संपादकीय

14-Jul-2017 7:29:28 pm
Posted Date

डॉक्टरों की दिक्कत

डॉक्टर्स डे पर इंडियन मेडिकल असोसिएशन ने एक सर्वे करके बताया है कि देश में तीन चौथाई से ज्यादा डॉक्टर स्ट्रेस में हैं। 62.8 प्रतिशत डॉक्टरों को मरीज देखते डर लगता है, 57 फीसद डॉक्टर प्राइवेट सिक्यॉरिटी लेना चाहते हैं, जबकि 46 फीसद हिंसा से डरे हुए हैं। आईएमए ने यह सर्वे 15 दिनों में 1681 डॉक्टरों पर किया। सभी डॉक्टरी के अलग-अलग क्षेत्रों से थे और ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर में थे। हिंसा से डरने वालों में 24.2 प्रतिशत को मुकदमे का डर सताता है, जबकि 13.7 प्रतिशत डॉक्टरों को लगता है कि उन पर आपराधिक मामले ठोक दिए जाएंगे। 56 फीसदी डॉक्टर सात घंटे की नींद भी नहीं ले पा रहे हैं। हालांकि सारी गलती मरीजों या उनके रिश्तेदारों की नहीं है। आईएमए ने इससे पहले भी एक रिसर्च कराई थी, जिसमें पाया गया था कि डॉक्टरों को मरीजों से ठीक से बात करने का प्रशिक्षण देना जरूरी है। आईएमए की ही एक और रिसर्च में सामने आया था कि डॉक्टरों पर ज्यादातर हमले तब होते हैं, जब वे मरीज की अधिक जांच कराते हैं या देखने में देर लगाते हैं। इस बार के डॉक्टर्स डे पर आईएमए ने चिंता जताई है कि मेडिकल प्रफेशन की गरिमा दांव पर लगी हुई है। दरअसल चिकित्सा के क्षेत्र में हमला चौतरफा है। देश का मेडिकल एजुकेशन सिस्टम अपनी गिरती क्वॉलिटी को लेकर पिछले एक दशक से दुनिया भर के मीडिया का निशाना बना हुआ है। सन 2010 से 2016 तक 69 से अधिक मेडिकल कॉलेज और टीचिंग हॉस्पिटल नकल कराने और भर्ती में रिश्वत खाने में पकड़े गए हैं। देश के कुल 398 मेडिकल कॉलेजों में से हर छठे पर इस तरह के मामलों का मुकदमा चल रहा है। आईएमए का अनुमान है कि अभी देश में जितने लोग डॉक्टरी कर रहे हैं, उनमें लगभग आधों के पास इसकी पूरी ट्रेनिंग नहीं है। और तो और, फर्जी डिग्री बेचकर डॉक्टर बनाने का धंधा भी इसी देश में होता है। ऐसे में डॉक्टरों का डर भगाने के लिए व्यवस्था का फोकस अभी डर के ढांचागत कारणों को दूर करने पर होना चाहिए, लोगों में जवाबी डर पैदा करने पर नहीं।

 

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