संपादकीय

14-Jul-2017 7:28:36 pm
Posted Date

नीतीश और विपक्ष

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही राष्ट्रपति चुनाव में अपनी भूमिका को लेकर कांग्रेस और आरजेडी के निशाने पर हों, लेकिन अपोजिशन की भूमिका को लेकर उन्होंने जो टिप्पणी की है, उस पर सभी विपक्षी दलों को गभीरता से विचार करना चाहिए। नीतीश ने कहा कि सरकार के काम पर प्रतिक्रिया देना विपक्ष का धर्म जरूर है, लेकिन उसे सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि अपना एक वैकल्पिक अजेंडा भी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस एक बड़ी पार्टी है। उसे अजेंडा तय करना चाहिए और जनता को बताना चाहिए कि उसके सामने देश को आगे ले जाने की क्या योजना है। नीतीश एक सुलझे हुए राजनेता हैं और वक्त की नजाकत को वे खूब समझते हैं। पिछले कुछ समय से उनकी चर्चा इस रूप में हो रही है कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन कर बीजेपी से निकटता बढ़ाने की कोशिश की है। राज्य में अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने की गरज में उन्होंने विपक्षी एकता को कमजोर किया है। ये आरोप सही हो सकते हैं, लेकिन विपक्ष की अकेली समस्या नीतीश ही तो नहीं हैं। मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में विपक्ष लगभग निष्क्रिय, विभाजित और दिशाहीन दिखा है। अभी तक उसकी कुल भूमिका अपनी ओर से कोई स्टैंड लेने के बजाय मोदी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों का विरोध करने की ही रही है। विरोध प्रदर्शनों में भी अलग-अलग दलों के अलग-अलग सुर देखने को मिले। जब जनता के भीतर से स्वत:स्फूर्त आंदोलन निकला तब भी विपक्ष उसके साथ जमकर खड़ा नहीं दिखा। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान आंदोलनों को जब एक निश्चित दिशा देने की जरूरत थी, तब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी छुट्टी पर चले गए। नीतीश इस बात को महसूस कर रहे हैं कि अपोजिशन फिलहाल केंद्र सरकार को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में एक मुख्यमंत्री के रूप में केंद्र सरकार की नाराजगी मोल लेकर अपनी विकास योजनाओं को फंड के अभाव में दम तोड़ते देखने में उन्हें कोई समझदारी नजर नहीं आती। संभव है, इसी मजबूरी को वे सिद्धांत का रूप दे रहे हों, लेकिन विपक्ष के नजरिये से देखें तो भी उनकी बात अतार्किक या हानिकर तो नहीं ही है। नीतीश का नजरिया मोदी सरकार को संख्याबल के आधार पर चुनौती देने के बजाय उसके कार्यक्रमों की काट करने का है। यह भी कि अगर सरकार का कोई कार्यक्रम देशहित में है, तो विपक्ष को उसका समर्थन भी करना चाहिए। नोटबंदी और जीएसटी का समर्थन उन्होंने इसी तर्क के आधार पर किया। उन्होंने भांप लिया है कि गैर-कांग्रेसवाद या गैर-बीजेपीवाद का दौर देश में अर्सा पहले खत्म हो चुका है। विपक्ष भी इस सचाई को मानकर अपना अजेंडा तय करे तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

 

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