संपादकीय

16-Nov-2018 8:05:37 am
Posted Date

दूध का काला धंधा

देश में बिक रहे करीब 50 फीसदी दूध में मिलावट पाई गई है। यह खुद में काफी परेशान करने वाली खबर है। जांच के लिए उठाए गए नमूनों में कच्चा और प्रॉसेस्ड, दोनों तरह के दूध शामिल हैं। फसाई (फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) के सर्वे से यह खुलासा हुआ है। फसाई ने अपने सर्वे के लिए जो नमूने लिए उनमें से 50 प्रतिशत तय मानकों के अनुरूप नहीं थे। गनीमत कहें कि इनमें केवल 10 फीसदी ही स्वास्थ्य के लिए घातक थे, जबकि 39 पर्सेंट की मिलावट पानी आदि की थी और वे सेहत के लिए नुकसानदेह नहीं थे।
प्रोसेस्ड दूध के 46.8 फीसदी नमूने तय मानकों के अनुरूप नहीं थे और उनमें 17.3 फीसदी सेहत के लिए खतरनाक थे, जबकि कच्चे दूध के 45.4 प्रतिशत नमूने तय मानकों के अनुरूप नहीं थे और उनमें 4.9 फीसदी हेल्थ पर बुरा असर डालने वाले थे। पिछले महीने एनिमल वेलफेयर बोर्ड की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि देश में 68.7 प्रतिशत दूध और दुग्ध उत्पादों में प्रदूषणकारी तत्व मौजूद हैं। दूध में मिलावट की खबरें समय-समय पर आती रहती हैं। लगभग हर वर्ष ही सुप्रीम कोर्ट गंभीर चिंता प्रकट करता है और केंद्र तथा राज्य सरकारों को समुचित निर्देश भी देता है। लेकिन मिलावट पर रोक लगाने की बात किसी भी सरकार के अजेंडा पर नहीं आ रही है। 
दिलचस्प बात यह है कि कुछ राज्यों ने आईपीसी में बदलाव कर इस मामले में उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया है, लेकिन इस मामले में किसी को छोटी सजा मिलने की खबर भी आज तक नहीं सुनी गई। कभी-कभार सरकार किसी कंपनी के खिलाफ कुछ करती भी है तो जल्द ही पता चलता है कि वैसे ही करम करने वाली बाकी कंपनियां नियमों में मौजूद छिद्रों का बेहतर इस्तेमाल करके चैन से हैं। अब यह भी कैसी विडंबना है कि दूध जैसी अनिवार्य जरूरत की वस्तु तक हमें शुद्ध नहीं मिल रही है। भारत एक शाकाहार प्रधान देश है और दूध यहां प्रोटीन का सबसे व्यापक स्रोत है। पिछले कुछ सालों में भारत दूध उत्पादन के मामले में पूरी दुनिया में अव्वल हो गया है। 
यहां रोजाना दो लाख गांवों से दूध एकत्रित किया जाता है और डेयरी उद्योग लगातार मजबूत हो रहा है। जरूरत इसे व्यवस्थित रूप देने और ढंग से इस क्षेत्र का रेगुलेशन करने की है। दूध की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत जांच तंत्र बनाया जाना चाहिए। अभी आलम यह है कि राज्यों ने जरूरी संख्या में फूड इंस्पेक्टरों तक की नियुक्ति नहीं की है। फूड लैब्स की भी भारी कमी है। जहां ये हैं भी वहां इनमें पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं। एक रिपोर्ट आने में छह महीने का वक्त लगता है। ये खामियां दुरुस्त करनी होंगी, लेकिन जिन कंपनियों के नमूनों में मिलावट पाई गई है, उनके नाम तो अभी ही उजागर किए जा सकते हैं।
 

 

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