संपादकीय

वृद्ध पर टंगिया व डंडे से जानलेवा हमला करने वाला आरोपी जेल दाखिल
Posted Date : 14-Sep-2019 2:46:40 pm

वृद्ध पर टंगिया व डंडे से जानलेवा हमला करने वाला आरोपी जेल दाखिल

न्याय साक्षी/रायगढ़। थाना घरघोड़ा अन्तर्गत ग्राम कोटरीमाल निवासी आनंद सिंह पिता राम सिंह उम्र 55 वर्ष के साथ गांव के मोहन राठिया एवं बुंद राम राठिया द्वारा जमीन विवाद को लेकर दिनांक 08.09.19 के दोपहर आनंद सिंह की हत्या करने के उद्देश्य से टंगिया एवं बांस का बडा डण्डा से मारपीट किये थे । घटना के संबंध में आरोपियों के विरूद्ध अप.क्र. 163/19 धारा 307,34 भादंवि दर्ज किया गया है , जिसमें एक आरोपी बुंदराम राठिया पिता कांशीराम राठिया उम्र 44 वर्ष निवासी कोटरीमाल को गिरफ्तारकर  दिनांक 13.09.19 को न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया जहां उसका जेल वारंट प्राप्त होने पर आरोपी को जेल दाखिल कराया गया है । मामले में एक आरोपी फरार है जिसकी पतासाजी की जा रही है ।

 

यात्री ट्रेनों में टिकटों की जांच से मच रहा हडक़ंप
Posted Date : 03-Sep-2019 11:36:41 am

यात्री ट्रेनों में टिकटों की जांच से मच रहा हडक़ंप

जगदलपुर, 03 सितंबर  जगदलपुर से निकलने वाली यात्री ट्रेनों में अभी तक बिना टिकट यात्रा करने वाले निर्भयता के साथ यात्रा करते थे। लेकिन अब यात्री ट्रेनों में टिकटों की जांच शुरू हो गई है। इससे अवैध तरीके से यात्रा करने वाले यात्रियों में हडक़ंप मचा है। 
जानकारी के अनुसार इस समय रेलवे द्वारा टिकटों की जांच की मुहिम छेड़ी गई है, जिससे प्रतिदिन सैकड़ों यात्री बिना टिकट यात्रा करते हुए पकड़े जा रहे हैं।  उल्लेखनीय है कि अन्य प्रमुख स्टेशनों के समान जगदलपुर स्टेशन में भी जांच शुरू हो गई है और रेलवे के अधिकारी स्टेशनों सहित यात्री ट्रेनों में प्रत्येक यात्री के टिकटों की जांच कर रही है। इस संबंध में रेलवे के एसएमआर अमित कुमार ने जानकारी दी कि बस्तर से होकर 6 यात्री ट्रेनें चलती हैं और सभी के आने जाने का समय अलग-अलग है। इन ट्रेनों के आने और जाने के समय स्टेशन में भीड़ भी यात्रियों की बढ़ जाती है, इसे देखते हुए स्टेशन के मुख्य द्वार पर यात्रियों के टिकटों की जांच की जा रही है। बिना टिकट मिलने पर यात्रियों से जुर्माना भी वसूला जा रहा है। उन्होंने बताया कि स्टेशन में आने वाले यात्रियों के परिजनों को स्टेशन टिकट लेकर आना चाहिए। अन्यथा उनपर भी कार्रवाई हो सकती है। स्टेशन टिकट अनिवार्य है इसे सभी यात्रियों को समझना चाहिए। 

डिजिटल युग में उपभोक्ता को सुरक्षा
Posted Date : 21-Aug-2019 2:34:02 pm

डिजिटल युग में उपभोक्ता को सुरक्षा

इस साल मनाया जाने वाला राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस वाकई खास होगा, हालांकि इसमें कुछ विरोधाभास भी हैं। 24 दिसंबर को उपभोक्ता संरक्षण दिवस कानून-1986 के रूप में मनाते आए हैं क्योंकि इसी दिन राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बना था। लेकिन इस वर्ष खुशी इसलिए अधिक होगी क्योंकि पुराने की जगह नया कानून लागू किया गया है, जिसे आधुनिक समय की उपभोक्ता संरक्षण जरूरतों के अनुरूप बनाया गया है। इसके तहत बाजार की नई गतिशीलता और दुनिया को बदलकर रख देने वाली डिजिटल तकनीक से आए तेज बदलावों के मद्देनजर सुधार जोड़े गए हैं।

संसद के दोनों सदनों में पारित हो चुकेउपभोक्ता संरक्षण कानून- 2019’ में 1986 वाले कानून के वे सभी प्रमुख अवयव मौजूद हैं जो भारतीय उपभोक्ता को 6 मुख्य अधिकार और उपभोक्ता-न्याय व्यवस्था प्रदान करते हैं। लेकिन जो चीज नये कानून को पिछले से अलग बनाती है, वह यह कि एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण नियामक प्राधिकरण बनाया गया है जो उपभोक्ता अधिकार यकीनी बनाएगा। इसलिए जहां 1986 वाले कानून ने देश में उपभोक्ता हितों को बचाने की नींव रखी थी वहीं 2019 का नया प्रारूप इस पर बनी इमारत है, ईंट--ईंट।

यदि विस्तार से कहें तो उपभोक्ता संरक्षण कानून-1986 ने भले ही उपभोक्ता के अधिकारों को मोटे तौर पर स्थापित किया था लेकिन यह उनकी पालना करवाने हेतु नियामक देने से चूक गया था। इसलिए कुछ विषय जैसे कि असुरक्षित उत्पाद और सेवाओं से बचाव का अधिकार उपभोक्ता के पास नहीं था। हालांकि यह अधिकार मुख्य अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण है (इसका पता असुरक्षित गैस गीजर से हुई मौतों के आंकड़ों से चलता है) इस कानून के तहत किसी उत्पाद या सेवा-संबंधी त्रुटियों के कारण जख्मी या हुई मौतों का लेखाजोखा एकत्र करने का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था, ही इस तरह के मामलों में खुद जांच करने और त्रुटिपूर्ण वस्तुओं को बाजार में बिकने से रोकने का कोई इंतजाम था।

इस तरह यह उपभोक्ता का अधिकार है कि गैरवाजिब व्यापारिक तौर-तरीकों से उसका बचाव बना रहे, किंतु 1986 के कानून में गलत व्यापारिक आचरण की जांच हेतु स्वयं-संज्ञान का प्रावधान नहीं था और इसमें गलत और भ्रामक विज्ञापनों की विवेचना और इन पर रोक लगाना शामिल भी है। अगर दूसरी तरीके से कहें तो 1986 का कानून हालांकि अपने आप में एक ऐसा निर्णायक संस्थान था जो कोताही या पैसे बचाने के लिए बनाए गए उत्पाद से पहुंची शारीरिक चोट या मौत की सूरत में उपभोक्ता को मुआवजा तो दिलवा सकता था, परंतु इसके पास ऐसी शक्तियां नहीं थीं, जिसके इस्तेमाल से नियमों का उल्लंघन करके बनाई गई वस्तुओं से संभावित क्षति को रोकने की खातिर कुछ पूर्व-प्रतिरोधात्मक कदम उठा पाए।

उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019 में आखिरकार इस मुद्दे पर ध्यान दिया गया और एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण नियामक प्राधिकरण का गठन किया गया है। इसकी संरचना में एक मुख्य आयुक्त और कई आयुक्त होंगे जो विभिन्न विषयों वाले मामलों की सुनावाई करेंगे। इनके मुख्य कामों में असुरक्षित वस्तुओं एवं सेवाओं, गलत व्यापारिक आचरण, भ्रामक विज्ञापन, उपभोक्ता के साथ अनुबंधों में बेजा शर्तें रखना, उपभोक्ता कानून का पालन करवाना और उपभोक्ता जागृति के लिए काम करना इत्यादि है। इस प्राधिकरण के पास अधिकार होगा कि वह असुरक्षित उत्पाद को बाजार से हटवा सके और उसकी पूरी कीमत ग्राहक को वापिस दिलवा सके। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण नये कानून में यह है कि पहली बार उन मशहूर हस्तियों या फिल्मी सितारों को भ्रामक जानकारी देने के लिए जिम्मेवार ठहराया जाएगा जो विज्ञापनों में वस्तु का अतिशयोक्ति भरा प्रचार करते हैं। इस किस्म की भ्रामक जानकारी देते पाए जाने पर विज्ञापनकर्ताओं और वस्तु की बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा करने वाली हस्तियों पर भारी आर्थिक दंड के अलावा कारावास के प्रावधान के कारण यह कानून उपभोक्ताओं के अधिकारों पर अतिक्रमण करने वालों पर गंभीरता से कार्रवाई करेगा। कुल मिलाकर यह गतिशील कानून डिजिटल युग में तेजी से बदलती परिस्थितियों के अनुरूप बनाया गया है।

तथापि इस नये कानून में कुछ खामियां भी हैं। मसलन इसमें उपभोक्ता अदालतों में दायर केसों में लगने वाले समय को कम करने का कोई उपाय नहीं है, ही कागजी कार्यवाही को सरल बनाने और वकील के बिना इन अदालतों तक उपभोक्ता की पहुंच बनाना सुगम किया गया है। यह करने की बजाय इसमें उपभोक्ता अदालत पहुंचे वादी और वस्तु निर्माता/सेवा प्रदाता के साथ समझौते हेतु मध्यस्थता का एक विकल्प रख दिया है।

उपभोक्ता अदालतों के कामकाज का आकलन करते हुए भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की वर्ष 2013 की रिपोर्ट के अलावा भारत के महालेखाकार विभाग की वर्ष 2004 की रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह इन अदालतों में भी वकीलों ने सिविल न्यायालयों में इस्तेमाल किए जाने वाली पैंतरेबाजी को अमल में लाना शुरू कर दिया है, जिसके तहत मामले कोतारीख-पर-तारीखऔर जटिल बनाकर केस को लंबा खींचा जाता है। फिर भी नये कानून में ऐसे वकीलों की उपस्थिति रोकने या उनकी भूमिका केवल ज्यादा मूल्य वाले मामलों तक सीमित करने का प्रावधान नहीं किया गया है। गौरतलब है उपभोक्ता संरक्षण मामलों पर संसदीय समिति ने अपने सुझाव में कहा था कि 20 लाख मूल्य तक उपभोक्ता को वकील करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, लेकिन सरकार ने इस अनुशंसा को मंजूर नहीं किया था।

फिर से कहें तो जहां सबसे ज्यादा ध्यान भ्रामक विज्ञापनों पर ही केंद्रित किया गया है वहीं उपभोक्ता की सुरक्षा पर सबसे कम है। उदाहरण के लिए नये कानून में भ्रामक या गलत विज्ञापन देने वालों पर आर्थिक दंड में भारी इजाफा और कारावास देने का प्रावधान बनाया है। घटिया उत्पाद की वजह से उपभोक्ता के चोटिल होने या मरने पर उत्पादक पर भारी दंड का प्रावधान तो है लेकिन समाज के बाकी लोगों की सुऱक्षा सुनिश्चित करने के लिए उक्त वस्तुओं के भंडारण, बिक्री, आवंटन, निर्माण या मिलावट भरी वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने की वाली शक्तियां अपेक्षाकृत बहुत कम हैं।

फिर भी इतना सब कहने-करने के बाद कहा जाएगा कि उपभोक्ता संरक्षण पर हम लोग काफी आगे गए हैं और यह खुशी की बात है। अगर नये कानून का पालन सही ढंग से हो गया तो नियामक प्राधिकरण उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में दूरगामी बदलाव ला सकता है। कुल मिलाकर नया कानून एक बहुत बड़े बदलाव का वाहक है और इसे त्वरित अमल में लाया जाना चाहिए।

डिजिटल युग में उपभोक्ता को सुरक्षा
Posted Date : 21-Aug-2019 2:33:24 pm

डिजिटल युग में उपभोक्ता को सुरक्षा

इस साल मनाया जाने वाला राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस वाकई खास होगा, हालांकि इसमें कुछ विरोधाभास भी हैं। 24 दिसंबर को उपभोक्ता संरक्षण दिवस कानून-1986 के रूप में मनाते आए हैं क्योंकि इसी दिन राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बना था। लेकिन इस वर्ष खुशी इसलिए अधिक होगी क्योंकि पुराने की जगह नया कानून लागू किया गया है, जिसे आधुनिक समय की उपभोक्ता संरक्षण जरूरतों के अनुरूप बनाया गया है। इसके तहत बाजार की नई गतिशीलता और दुनिया को बदलकर रख देने वाली डिजिटल तकनीक से आए तेज बदलावों के मद्देनजर सुधार जोड़े गए हैं।

संसद के दोनों सदनों में पारित हो चुकेउपभोक्ता संरक्षण कानून- 2019’ में 1986 वाले कानून के वे सभी प्रमुख अवयव मौजूद हैं जो भारतीय उपभोक्ता को 6 मुख्य अधिकार और उपभोक्ता-न्याय व्यवस्था प्रदान करते हैं। लेकिन जो चीज नये कानून को पिछले से अलग बनाती है, वह यह कि एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण नियामक प्राधिकरण बनाया गया है जो उपभोक्ता अधिकार यकीनी बनाएगा। इसलिए जहां 1986 वाले कानून ने देश में उपभोक्ता हितों को बचाने की नींव रखी थी वहीं 2019 का नया प्रारूप इस पर बनी इमारत है, ईंट--ईंट।

यदि विस्तार से कहें तो उपभोक्ता संरक्षण कानून-1986 ने भले ही उपभोक्ता के अधिकारों को मोटे तौर पर स्थापित किया था लेकिन यह उनकी पालना करवाने हेतु नियामक देने से चूक गया था। इसलिए कुछ विषय जैसे कि असुरक्षित उत्पाद और सेवाओं से बचाव का अधिकार उपभोक्ता के पास नहीं था। हालांकि यह अधिकार मुख्य अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण है (इसका पता असुरक्षित गैस गीजर से हुई मौतों के आंकड़ों से चलता है) इस कानून के तहत किसी उत्पाद या सेवा-संबंधी त्रुटियों के कारण जख्मी या हुई मौतों का लेखाजोखा एकत्र करने का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था, ही इस तरह के मामलों में खुद जांच करने और त्रुटिपूर्ण वस्तुओं को बाजार में बिकने से रोकने का कोई इंतजाम था।

इस तरह यह उपभोक्ता का अधिकार है कि गैरवाजिब व्यापारिक तौर-तरीकों से उसका बचाव बना रहे, किंतु 1986 के कानून में गलत व्यापारिक आचरण की जांच हेतु स्वयं-संज्ञान का प्रावधान नहीं था और इसमें गलत और भ्रामक विज्ञापनों की विवेचना और इन पर रोक लगाना शामिल भी है। अगर दूसरी तरीके से कहें तो 1986 का कानून हालांकि अपने आप में एक ऐसा निर्णायक संस्थान था जो कोताही या पैसे बचाने के लिए बनाए गए उत्पाद से पहुंची शारीरिक चोट या मौत की सूरत में उपभोक्ता को मुआवजा तो दिलवा सकता था, परंतु इसके पास ऐसी शक्तियां नहीं थीं, जिसके इस्तेमाल से नियमों का उल्लंघन करके बनाई गई वस्तुओं से संभावित क्षति को रोकने की खातिर कुछ पूर्व-प्रतिरोधात्मक कदम उठा पाए।

उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019 में आखिरकार इस मुद्दे पर ध्यान दिया गया और एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण नियामक प्राधिकरण का गठन किया गया है। इसकी संरचना में एक मुख्य आयुक्त और कई आयुक्त होंगे जो विभिन्न विषयों वाले मामलों की सुनावाई करेंगे। इनके मुख्य कामों में असुरक्षित वस्तुओं एवं सेवाओं, गलत व्यापारिक आचरण, भ्रामक विज्ञापन, उपभोक्ता के साथ अनुबंधों में बेजा शर्तें रखना, उपभोक्ता कानून का पालन करवाना और उपभोक्ता जागृति के लिए काम करना इत्यादि है। इस प्राधिकरण के पास अधिकार होगा कि वह असुरक्षित उत्पाद को बाजार से हटवा सके और उसकी पूरी कीमत ग्राहक को वापिस दिलवा सके। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण नये कानून में यह है कि पहली बार उन मशहूर हस्तियों या फिल्मी सितारों को भ्रामक जानकारी देने के लिए जिम्मेवार ठहराया जाएगा जो विज्ञापनों में वस्तु का अतिशयोक्ति भरा प्रचार करते हैं। इस किस्म की भ्रामक जानकारी देते पाए जाने पर विज्ञापनकर्ताओं और वस्तु की बढ़ा-चढ़ाकर प्रशंसा करने वाली हस्तियों पर भारी आर्थिक दंड के अलावा कारावास के प्रावधान के कारण यह कानून उपभोक्ताओं के अधिकारों पर अतिक्रमण करने वालों पर गंभीरता से कार्रवाई करेगा। कुल मिलाकर यह गतिशील कानून डिजिटल युग में तेजी से बदलती परिस्थितियों के अनुरूप बनाया गया है।

तथापि इस नये कानून में कुछ खामियां भी हैं। मसलन इसमें उपभोक्ता अदालतों में दायर केसों में लगने वाले समय को कम करने का कोई उपाय नहीं है, ही कागजी कार्यवाही को सरल बनाने और वकील के बिना इन अदालतों तक उपभोक्ता की पहुंच बनाना सुगम किया गया है। यह करने की बजाय इसमें उपभोक्ता अदालत पहुंचे वादी और वस्तु निर्माता/सेवा प्रदाता के साथ समझौते हेतु मध्यस्थता का एक विकल्प रख दिया है।

उपभोक्ता अदालतों के कामकाज का आकलन करते हुए भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की वर्ष 2013 की रिपोर्ट के अलावा भारत के महालेखाकार विभाग की वर्ष 2004 की रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह इन अदालतों में भी वकीलों ने सिविल न्यायालयों में इस्तेमाल किए जाने वाली पैंतरेबाजी को अमल में लाना शुरू कर दिया है, जिसके तहत मामले कोतारीख-पर-तारीखऔर जटिल बनाकर केस को लंबा खींचा जाता है। फिर भी नये कानून में ऐसे वकीलों की उपस्थिति रोकने या उनकी भूमिका केवल ज्यादा मूल्य वाले मामलों तक सीमित करने का प्रावधान नहीं किया गया है। गौरतलब है उपभोक्ता संरक्षण मामलों पर संसदीय समिति ने अपने सुझाव में कहा था कि 20 लाख मूल्य तक उपभोक्ता को वकील करने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, लेकिन सरकार ने इस अनुशंसा को मंजूर नहीं किया था।

फिर से कहें तो जहां सबसे ज्यादा ध्यान भ्रामक विज्ञापनों पर ही केंद्रित किया गया है वहीं उपभोक्ता की सुरक्षा पर सबसे कम है। उदाहरण के लिए नये कानून में भ्रामक या गलत विज्ञापन देने वालों पर आर्थिक दंड में भारी इजाफा और कारावास देने का प्रावधान बनाया है। घटिया उत्पाद की वजह से उपभोक्ता के चोटिल होने या मरने पर उत्पादक पर भारी दंड का प्रावधान तो है लेकिन समाज के बाकी लोगों की सुऱक्षा सुनिश्चित करने के लिए उक्त वस्तुओं के भंडारण, बिक्री, आवंटन, निर्माण या मिलावट भरी वस्तुओं के आयात पर रोक लगाने की वाली शक्तियां अपेक्षाकृत बहुत कम हैं।

फिर भी इतना सब कहने-करने के बाद कहा जाएगा कि उपभोक्ता संरक्षण पर हम लोग काफी आगे गए हैं और यह खुशी की बात है। अगर नये कानून का पालन सही ढंग से हो गया तो नियामक प्राधिकरण उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में दूरगामी बदलाव ला सकता है। कुल मिलाकर नया कानून एक बहुत बड़े बदलाव का वाहक है और इसे त्वरित अमल में लाया जाना चाहिए।

दुनिया हमारे साथ
Posted Date : 20-Aug-2019 2:39:09 pm

दुनिया हमारे साथ

जम्मू-कश्मीर के मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारत को घेरने की पाकिस्तान और चीन की कोशिश नाकाम रही। सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने इस मुद्दे पर औपचारिक बैठक बुलाए जाने के पाकिस्तान के अनुरोध को तो ठुकरा ही दिया, इस पर कोई अनौपचारिक बयान भी जारी नहीं किया। शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने पर हुई अनौपचारिक बैठक में चीन को छोडक़र सभी देश भारत के साथ खड़े रहे। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने मीडिया से बातचीत में साफ कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना भारत का आंतरिक मामला है। कश्मीर पर लिए गए किसी भी फैसले से बाहरी लोगों को कोई मतलब नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जेहाद के नाम पर पाकिस्तान हिंसा फैला रहा है। अगर वह भारत से बातचीत चाहता है तो पहले उसे आतंकवाद फैलाना बंद करना होगा।

हालांकि पाकिस्तान इस पर भी अपनी पीठ थपथपा रहा है। वह इसी बात से गदगद है कि कश्मीर पर यूएन में चर्चा हुई। हालांकि इस चर्चा को राजनयिक स्तर बहुत तवज्जो नहीं दी जाती। हाल के वर्षों में इस तरह की अनौपचारिक चर्चा का चलन बढ़ गया है जिनमें सुरक्षा परिषद के सदस्य बंद कमरे में बातचीत करते हैं और आधिकारिक तौर पर इसकी कोई जानकारी बाहर नहीं आती है। सचाई यह है कि यूएन के लिए अब कश्मीर कोई गंभीर मुद्दा नहीं रह गया है। इस पर आखिरी अनौपचारिक मीटिंग 1971 में और आखिरी औपचारिक या पूर्ण बैठक 1965 में हुई थी। पाकिस्तान इस बात को स्वीकार ही नहीं कर रहा कि विश्व बिरादरी उसकी तरह नहीं सोचती। उसने कई मुल्कों को मनाने की कोशिश की पर उसे निराशा हाथ लगी। यूएनएससी में चर्चा से ठीक पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ फोन पर लंबी बातचीत की मगर कोई फायदा नहीं हुआ।

आज पाकिस्तान के साथ अगर चीन खड़ा है तो उसके पीछे उसकी मजबूरी है। चीन ने पाकिस्तान में करोड़ों का निवेश कर रखा है इसलिए वह उसे संतुष्ट रखना चाहता है। वैसे कई विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान ने मामले को सुरक्षा परिषद में लेजाकर अपने लिए मुसीबत मोल ले ली है। उसे सुरक्षा परिषद द्वारा मानवाधिकारों को लेकर बने नियमों का पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में भी पालन करना होगा। ऐसे में गिलगित और बल्टिस्तान को लेकर पिछले साल आए पाकिस्तानी कानून को भी झटका लग सकता है। बहरहाल इस मुद्दे पर कूटनीतिक जीत के बाद सरकार को अपना ध्यान जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ किए अपने वादे को पूरा करने में लगाना होगा। साथ ही वहां सुरक्षा को लेकर भी मुस्तैद रहना होगा क्योंकि खीझ में पाकिस्तान कोई नापाक हरकत भी कर सकता है। सच यह है कि जम्मू-कश्मीर में ज्यों-ज्यों विकास की प्रक्रिया तेज होगी, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी एक्सपोज होता जाएगा।

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नशे के बड़े खिलाड़ी पकड़ से बाहर
Posted Date : 05-Aug-2019 1:27:54 pm

नशे के बड़े खिलाड़ी पकड़ से बाहर

पंजाब में करीब एक दशक से नशा सबसे बड़े मुद्दों में शुमार है। इसने चुनावी नतीजों को भी प्रभावित किया है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले चार हफ़्तों में नशा ख़त्म करने का वादा किया था परन्तु सरकार को तीन साल होने को हैं, समस्या पहले से भी गंभीर रूप लेती दिखाई दे रही है।
सरकार बनते ही मु्ख्यमंत्री ने एडीजीपी रैंक के अधिकारी हरप्रीत सिद्धू के नेतृत्व में एक विशेष टास्क फोर्स का गठन किया था परन्तु उसकी रिपोर्ट पुलिस विभाग के अंदरूनी विवाद में उलझ कर रह गई। पंजाब में कांग्रेस से सबंधित सौ के करीब पंचायतों ने फरीदकोट के एसएसपी के दफ्तर का घेराव किया, कई गांवों में महिलाओं ने नशे के खिलाफ मोर्चा खोला तो कैप्टन ने फिर से हरप्रीत सिद्धू को टास्क फोर्स का मुखिया लगा दिया।
आल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट (एम्स) के वर्ष 2019 के सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब अल्कोहल के मामले में देश में पांचवें स्थान पर है। अफ़ीम, भुक्की और हेरोइन आदि नशे के इस्तेमाल में यूपी के बाद दूसरे नंबर पर है। राज्य में करीब 7.2 लाख व्यक्ति नशेड़ी हैं। टीकों के जरिए नशा लेने वाले 88 हज़ार हैं। पंजाब विधानसभा में फरवरी 2019 में एक सवाल के जवाब में कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कहा था कि राज्य में 2014 से 2018 तक के पांच वर्षों के दौरान नशा तस्करों के खिलाफ 52,742 मुकदमे दर्ज किए गए। मतलब प्रतिदिन 29 मामले दर्ज हुए।
हाल ही में पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने बताया कि जुलाई महीने के आखरी दो सप्ताह के दौरान पुलिस ने 406 मामले दर्ज किए हैं और नशे के काम में लगे 663 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पिछले महीने अटारी सरहद से 532 किलो हेरोइन पकड़ी गई थी। आए दिन और रिकवरी भी हो रही है। सियासी तौर पर एक बड़ा प्रश्न उठाया जाता रहा है कि पुलिस साधारण नशेड़ी या छोटे तस्करों को पकड़ रही है पर कोई भी बड़ा खिलाड़ी अभी तक क्यों नहीं पकड़ा गया। विधानसभा चुनाव से पहले अकाली दल के कई नेताओं के नाम भी सामने आते रहे पर अब पूरी तरह खामोशी है। इस बात को सभी मानते हैं कि सियासी और पुलिस की सहायता के बिना इस पैमाने पर नशे की बिक्री संभव नहीं है। इस गठबंधन को तोडऩे के प्रयास कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं।
असल मामला तो बीमारी का उपचार करने का है। पंजाब का नौजवान नशे की ओर क्यों जा रहा है  इसका ठोस विश्लेषण अभी तक नहीं किया गया है। इसके अलावा नशेडिय़ों के प्रति नज़रिये की बात है। नशेड़ी नौजवान अपराधी नहीं बल्कि पीडि़त हैं। इनको इलाज की ज़रूरत है। इलाज के बाद जीवन में पुनर्वास बहुत जरूरी है। पंजाब में ऐसे मामले सामने आए हैं कि एक ही सीरिंज से टीके लगाने के कारण एड्स के मामले भी बढ़े हैं। पिछले ग्यारह वर्षों में ऐसे 6 हज़ार मामले सामने आये हैं, जिनमें एड्स के कारण मौत हो गई। कनाडा समेत कई देशों में नशेडिय़ों के लिए सरकारी संस्थान बनाए गए हैं। यहां देखरेख में नशेड़ी टीका लगा सकते हैं ताकि ओवरडोज के कारण मौत न हो। धीरे-धीरे उनको नशा छोडऩे की तरफ लाया जाता है।
पुलिस का काम बड़े तस्करों को पकड़ कर सप्लाई चेन को तोडऩे का होना चाहिए। यदि इतनी बड़ी मात्रा में नशा उपलब्ध है तो इससे साफ है कि पुलिस के सप्लाई लाइन तोडऩे के दावे में दम नहीं है। यदि पुलिस के दबाव में नशा मिलना बंद हो जाता तो बड़ी संख्या में नौजवानों में इससे दूर हटने के लक्षण दिखाई देने शुरू हो जाते। ज़मीन पर ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। माहिरों के अनुसार यह केवल पुलिस और स्वास्थ्य विभाग तक सीमित मामला नहीं है। इसके लिए अंतर विभागीय कमेटी का गठन होना चाहिए। जिसके तहत पहला काम नशा करने वालों की निशानदेही हो। उनको गांवों की ग्राम सभाओं, पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों, धार्मिक नेताओं सहित सभी के जरिए भरोसे में लेना चाहिए। जरूरत के अनुरूप दवाइयां और उनके पुनर्वास के प्रबंध करने की जरूरत है।
सरकार को अपना वादा निभाने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी पड़ेगी। यह सियासी नहीं बल्कि सामाजिक और मानवीय मामला है। सभी पार्टियों को मिलकर काम करना होगा। सबसे बड़ी बात नशा करने वालों के प्रति मरीज की तरह हमदर्दी भरा रवैया अपनाए जाने की जरूरत है। अभी तक सरकार ने एक व्यापक नीति नहीं बनाई है।
पंजाब में सरकारी स्तर पर 32 व निजी क्षेत्र में 96 नशा मुक्ति केंद्र हैं। नशा छुड़ाने के विशेषज्ञ डा. श्याम सुंदर दीप्ति के अनुसार नशा छुड़ाने के लिए व्यक्ति को दस से बीस दिन दाखिल रखना पड़ता है। अगले एक साल तक उसे निगरानी में रखा जाता है। यह काम परिवार और समाज कर सकता है। यदि उसका माहौल नहीं बदलेगा तो वह फिर भटकेगा।
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