतना ही नहीं, उनसे बाद में पूछे गये सवालों के जवाब ने जापानियों की चिंता और बढ़ा दी। जब?उनसे पूछा गया कि क्या देश के परमाणु ?ऊर्जा केंद्रों में यूएसबी ड्राइव का प्रयोग किया जाता है तो इसका जवाब देने में उन्हें काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। फिर वे देश के विपक्षी दलों, मीडिया और सोशल मीडिया के निशाने पर आ गये। कुछ लोग जहां इस कंप्यूटर अज्ञानता को लेकर चिंतित हैं तो कुछ लोग उनका भरपूर मजाक उड़ा रहे हैं।
जाहिरा तौर पर सकुरादा के इन बयानों से जापान सरकार के लिये मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। राजनीतिक गलियारों से लेकर आम नागरिकों तक में इसको लेकर जबरदस्त चर्चा हो रही है। जहां कुछ लोग इसको लेकर हैरानी जता रहे हैं तो कुछ चुटकी ले रहे हैं। सोशल मीडिया पर कहा गया कि हैकरों के लिये सकुरादा को हैक करना असंभव है, जब वे कंप्यूटर प्रयोग ही नहीं करते।
सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ से दलीलें दी जा रही हैं कि सकुरादा उन अमेरिकी कानून निर्माताओं से भिन्न नहीं हैं जो एंक्रिप्शन, साइबर सिक्योरिटी आदि से संबंधित रणनीतियां बनाते हैं, लेकिन स्मार्टफोन व ई-मेल आदि संचार के आधुनिक यंत्रों का उपयोग नहीं करते। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में कहा जाता है कि वे कंप्यूटर का उपयोग नहीं करते लेकिन वे अपने स्मार्ट फोन से लगातार ट्वीट करते रहते हैं।
दरअसल, इससे पहले भी सकुरादा अपने बेतुके बयानों के लिये सुर्खियां बटोरते रहे हैं। विश्व युद्ध के दौरान शाही सेना के जापानी सैनिकों द्वारा कोरियाई महिलाओं के शोषण के बारे में उन्होंने एक बेतुका बयान दिया था, जिसका दक्षिण कोरिया में खासा विरोध हुआ था। जिसके बाद उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी।
दरअसल, पिछले डेढ़ दशक में सकुरादा को संसद में कोई खास जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। उन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली थी। प्रधानमंत्री शिन्जो आबे ने पिछले महीने उन्हें दो पदों पर नामित किया था। ?इसके बावजूद एक मंत्री के रूप में वे अपनी क्षमताओं पर पूरा भरोसा जता रहे हैं जबकि ओलंपिक साइबर सुरक्षा को लेकर उनकी जुबान फिसलती ही रहती है। वैसे एक सरकारी सर्वेक्षण में वर्ष 2015 में बताया गया था कि जापान में साठ साल से अधिक उम्र के दो-तिहाई लोगों तक इंटरनेट की पहुंच बहुत कम या बिल्कुल नहीं थी।
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