संपादकीय

05-Aug-2019 1:27:54 pm
Posted Date

नशे के बड़े खिलाड़ी पकड़ से बाहर

पंजाब में करीब एक दशक से नशा सबसे बड़े मुद्दों में शुमार है। इसने चुनावी नतीजों को भी प्रभावित किया है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले चार हफ़्तों में नशा ख़त्म करने का वादा किया था परन्तु सरकार को तीन साल होने को हैं, समस्या पहले से भी गंभीर रूप लेती दिखाई दे रही है।
सरकार बनते ही मु्ख्यमंत्री ने एडीजीपी रैंक के अधिकारी हरप्रीत सिद्धू के नेतृत्व में एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया था परन्तु उसकी रिपोर्ट पुलिस विभाग के अंदरूनी विवाद में उलझ कर रह गई। पंजाब में कांग्रेस से सबंधित सौ के करीब पंचायतों ने फरीदकोट के एसएसपी के दफ्तर का घेराव किया, कई गांवों में महिलाओं ने नशे के खिलाफ मोर्चा खोला तो कैप्टन ने फिर से हरप्रीत सिद्धू को टास्क फोर्स का मुखिया लगा दिया।
आल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट (एम्स) के वर्ष 2019 के सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब अल्कोहल के मामले में देश में पांचवें स्थान पर है। अफ़ीम, भुक्की और हेरोइन आदि नशे के इस्तेमाल में यूपी के बाद दूसरे नंबर पर है। राज्य में करीब 7.2 लाख व्यक्ति नशेड़ी हैं। टीकों के जरिए नशा लेने वाले 88 हज़ार हैं। पंजाब विधानसभा में फरवरी 2019 में एक सवाल के जवाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा था कि राज्य में 2014 से 2018 तक के पांच वर्षों के दौरान नशा तस्करों के खिलाफ 52,742 मुकदमे दर्ज किए गए। मतलब प्रतिदिन 29 मामले दर्ज हुए।
हाल ही में पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने बताया कि जुलाई महीने के आखरी दो सप्ताह के दौरान पुलिस ने 406 मामले दर्ज किए हैं और नशे के काम में लगे 663 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पिछले महीने अटारी सरहद से 532 किलो हेरोइन पकड़ी गई थी। आए दिन और रिकवरी भी हो रही है। सियासी तौर पर एक बड़ा प्रश्न उठाया जाता रहा है कि पुलिस साधारण नशेड़ी या छोटे तस्करों को पकड़ रही है पर कोई भी बड़ा खिलाड़ी अभी तक क्यों नहीं पकड़ा गया। विधानसभा चुनाव से पहले अकाली दल के कई नेताओं के नाम भी सामने आते रहे पर अब पूरी तरह खामोशी है। इस बात को सभी मानते हैं कि सियासी और पुलिस की सहायता के बिना इस पैमाने पर नशे की बिक्री संभव नहीं है। इस गठबंधन को तोडऩे के प्रयास कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं।
असल मामला तो बीमारी का उपचार करने का है। पंजाब का नौजवान नशे की ओर क्यों जा रहा है  इसका ठोस विश्लेषण अभी तक नहीं किया गया है। इसके अलावा नशेडिय़ों के प्रति नज़रिये की बात है। नशेड़ी नौजवान अपराधी नहीं बल्कि पीडि़त हैं। इनको इलाज की ज़रूरत है। इलाज के बाद जीवन में पुनर्वास बहुत जरूरी है। पंजाब में ऐसे मामले सामने आए हैं कि एक ही सीरिंज से टीके लगाने के कारण एड्स के मामले भी बढ़े हैं। पिछले ग्यारह वर्षों में ऐसे 6 हज़ार मामले सामने आये हैं, जिनमें एड्स के कारण मौत हो गई। कनाडा समेत कई देशों में नशेडिय़ों के लिए सरकारी संस्थान बनाए गए हैं। यहां देखरेख में नशेड़ी टीका लगा सकते हैं ताकि ओवरडोज के कारण मौत न हो। धीरे-धीरे उनको नशा छोडऩे की तरफ लाया जाता है।
पुलिस का काम बड़े तस्करों को पकड़ कर सप्लाई चेन को तोडऩे का होना चाहिए। यदि इतनी बड़ी मात्रा में नशा उपलब्ध है तो इससे साफ है कि पुलिस के सप्लाई लाइन तोडऩे के दावे में दम नहीं है। यदि पुलिस के दबाव में नशा मिलना बंद हो जाता तो बड़ी संख्या में नौजवानों में इससे दूर हटने के लक्षण दिखाई देने शुरू हो जाते। ज़मीन पर ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। माहिरों के अनुसार यह केवल पुलिस और स्वास्थ्य विभाग तक सीमित मामला नहीं है। इसके लिए अंतर विभागीय कमेटी का गठन होना चाहिए। जिसके तहत पहला काम नशा करने वालों की निशानदेही हो। उनको गांवों की ग्राम सभाओं, पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों, धार्मिक नेताओं सहित सभी के जरिए भरोसे में लेना चाहिए। जरूरत के अनुरूप दवाइयां और उनके पुनर्वास के प्रबंध करने की जरूरत है।
सरकार को अपना वादा निभाने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी पड़ेगी। यह सियासी नहीं बल्कि सामाजिक और मानवीय मामला है। सभी पार्टियों को मिलकर काम करना होगा। सबसे बड़ी बात नशा करने वालों के प्रति मरीज की तरह हमदर्दी भरा रवैया अपनाए जाने की जरूरत है। अभी तक सरकार ने एक व्यापक नीति नहीं बनाई है।
पंजाब में सरकारी स्तर पर 32 व निजी क्षेत्र में 96 नशा मुक्ति केंद्र हैं। नशा छुड़ाने के विशेषज्ञ डा. श्याम सुंदर दीप्ति के अनुसार नशा छुड़ाने के लिए व्यक्ति को दस से बीस दिन दाखिल रखना पड़ता है। अगले एक साल तक उसे निगरानी में रखा जाता है। यह काम परिवार और समाज कर सकता है। यदि उसका माहौल नहीं बदलेगा तो वह फिर भटकेगा।
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