संपादकीय

21-Aug-2019 2:34:02 pm
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डिजिटल युग में उपभोक्ता को सुरक्षा

इस साल मनाया जाने वाला राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस वाकई खास होगा, हालांकि इसमें कुछ विरोधाभास भी हैं। 24 दिसंबर को उपभोक्ता संरक्षण दिवस कानून-1986 के रूप में मनाते आए हैं क्योंकि इसी दिन राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बना था। लेकिन इस वर्ष खुशी इसलिए अधिक होगी क्योंकि पुराने की जगह नया कानून लागू किया गया है, जिसे आधुनिक समय की उपभोक्ता संरक्षण जरूरतों के अनुरूप बनाया गया है। इसके तहत बाजार की नई गतिशीलता और दुनिया को बदलकर रख देने वाली डिजिटल तकनीक से आए तेज बदलावों के मद्देनजर सुधार जोड़े गए हैं।

संसद के दोनों सदनों में पारित हो चुकेउपभोक्ता संरक्षण कानून- 2019’ में 1986 वाले कानून के वे सभी प्रमुख अवयव मौजूद हैं जो भारतीय उपभोक्ता को 6 मुख्य अधिकार और उपभोक्ता-न्याय व्यवस्था प्रदान करते हैं। लेकिन जो चीज नये कानून को पिछले से अलग बनाती है, वह यह कि एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण नियामक प्राधिकरण बनाया गया है जो उपभोक्ता अधिकार यकीनी बनाएगा। इसलिए जहां 1986 वाले कानून ने देश में उपभोक्ता हितों को बचाने की नींव रखी थी वहीं 2019 का नया प्रारूप इस पर बनी इमारत है, ईंट--ईंट।

यदि विस्तार से कहें तो उपभोक्ता संरक्षण कानून-1986 ने भले ही उपभोक्ता के अधिकारों को मोटे तौर पर स्थापित किया था लेकिन यह उनकी पालना करवाने हेतु नियामक देने से चूक गया था। इसलिए कुछ विषय जैसे कि असुरक्षित उत्पाद और सेवाओं से बचाव का अधिकार उपभोक्ता के पास नहीं था। हालांकि यह अधिकार मुख्य अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण है (इसका पता असुरक्षित गैस गीजर से हुई मौतों के आंकड़ों से चलता है) इस कानून के तहत किसी उत्पाद या सेवा-संबंधी त्रुटियों के कारण जख्मी या हुई मौतों का लेखाजोखा एकत्र करने का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था, ही इस तरह के मामलों में खुद जांच करने और त्रुटिपूर्ण वस्तुओं को बाजार में बिकने से रोकने का कोई इंतजाम था।

इस तरह यह उपभोक्ता का अधिकार है कि गैरवाजिब व्यापारिक तौर-तरीकों से उसका बचाव बना रहे, किंतु 1986 के कानून में गलत व्यापारिक आचरण की जांच हेतु स्वयं-संज्ञान का प्रावधान नहीं था और इसमें गलत और भ्रामक विज्ञापनों की विवेचना और इन पर रोक लगाना शामिल भी है। अगर दूसरी तरीके से कहें तो 1986 का कानून हालांकि अपने आप में एक ऐसा निर्णायक संस्थान था जो कोताही या पैसे बचाने के लिए बनाए गए उत्पाद से पहुंची शारीरिक चोट या मौत की सूरत में उपभोक्ता को मुआवजा तो दिलवा सकता था, परंतु इसके पास ऐसी शक्तियां नहीं थीं, जिसके इस्तेमाल से नियमों का उल्लंघन करके बनाई गई वस्तुओं से संभावित क्षति को रोकने की खातिर कुछ पूर्व-प्रतिरोधात्मक कदम उठा पाए।

उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019 में आखिरकार इस मुद्दे पर ध्यान दिया गया और एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण नियामक प्राधिकरण का गठन किया गया है। इसकी संरचना में एक मुख्य आयुक्त और कई आयुक्त होंगे जो विभिन्न विषयों वाले मामलों की सुनावाई करेंगे। इनके मुख्य कामों में असुरक्षित वस्तुओं एवं सेवाओं, गलत व्यापारिक आचरण, भ्रामक विज्ञापन, उपभोक्ता के साथ अनुबंधों में बेजा शर्तें रखना, उपभोक्ता कानून का पालन करवाना और उपभोक्ता जागृति के लिए काम करना इत्यादि है। इस प्राधिकरण के पास अधिकार होगा कि वह असुरक्षित उत्पाद को बाजार से हटवा सके और उसकी पूरी कीमत ग्राहक को वापिस दिलवा सके। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण नये कानून में यह है कि पहली बार उन मशहूर हस्तियों या फिल्मी सितारों को भ्रामक जानकारी देने के लिए जिम्मेवार ठहराया जाएगा जो विज्ञापनों में वस्तु का अतिशयोक्ति भरा प्रचार करते हैं। इस किस्म की भ्रामक जानकारी देते पाए जाने पर विज्ञापनकर्ताओं और वस्तु की बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा करने वाली हस्तियों पर भारी आर्थिक दंड के अलावा कारावास के प्रावधान के कारण यह कानून उपभोक्ताओं के अधिकारों पर अतिक्रमण करने वालों पर गंभीरता से कार्रवाई करेगा। कुल मिलाकर यह गतिशील कानून डिजिटल युग में तेजी से बदलती परिस्थितियों के अनुरूप बनाया गया है।

तथापि इस नये कानून में कुछ खामियां भी हैं। मसलन इसमें उपभोक्ता अदालतों में दायर केसों में लगने वाले समय को कम करने का कोई उपाय नहीं है, ही कागजी कार्यवाही को सरल बनाने और वकील के बिना इन अदालतों तक उपभोक्ता की पहुंच बनाना सुगम किया गया है। यह करने की बजाय इसमें उपभोक्ता अदालत पहुंचे वादी और वस्तु निर्माता/सेवा प्रदाता के साथ समझौते हेतु मध्यस्थता का एक विकल्प रख दिया है।

उपभोक्ता अदालतों के कामकाज का आकलन करते हुए भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की वर्ष 2013 की रिपोर्ट के अलावा भारत के महालेखाकार विभाग की वर्ष 2004 की रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह इन अदालतों में भी वकीलों ने सिविल न्यायालयों में इस्तेमाल किए जाने वाली पैंतरेबाजी को अमल में लाना शुरू कर दिया है, जिसके तहत मामले कोतारीख-पर-तारीखऔर जटिल बनाकर केस को लंबा खींचा जाता है। फिर भी नये कानून में ऐसे वकीलों की उपस्थिति रोकने या उनकी भूमिका केवल ज्यादा मूल्य वाले मामलों तक सीमित करने का प्रावधान नहीं किया गया है। गौरतलब है उपभोक्ता संरक्षण मामलों पर संसदीय समिति ने अपने सुझाव में कहा था कि 20 लाख मूल्य तक उपभोक्ता को वकील करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, लेकिन सरकार ने इस अनुशंसा को मंजूर नहीं किया था।

फिर से कहें तो जहां सबसे ज्यादा ध्यान भ्रामक विज्ञापनों पर ही केंद्रित किया गया है वहीं उपभोक्ता की सुरक्षा पर सबसे कम है। उदाहरण के लिए नये कानून में भ्रामक या गलत विज्ञापन देने वालों पर आर्थिक दंड में भारी इजाफा और कारावास देने का प्रावधान बनाया है। घटिया उत्पाद की वजह से उपभोक्ता के चोटिल होने या मरने पर उत्पादक पर भारी दंड का प्रावधान तो है लेकिन समाज के बाकी लोगों की सुऱक्षा सुनिश्चित करने के लिए उक्त वस्तुओं के भंडारण, बिक्री, आवंटन, निर्माण या मिलावट भरी वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने की वाली शक्तियां अपेक्षाकृत बहुत कम हैं।

फिर भी इतना सब कहने-करने के बाद कहा जाएगा कि उपभोक्ता संरक्षण पर हम लोग काफी आगे गए हैं और यह खुशी की बात है। अगर नये कानून का पालन सही ढंग से हो गया तो नियामक प्राधिकरण उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में दूरगामी बदलाव ला सकता है। कुल मिलाकर नया कानून एक बहुत बड़े बदलाव का वाहक है और इसे त्वरित अमल में लाया जाना चाहिए।

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