संपादकीय

20-Aug-2019 2:39:09 pm
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दुनिया हमारे साथ

जम्मू-कश्मीर के मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारत को घेरने की पाकिस्तान और चीन की कोशिश नाकाम रही। सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने इस मुद्दे पर औपचारिक बैठक बुलाए जाने के पाकिस्तान के अनुरोध को तो ठुकरा ही दिया, इस पर कोई अनौपचारिक बयान भी जारी नहीं किया। शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने पर हुई अनौपचारिक बैठक में चीन को छोडक़र सभी देश भारत के साथ खड़े रहे। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने मीडिया से बातचीत में साफ कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना भारत का आंतरिक मामला है। कश्मीर पर लिए गए किसी भी फैसले से बाहरी लोगों को कोई मतलब नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जेहाद के नाम पर पाकिस्तान हिंसा फैला रहा है। अगर वह भारत से बातचीत चाहता है तो पहले उसे आतंकवाद फैलाना बंद करना होगा।

हालांकि पाकिस्तान इस पर भी अपनी पीठ थपथपा रहा है। वह इसी बात से गदगद है कि कश्मीर पर यूएन में चर्चा हुई। हालांकि इस चर्चा को राजनयिक स्तर बहुत तवज्जो नहीं दी जाती। हाल के वर्षों में इस तरह की अनौपचारिक चर्चा का चलन बढ़ गया है जिनमें सुरक्षा परिषद के सदस्य बंद कमरे में बातचीत करते हैं और आधिकारिक तौर पर इसकी कोई जानकारी बाहर नहीं आती है। सचाई यह है कि यूएन के लिए अब कश्मीर कोई गंभीर मुद्दा नहीं रह गया है। इस पर आखिरी अनौपचारिक मीटिंग 1971 में और आखिरी औपचारिक या पूर्ण बैठक 1965 में हुई थी। पाकिस्तान इस बात को स्वीकार ही नहीं कर रहा कि विश्व बिरादरी उसकी तरह नहीं सोचती। उसने कई मुल्कों को मनाने की कोशिश की पर उसे निराशा हाथ लगी। यूएनएससी में चर्चा से ठीक पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ फोन पर लंबी बातचीत की मगर कोई फायदा नहीं हुआ।

आज पाकिस्तान के साथ अगर चीन खड़ा है तो उसके पीछे उसकी मजबूरी है। चीन ने पाकिस्तान में करोड़ों का निवेश कर रखा है इसलिए वह उसे संतुष्ट रखना चाहता है। वैसे कई विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान ने मामले को सुरक्षा परिषद में लेजाकर अपने लिए मुसीबत मोल ले ली है। उसे सुरक्षा परिषद द्वारा मानवाधिकारों को लेकर बने नियमों का पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी पालन करना होगा। ऐसे में गिलगित और बल्टिस्तान को लेकर पिछले साल आए पाकिस्तानी कानून को भी झटका लग सकता है। बहरहाल इस मुद्दे पर कूटनीतिक जीत के बाद सरकार को अपना ध्यान जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ किए अपने वादे को पूरा करने में लगाना होगा। साथ ही वहां सुरक्षा को लेकर भी मुस्तैद रहना होगा क्योंकि खीझ में पाकिस्तान कोई नापाक हरकत भी कर सकता है। सच यह है कि जम्मू-कश्मीर में ज्यों-ज्यों विकास की प्रक्रिया तेज होगी, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी एक्सपोज होता जाएगा।

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