वैसे तो सभी के सोने का तरीका अलग होता है लेकिन अधिकतर लोगों की आदत होती है पेट के बल सोना। अगर आप भी उन्हीं लोगों में से एक है तो अपनी इस आदत के नुकसान भी जान लें। जी हां, पेट के बल सोने से कई तरह की परेशानियां घेरती हैं जिनमें से एक ब्लड का सर्कुलेशन सही तरीके से न होना हैं। अगर आप भी पेट के बल सोते है तो आज ही अपने सोने की इस पोजिशन को बदल दें। चलिए जानते है पेट के बल सोने से क्या-क्या परेशानियां हो सकती हैं। इसके अलावा आज हम आपको सोने की सही पोजिशन भी बताएंगे।
1.सिरदर्द
अगर आप पेट के बाल सोते है आपको भी हर वक्त सिर दर्द रहता होगा। दरअसल, इस पोजिशन में सोने से गर्दन मड़ जाती है और सिर तक ब्लड की सप्लाई नहीं हो पाती है, जिस वजह से सिर भारी-भारी व दर्द रहने लगते हैं।
2. जोड़ों का दर्द
शरीर की सही पोजिशन न हो ने कारण भी हड्डियों में दर्द रहने लगते हैं। अक्सर पेट के बल सोने वाले व्यक्तियों को इस दिक्कत का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी इसी पोजिशन में सो रहे है तो अपनी आदत को सुधार लें।
3.चेहरे पर असर
जब हम पेट के बल सोते है तो स्किन को अच्छे से ऑक्सीजन नहीं मिल पाती। साथ ही बिस्तर पर लगे बैक्टीरिया पर चेहरे के संपर्क में आ जाते हैं, जिस वजह से चेहरे पर दाग-धब्बे व पिंपल्स होने लगते हैं।
4. बैक पेन की शिकायत
पेट के बल सोने से रीढ़ की हड्डी अपनी नैचुरल शेप में नहीं रहती, जिस वजह से बैक पेन होने लगती हैं। कभी-कभी दर्द इतना बढ़ जाता है कि बैठना-उठना तक मुश्किल हो जाता हैं।
5. पेट खराब
पेट के बल सोने से खाना ठीक से पच नहीं पाता जिससे इनडाइजेशन की शिकायत रहती है। कभी-कभी पेट में दर्द भी रहने लगता है। इसलिए हमेशा बांयी करवट लेकर या पीठ के बल ही सोएं। सोने की कौन-सी पोजीशन हैं बेहतर?
हेल्थ के हिसाब से पीठ के बल सोने की पोजिशन एकदम सही मानी जाती हैं। इससे शरीर के सभी हिस्से सही तरीके से काम करते रहते हैं। इतना ही नहीं पीठ के बल सोने से नींद भी अच्छी आती है। वहीं अगर आपका पाचन संबंधी प्रॉबल्म रहती है तो हमेशा बांयी करवट लेकर सोएं।
नई दिल्ली: हमारे जीवन में पेड़ पौधों का अत्यधिक महत्व है। हमारे जीवन में साँस लेने से खान-पान तक की आवश्यकताओं की पूर्ति पेड़-पौधों द्वारा होती है, लेकिन एकतरफ जहाँ यह जीव जंतुओं के लिए संजीवनी का काम करते हैं, वही दूसरी तरफ कुछ पौधे जीवन हरण भी कर लेते हैं। ऐसा ही एक पौधा है ‘जिम्पी-जिम्पी’ जिसका तनिक सा स्पर्श आपकी जान ले सकता है। जी हाँ इस पौधे पर यह रहस्य अभी भी बरकरार है।
यह पौधा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाया जाता है, दिल के आकर की पत्तियों वाला यह पौधा एक या दो मीटर तक लंबा होता है। जैसे ही कोई जानवर या आदमी इसके संपर्क में आता है, इसकी पत्तियों और तनों पर उपस्तिथ सुई जैसे छोटे-छोटे रोये त्वचा को भेद, भीतर धस जाते हैं और व्यक्ति अथवा जानवर को असहनीय पीड़ा होने लगती है। चूँकि इसके रोयों में एक विशेष प्रकार का जहर रहता है और मात्र एक क्षण के स्पर्श के साथ व्यक्ति को सूजन, खुजली और जलन का अनुभव होने लगता है।
जब तक त्वचा में धसे जिम्पी-जिम्पी के रोयें बाहर नहीं निकलते खुजली और सूजन बनी रहती है। हायड्रोक्लोरिक एसिड के लेप या सिर्फ वैक्स की पट्टी की मदद से इन रोयों को बाहर खींच कर व्यक्ति को इस दर्द से निजात दिलाया जा सकता है। अगर यह स्पर्श एक क्षण से ज्यादा का हो, तो इंसान की मौत भी हो सकती है। इतना ही नहीं बिना स्पर्श किये ही यह पौधा किसी भी जीव जंतु के प्राण हर सकता है।
जब वैज्ञानिकों ने इसकी पड़ताल की तो निष्कर्ष निकाला कि खुद को पूरी तरह से ढक कर और मास्क लगाकर ही इसके संपर्क में जाना चाहिए। आर्मी ट्रैनिंग के दौरान जब एक सैनिक इसके संपर्क में आया तो तुरंत उसको असीम जलन और खुजली का अनुभव होने लगा और उसको अगले 3 हफ्ते हॉस्पिटल में भर्ती रहना पड़ा। इसी तरह एक व्यक्ति ने अज्ञानता वश इसकी पत्तियों को टॉयलेट टिश्यू के रूप में प्रयोग कर लिया जिससे तुरंत ही उसकी मौत हो गयी।
हले अंडा आया या मुर्गी, अंडा मांसाहारी है या शाकाहारी? मुर्गी ही तो अंडा देती है, तो ये नॉन वेज हुआ? दुनिया में ऐसे कई सवाल हैं. जिनका जवाब अब तक नहीं मिला. लगातार ये सवाल चर्चा में रहते हैं और दुनिया में इनको लेकर अलग-अलग विचार भी हैं. लेकिन अगर साइंस की बात करें तो वैज्ञानिकों ने इसका जवाब ढूंढ लिया है. इन वैज्ञानिकों ने अंडा के मांसाहारी या शाकाहारी होने पर बहस पर विराम लगा दिया है. हांलाकि, अब भी कुछ लोग इससे इतेफाक नहीं रखेंगे. लेकिन, हम यहां सिर्फ साइंटिफिक बात कर रहे हैं.
आइये तो जानते हैं अंडा शाकाहारी है या मांसाहारी…
क्या है मांसाहारी या शाकाहारी का लॉजिक ?
शाकाहारी लोग अंडे को मांसाहारी बताकर नहीं खाते. उनका तर्क होता है कि अंडा मुर्गी से आता है. इसलिए जब मुर्गी नॉन वेज है तो अंडा भी नॉन-वेज है. लेकिन, साइंस कहती है कि दूध भी जानवर से ही निकलता है, तो वो शाकाहारी कैसे है?
शाकाहारी होता है अंडा
ज्यादातर लोगों की गलतफहमी है कि अंडे से बच्चा (चूजा) निकलता है. लेकिन, अगर आप इस कारण से अंडे को मांसाहारी मानते हैं, तो आपको बता दें कि बाजार में मिलने वाले ज्यादातर अंडे अनफर्टिलाइज्ड होते हैं. इसका मतलब, उनसे कभी चूजे बाहर नहीं आ सकते. इस गलतफहमी को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों ने भी साइंस के जरिए इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है. उनके मुताबिक, अंडा शाकाहारी होता है.
कैसे पता चला
दरअसल, अंडे में तीन लेयर (हिस्से) होती हैं- पहला छिलका, दूसरा सफेदी(albumen) और तीसरा अंडे की जर्दी(yolk). अंडे पर की गई एक रिसर्च के मुताबिक, अंडे की सफेदी में सिर्फ प्रोटीन होता है. उसमें जानवर का कोई हिस्सा मौजूद नहीं होता. इसलिए तकनीकी रूप से एग वाइट(सफेदी) शाकाहारी होता है.
अंडे की जर्दी
एग वाइट की ही तरह एग योक(अंडे की जर्दी) में भी प्रोटीन के साथ सबसे ज्यादा कोलेस्ट्रोल और फैट मौजूद होता है. हालांकि, अंडे मुर्गी और मुर्गे के संपर्क में आने के बाद दिए जाते हैं, उनमें गैमीट सेल्स मौजूद होता है, जो उसे मांसाहारी बना देता है.
मुर्गी कैसे देती है अंडा?
मुर्गी जब 6 महीने की हो जाती है तो हर 1 या डेढ़ दिन में अंडे देती ही है, लेकिन उसके अंडे देने के लिए जरूरी नहीं कि वह किसी मुर्गे के संपर्क में आई हो. इन अंडों को ही अनफर्टिलाइज्ड एग कहा जाता है. वैज्ञानिकों का दावा है कि इनमें से कभी चूजे नहीं निकल सकते. ऐसे में अगर आप अभी तक अंडे को मांसाहारी मानते हैं तो भूल जाइये, क्योंकि अंडा शाकाहारी है.
चाय एक बुहत पीया जाने वाला पेय पदार्थ है। भारत में सबसे ज्यादा पीया जाता है। ज्यादा लोग इसका उपयोग सुस्ती भागने के लिए करते है जिससे शरीर में चुस्ती आ जाती है। चाय के कप के बगैर सुबह अधूरी सी लगती है। एक कप चाय आपकी ज़िंदगी में खुशियों के रंग घोल देता है। और ये बात अब तो विज्ञान ने भी यह मान लिया है कि गर्म चाय के कप से आप ग्लूकोमा से मुक्ति दिला सकती है। ग्लूकोमा को वैसे तो आम बोल चाल की भाषा में काला मोतिया भी कहते है। यह हमारी आंख एक बैलून की तरह होती है,
जिसके भीतर एक तरल पदार्थ भरा हुआ होता है। आंखों का यह लिक्विड लगातार आंखों के अंदर बनता रहता है और बाहर भी निकलता रहता है। इससे आंखों में दबाव बढ़ जाता है। आपको बता दे की आंखों में ऑप्टिक नर्व होती हैं जिनकी मदद से किसी वस्तु के बारे में दिमाग को सिग्नल मिलता है। आंखों पर ये बढ़ता दबाव इन ऑप्टिक नर्व को धीरे-धीरे खत्म करने लगता है, जिससे आंखों की रोशनी कमजोर होने लगती है। अगर इसके शुरूआती लक्षणों का पता न चले तो आदमी अंधा हो सकता है।
ग्लूकोमा के कुछ लक्षण है जैसे शाम को आंख में या सिर में दर्द होना, इंद्रधनुषी रंग दिखाई देना, चीजों पर फोकस करने में परेशानी होना आदी। इस विषय पर शोध किया गया जिसम पाया गया कि कैफीन इंट्राऑक्यूलर प्रेशर में बदलाव ला सकती है। वैज्ञानीकों के अनुसार, ग्लूकोमा से दुनिया में 5.75 करोड़ लोग प्रभावित हैं। और ये भी बताया की इन पीड़ितों की संख्या वर्ष 2020 तक बढ़कर 6.55 करोड़ होने जायेगी है। मोतियाबिंद के बाद ग्लूकोमा अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण होगा है।
इस्लाम में पानी खड़े हो कर पीने के लिए मना किया गया है. साफ हुक्म है कि, पानी तीन सांस में पिए यानी पानी मुंह में जाने के बाद गिलास या बर्तन मुंह से दूर कर ले और मुंह कि हवा बाहर निकलने दे. जिसमे बोतल या गिलास मुंह के ऊपर कर धार बना कर पीना तो हराम है.
अगर आप पानी गलत तरीके से पीते हैं तो ये आपके सेहत के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. ज्यादातर लोग खड़े होकर ही पानी पीने लगते हैं लेकिन पानी पीने का यह तरीका सेहत के लिए सही नहीं है.
आयुर्वेद में भी पानी पीने के कई नियम बताए गए हैं। इन्हीं में से एक नियम है बैठकर पानी पीना। अगर हम खड़े होकर पानी पीते हैं तो इससे कई तरह की बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है।
इसका हमारे बॉडी के कई पार्ट्स पर भी बुरा असर पड़ता है। इन सारी प्रॉब्लम्स से बचने के लिए बेहतर ऑप्शन यही है कि पानी को बैठकर पिया जाए। आयुर्वेद एक्सपर्ट डॉ. गोविंद पारिक बता रहे हैं खड़े होकर पानी पीने के नुकसान।
जब हम खड़े होकर पानी पीते हैं तो ऐसे में पानी बिना छने ही किडनी से बाहर निकलने लगता है। इसके कारण किडनी में इन्फेक्शन या किडनी खराब होने का खतरा बढ़ सकता है।
खड़े होकर पानी पीने से बॉड़ी में लिक्विड पदार्थ का बैलेंस बिगड़ने लगता है। ऐसे में जोड़ों को पर्याप्त लिक्विड नहीं मिल पाता है जिससे गठिया की प्रॉब्लम हो सकती है।
खड़े होकर पानी पीने से खाने का डाइजेशन ठीक तरीके से नहीं हो पाता है। ऐसे में ये खाना कोलेस्ट्रॉल में बदलने लगता है जो हार्ट डिजीज की आशंका बढ़ा सकता है।
खड़े होकर पानी पीने से एसोफेगस नली के निचले हिस्से पर बुरा असर पड़ने लगता है। ऐसे में अल्सर की प्रॉब्लम का खतरा बढ़ सकता है।
खड़े होकर पानी पीने से खाना ठीक तरीके से डाइजेस्ट नहीं हो पाता है। ऐसे में इनडाइजेशन की प्रॉब्लम बढ़ जाती है।
ड्रमस्टिक या सहजन नाम से पहचाने जाने वाले पेड़ का एक दूसरी तरह का प्रयोग वैज्ञानिकों ने ढूंढ़ निकाला है. एक नए शोध में पता चला है कि सहजन के बीज पानी को शुद्ध करने में सहायक हो सकते हैं व विकासशील राष्ट्रों में बेहद कम मूल्य में लाखों लोगों को शुद्ध जल मुहैया करा सकते हैं.इस तरह के बीज वाले पेड़ से साफ व शुद्ध पानी बनाने का उपाय ईजाद करने के बाद वैज्ञानिक इसे उपयोग में लाने की सोच रहे हैं. अमेरिका के कारनेगी मेलेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने रेत वसहजन से जलशोधन के लिए सस्ता व प्रभावी उपाय पा लिया है. इस इस्तेमाल को उन्होंने ‘एफ-सैंड’ का नाम दिया है.शोधकर्ता अब इस बात को परखने में लगे हैं कि इस तरीके से किस हद तक पानी साफ हो सकता है व इंसान को बीमारियों से बचा सकता है .